कोरोना से बड़ा खतरा बाहें पसार बैठा है

कोरोना से बड़ा खतरा बाहें पसार बैठा है

प्रकृति की मार जब पड़ती है ,तो इंसान बचते फिरता है.अभी पूरी दुनियाँ कोरोना की जंग झेल रही ऐसे में एक बार फिर से चीन से एक नई मुसीबत आ गई है.अगर चीन को मुसीबत और समस्या का देश कहाँ जाये तो कोई गुरेज नहीं होगा।

अगला बड़ा ख़तरा?

दुनिया कोरोना संक्रमण के जाल से निकलने की कोशिश कर रही है और उधर सुपापोर्ण और उनकी टीम अगली महामारी की तैयारियां कर रहे हैं.

एशिया में संक्रामक रोक अधिक संख्या में हैं. गर्म वातावरण की वजह से यहां जीवों की प्रजातियां भी ज़्यादा हैं जिसका एक मतलब ये भी है कि यहां पैथोजेन (रोगज़नक़) भी बड़ी तादाद में हैं और इसी वजह से यहाँ नए वायरस के सामने आने का ख़तरा भी अधिक रहता है. बढ़ती आबादी और इंसानों और जानवरों के बीच बढ़ते संपर्क से जानवरों से वायरस के इंसानों में आने का ख़तरा भी बढ़ा है.

सुपापोर्ण और उनकी टीम ने बड़ी तादाद में चमगादड़ों पर परीक्षण किए हैं. उन्होंने हज़ारों चमगादड़ों के सैंपल लिए हैं. इस दौरान उन्होंने कई वायरस भी खोजे हैं. इनमें से अधिकतर कोरोना वायरस हैं. कुछ ऐसे ख़तरनाक रोग भी हैं जो जानवरों से इंसानों में आ सकते हैं.

इनमें निपाह वायरस भी शामिल है. फ्रुट बैट्स या चमगादड़ों में ये प्राकृतिक तौर पर मिलता है.

सुपापोर्ण कहती हैं, ‘सबसे बड़ी चिंता की बात ये है कि इसका कोई इलाज नहीं है.’

सुपापोर्ण के मुताबिक इस वायरस से संक्रमित लोगों में 40 से 75 फ़ीसदी तक की मौत हो जाती है. ये इस बात पर निर्भर करता है कि संक्रमण कहाँ फैला है.

निपाह के ख़तरे को लेकर सिर्फ़ सुपापोर्ण ही चिंतित नहीं हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन हर साल उन पैथोजेन की समीक्षा करता है जो बड़ी महामारी का कारण बन सकते हैं. ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि रिसर्च के फंड को सही जगह लगाया जा सके और ख़तरनाक वायरस पर पहले ही शोध किया जा सके.

सबसे ज़्यादा ध्यान उन वायरस पर दिया जाता है जो इंसानों के स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ा ख़तरा होते हैं. जिनमें महामारी बनने की संभावना होती है और जिनका कोई इलाज नहीं होता.

निपाह वायरस डब्ल्यूएचओ के शीर्ष दस वायरस में शामिल है. एशिया में पहले ही वायरस के कई संक्रमण हो चुके हैं, ऐसे में ये भी नहीं कहा जा सकता है ये वायरस की सूची का अंत है.

निपाह के ख़तरनाक होने के कई कारण हैं. इसका इंक्यूबेशन पीरियड (संक्रामक समय) बहुत लंबा है, एक मामले में तो ये 45 दिन था. इसका मतलब ये है कि कई बार संक्रमित व्यक्ति, जिसे शायद पता ही ना हो कि वो संक्रमित है, अनजाने में इसे लोगों में फैला सकता है.

इससे जानवरों की कई प्रजातियां भी संक्रमित हो सकती हैं जिससे इसके और ज्यादा फैलने का ख़तरा बढ़ जाएगा. साथ ही ये वायरस सीधे संपर्क के अलावा दूषित भोजन करने से भी हो सकता है.

निपाह से संक्रमित कुछ लोगों में सांस लेने में तकलीफ, खांसी, थकान और दर्द और एनसीफिलाइटिस जैसे लक्षण दिख सकते हैं. एनसीफिलाइटिस होने पर दिमाग में सूजन आने से मौत तक हो सकती है.

बांग्लादेश और भारत दोनों में ही निपाह संक्रमण के मामले सामने आए हैं. दोनों ही जगह इस संक्रमण को खजूर का जूस पीने से जोड़कर देखा गया था.

रात में संक्रमित चमगादड़ खजूर के पेड़ पर फल खाने जाते थे और वहीं जूस इकट्ठा करने के लिए रखे गए बर्तन में पेशाब कर देते थे.

इस बात से अनभिज्ञ आसपास के लोग सड़क पर जूस बेच रहे लोगों से जूस पी लेते और संक्रमण उनमें पहुंच जाता.

साल 2001 से 2011 के बीच बांग्लादेश में निपाह संक्रमण के 11 मामले आए जिनमें 196 लोग संक्रमित हुए. इनमें से 150 की मौत हो गई थी.

कंबोडिया और थाइलैंड के ग्रामीण इलाक़ों में चमगादड़ों की बीट से खाद भी बनाया जाता है जिसे स्थानीय भाषा में गुआनो कहा जाता है.

