एशिया के ग्रीन बेल्ट के रूप में चिन्हित मरवाही वन मंडल से संरक्षित औषधीय प्रजाति खैर के पेड़ों की अवैध कटाई

वन तस्करों की सक्रियता से वन कर्मेचारियों के होश उड़े

वन कर्मचारियों ने मुखबिर की सूचना पर दो ट्रैक्टर ट्रॉली सहित 2.509 घन मीटर गीली खैर की लकड़ी की जप्त

दो ट्रैक्टर में भरे हुए थे 95 नग खैर के चिरान

संरक्षित खैर प्रजाति की लकड़ी से बनता है पान में खाने वाला कत्था

गौरेला पेंड्रा मरवाही 

अखिलेश नामदेव

जैव विविधता के लिए मशहूर एशिया के ग्रीन बेल्ट के रूप में चिन्हित मरवाही वन मंडल में वन तस्करों द्वारा संरक्षित औषधि प्रजाति के वृक्षों की अवैध कटाई जारी है। वनों के संरक्षण के लिए वन विभाग के तमाम दावों के बावजूद मरवाही वन मंडल के सघन वन सुरक्षित नहीं है। मरवाही वन मंडल में इस बार संरक्षित औषधि प्रजाति के पेड़ खैर की अवैध कटाई का मामला सामने आया है। सूचना पर वन विभाग ने वन अपराध सूचना वन अपराध क्रमांक 18729 21 फरवरी .2024 परिसर नाका दर्ज करके वन तस्करों को दो ट्रैक्टर ट्राली सहित 2.509 घन मीटर लगभग 95 नग गीली चिरान जप्त किया है । वन तस्करों द्वारा खैर प्रजाति के संरक्षित पेड़ों की कटाई का मामला सामने आने के बाद वन विभाग मरवाही में हड़कंप मचा हुआ है।

एशिया के नक्शे में ग्रीन बेल्ट के रूप में चिन्हित छत्तीसगढ़ का मरवाही वन मंडल अपनी जैव विविधता के लिए मशहूर माना जाता है। यहां विभिन्न प्रजातियों के वन्य प्राणी के अलावा सघन साल वन सहित औषधि प्रजाति के पौधे पाए जाते हैं जो उत्तर मरवाही से अमरकंटक की तराई एवं अचानकमार अभयारण्य तक फैले हुए हैं। औषधि प्रजाति के इन पौधों तथा साल वनों की सघनता के कारण ही मरवाही वन मंडल की पहचान रही है और यही कारण रहा है कि छत्तीसगढ़ सरकार गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले को पर्यटन जिला घोषित कर यहां पर्यटन विकास की संभावना पर काम कर रही है परंतु सच्चाई है कि बीते दो दशक से भी ज्यादा समय से यहां चल रही अवैध कटाई से साल वनों की सघनता समाप्त होती जा रही है तथा इस इलाके में भी अब समय से पहले गर्मी महसूस होने लगती है। बस्ती बगरा से लेकर अचानकमार एवं अमरकंटक की तराई एवं अंधियार खोह सहित जिले के ज्यादातर वन क्षेत्र से साल वन कम होते जा रहे हैं जिससे जिले की नैसर्गिक खूबसूरती को खतरा उत्पन्न हो गया है वही जैव विविधता भी बुरी तरह प्रभावित हो रही है।

संरक्षित प्रजाति के इमारती पेड़ साल वन को नुकसान पहुंचाने के साथ साथ वन तस्कर कीमती औषधि पौधों को भी नुकसान पहुंचा रहे हैं। ताजा मामला बीते 20 फरवरी का है जब मुखबिर की सूचना पर वन कर्मचारियों ने मरवाही वन परिक्षेत्र के नाका बीट में खैर प्रजाति के संरक्षित औषधि पौधे को काटने के बाद दो ट्रैक्टर ट्रालियों में लोड कर ले जाते हुए पकड़ा।मुखबिर से सूचना प्राप्त हुआ कि 2 नग ट्रैक्टर में अवैध लकड़ी परिवहन हो रहा है। सूचना पाकर परिसर रक्षक नाका, परिक्षेत्र सहायक दानीकुंंडी और वन प्रबंधन समिति नाका और दानीकुंडी के सदस्यों के साथ कक्ष क्रमांक 2001 सुखाड़ नाला के पास रात्रि 12:30 को 2 ट्रैक्टर में खैर प्रजाति के गिली लकड़ी परिवहन करते पाया गया जिसके परिवहन के सम्बंध में वाहन चालकों के पास कोई वैध परिवहन अनुज्ञा पत्र नहीं था। अवैध राष्ट्रीयकृत वनोपज परिवहन पाए जाने पर दो नग ट्रैक्टर ट्राली सहित 95 नग विभिन्न साईज के गिली खैर प्रजाति के वनोपज(लकड़ी)कुल 2.509 घन मीटर जब्ती कर वन अपराध दर्ज किया गया।

वाहन चालक समय सिंह पिता सवई लाल जाती – गोंड़ उम्र 23 वर्ष, निवासी ग्राम सारसताल थाना + तहसील खड़गवाँ जिला- म. चि. भ.वाहन चालक प्रसिद्ध पिता रामशरण जाती – गोंड़ उम्र 22 वर्ष, निवासी ग्राम फुनगा थाना + तहसील खड़गवाँ जिला चिरमिरी भटगांव के खिलाफ कार्यवाही की गई है खैर प्रजाति के लकड़ी की तस्करी का मामला सामने आने के बाद मरवाही वन मंडल के अधिकारियों एवं कर्मचारियों में हड़कंप मचा हुआ है।

वन मंडल के कुछ इलाके वनों की कटाई के लिए पहले से ही बदनाम रहे हैं खासकर बस्ती बगरा क्षेत्र तो अवैध कटाई के कारण एकदम विरल हो चुका है वही मरवाही वन परि क्षेत्र का उत्तर एवं पूर्वी हिस्सा जहां खैर प्रजाति की लकड़ी पाई जाती है वहां भी वन तस्करों की नजर लंबे समय से बनी हुई है। यह वही क्षेत्र है जहां से हाथियों की आवाजाही रहती रही है।

उल्लेखनीय है कि खैर प्रजाति के पेड़ दुर्लभ तथा औषधी किस्म के होते हैं तथा इन्हें प्राकृतिक रूप से तैयार होने में काफी समय लगता है उल्लेखनीय है कि लगभग 30-35 वर्ष पहले ही इन वन क्षेत्र में खैर प्रजाति के वृक्षों की कटाई व्यापक पैमाने पर हो चुकी है परंतु अब जो अल्प मात्रा में खैर प्रजाति के वृक्ष है उन्हें भी वन तस्कर निशाना बना रहे हैं। उल्लेखनीय है कि खैर के पौधे से बनने वाला कतथा पान में उपयोग आता है जो आर्थिक दृष्टिकोण से अत्यंत महंगा है यही कारण है कि खैर प्रजाति के इन वृक्षों पर वन तस्करों की बुरी नजर लगी रहती है।

Akhilesh Namdeo

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