विरोध सरकार का नहीं देश की गरिमा के साथ खिलवाड़ है

कल यानि 26 जनवरी को जहां पूरा गणतंत्र देश दिवस मना रहा था. वही तथाकथित किसान मौलिक अधिकार के नाम पर देश की राजधानी में उपद्रव मचा रहे थे.साहब नाम से तो किसान थे, बिते 2 महीने से किसान बिल विरोध प्रदर्शन चल रहा था. पहले से सुनियोजित था, की तथाकथित किसान 26 जनवरी को ट्रैक्टर मार्च निकालेगे सरकार और प्रशासन सहमती दर्ज करते हुये ट्रैक्टर रैली की इजाजत तो दे, दी लेकिन ट्रैक्टर रैली तो एक बहाना था. करना तो कत्लेआम था. पुलिस और आम जनता के ऊपर बर्बरता के साथ जुल्म ढाहना था. जो भारत के इतिहास में काला दिन के रूप में दर्ज हो जाये.
असल में किसानों की आड़ में जों चेहरा छिपा था. वो था भारत विरोधी खालिस्तानियों का, उनका मकसद था. देश की अस्मिता को उछालना उनका ईरादा था, माँ भारतीय की गरिमा को धूमिल करना जिस काम में वो सफल रहे. अब सवाल ये उठता है,आखिर किसान नेता जो अब तक किसान आंदोलन को लीड कर रहे थे, क्या उनको सच में किसानों के मंशे की कोई भनक तक नहीं थी.
जब रैली आक्रामक और तांडवकारी हो गई, तो किसान नेता की तरफ से बयाँन आना शुरू हुआ. हमकों इस बारे में कोई जानकरी नहीं थी. इसकी हम कड़ी निंदा करते है. साहब इतिहास उठा के देख लो जितनी भी क्रांतिया हुयी है, सब में एक लीडर रहा है. अब पल्ला झाड़ने से आप लोगो की जबाब देही ख़त्म नहीं हो जाती.
आपका विरोध सरकार के नीतियों का था, किसान बिल का था, तुमको आजादी है, सरकार का विरोध करो प्रदर्शन करो लेकिन एक सिमा के भीतर रहते हुये.
आपकी आजादी वहीं तक है, जहाँ से किसी और की आजादी बाधित न हो
आपके लिये लाल किला तिरंगा कुछ न होगा लेकिन देश के तमाम लोगो की जान बसती है,उस तिरंगे में. जाके पूछो उन सैनिकों से तिरंगे की गरिमा जो अपना और अपने परिवार की परवाह किये बिना अपने प्राणों की आहुति दे देते. तुमको देश की गरिमा के साथ खिलवाड़ करने की आजादी नहीं है.
बात विरोधी पार्टियों की करे, तो बड़ा दुःख के साथ लिखना पड़ रहा. सच में विपक्ष आज सब के सब एक थाली के चट्टे बट्टे हो गए है. विरोध प्रदर्शन का यही एक सहारा बचा है. देश की अस्मिता गौरव को ताख पर रख के अपनी राजनितिक साख को फिर से बनाना तो चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिये.एक लोकतांत्रिक देश की अस्मिता उसका गौरव उसका प्रधान सेवक नहि बल्कि उस देश का संविधान होता और देश की पहचान होती. सत्ता का ताज तो बदलता रहता लेकिन देश की गरिमा धूमिल न हो राजनितिक अखाड़े में इतना ध्यान रखना चाहिये.
लिखने को तो बहुत कुछ है, लेकिन कलम की भी एक सिमा होती. शब्दो की एक मर्यादा होती.भावनाओ को शब्दो की माला में पिरोह कर लिखा भी नहीं जा सकता कल की स्थिति सच में हृदय को द्रवित कर के रख दिया. माँ भारतीय के उन वीर सपूतों की भावनाओ के साथ खिलवाड़ हुआ है जिन्होंने देश को आजाद कराने के लिये हसते हसते अपने प्राणों की आहुति दे दी.आज उन सपूतों का कलेजा रो रहा होगा आखिर जिनके लिये हम अपने प्राणों को नेवछावर कर दिये सच में वो उस काबिल थे?
सरकार से यही उम्मीद है, देश की अस्मिता और गौरव के साथ खिलवाड़ करने वाले खलिस्तानियों देश विरोधियों को जरूर सबक सिखाये,जिससे आने वाले भविष्य में कभी कोई ऐसी निंदनीय घटना करने से पहले उसके रूह काँप जाये.
जय हिन्द जय भारत भारत माता की जय