बदलती हुई दुनिया

मानव इतिहास में ऐसा दौर भी रहा है. जब चमगादड़ों से दूर रहना आसान था. लेकिन इंसान दुनिया को बदलता जा रहा है और जानवरों के रहने के ठिकाने नष्ट होते जा रहे हैं. ऐसा करने से नई बीमारियां भी इंसानों में फैल रही हैं.

जानवरों से इंसानों में फैलने वाली बीमारियों पर 2020 यूनिवर्सिटी ऑफ़ एक्सटर रिव्यू में प्रकाशित एक समीक्षा लेख में लेखिका रीबेका जे व्हाइट और ऑर्ली रेज़गौर ने लिखा था, ‘ज़मीनों के इस्तेमाल में हो रहे बदलाव से जानवरों की बीमारियों के इंसानों में आने की दर बढ़ रही है. जंगल काटे जाने, शहरों का विस्तार होने और कृषि का इलाक़ा बढ़ना इसका कारण हैं.’

दुनिया की 60 प्रतिशत आबादी एशिया प्रशांत क्षेत्र में रहती हैं जहां अब भी बड़े पैमाने पर शहरीकरण हो रहहा है. विश्व बैंक के डाटा के मुताबिक साल 2000 से 2010 के बीच पूर्वी एशिया में बीस करोड़ लोग शहरों में आकर बसे.

चमगादड़ों के प्राकृतिक निवास स्थानों के नष्ट होने से पहले भी निपाह संक्रमण हो चुका है. साल 1998 में मलेशिया में हुए निपाह संक्रमण से 100 से ज़्यादा लोग मारे गए थे.

शोधकर्ता इस निष्कर्ष पर पहुंचे थे कि जंगल काटे जाने और प्राकृतिक निवास स्थानों के नष्ट होने की वजह से चमगादड़ फलों के बाग़ानों की तरफ़ गए थे. इनमें सूअर भी पाले जा रहे थे. ये देखा गया है कि चमगादड़ जब तनाव में होते हैं तो वो वायरस छोड़ते हैं.

चमगादड़ों को अपनी जगह छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा और जिस नई जगह वो गए वहां उनका संपर्क ऐसे जानवर से हुआ जिसके संपर्क में आमतौर पर वो नहीं रहते थे. इन नई परिस्थितियों में वायरस चमगादड़ों से सूअर में आ गया और फिर सूअर से इंसानों में.

दुनिया भर के 15 प्रतिशत उष्णकटिबंधीय वन एशिया में है लेकिन इस इलाक़े में बड़े पैमाने पर जंगल भी काटे जा रहे हैं. दुनिया में जैव-विविधता को सबसे ज़्यादा नुकसान एशिया में ही हो रहा है. इसकी बड़ी वजह जंगलों को काटा जाना हैं. मलेशिया में ही नारियल की खेती के लिए बड़े पैमाने पर वन काटे जा रहे हैं.

चमगादड़ों में कई भयानक बीमारियों के वायरस होते हैं. जैसे कोविड-19, निपाह, सार्स और इबोला.

ऐसे में सवाल उठता है कि क्यों न चमगादड़ों से छुटकारा ही पा लिया जाए? लेकिन ऐसा करने से हालात और अधिक खराब ही होंगे.

वन हेल्थ इंस्टीट्यूट लैब से जुड़ीं और प्रेडिक्ट प्रोजेक्ट की लैब निदेशक ट्रेसी गोल्डस्टीन कहती हैं कि चमगादड़ों को मारने के परिणाम भयानक होंगे.

‘परिस्थितिक तंत्र में चमगादड़ अहम भूमिका निभाते हैं. वो पांच सौ से अधिक प्रजाति के पेड़ों का पॉलीनेशन (परागण) करते हैं. वे कीड़े खाकर उनकी आबादी को भी नियंत्रित करते हैं. ये मलेरिया जैसी बीमारियों के नियंत्रण में बेहद अहम हैं.’

चमगादड़ मानवों के स्वास्थ्य में भी अहम भूमिका निभाते हैं.  यदि चमगादड़ों को मारा गया तो उन पर अपनी आबादी को बढ़ाने का और दबाव आ जाएगा और इससे इंसानों के लिए ख़तरा बढ़ेगा ही.

निपाह वायरस इतना ख़तरनाक है कि दुनियाभर की सरकारें इसे जैविक हथियार के तौर पर भी देखती हैं. दुनिया के कुछ ही देशों की लैब में इस वायरस को रखने और समझने की अनुमति है.

प्रकृति के बीच मानव समुदाय को बचा के रखना है तो ,प्रकृति के अस्तित्व के साथ खिलवाड़ नहीं कर सकते।वरना उसका परिणाम बहुत भयानक होगा अभी हम कोरोना से जंग लड़ ही रहे है ,ऐसे में एक और खतरा हमारे मानवता के अस्तित्व के ऊपर मडराने लगा है.अभी भी वक्त है हम खुद को सुधार ले मानवता के लिये इंसानियत के लिये वरना धरातल से जैसे डायनसोर अस्तित्व विहीन हो गया वैसे ही आदमी भी धरातल से अस्तित्व विहीन हो जायेगा.

Akhilesh Namdeo