सेना ने चला ड्रैगन को मात देने का मास्टरस्ट्रोक

सेना ने चला ड्रैगन को मात देने का मास्टरस्ट्रोक

किसी भी देश को मात देना हो तो एक रणनीति बहुत जरुरी होता है. रणनीति सीमा की पहरेदारी के साथ-साथ दुश्मन देश की भाषा संस्कृति सभ्यता को जानना बेहद जरुरी है, भारतीय सेना इस दिशा में एक निर्णायक कदम बढ़ा दिया है. अब भारतीय सेना ड्रैगन को मात देने की दिशा में बड़ी सेंधमारी करने की योजना को अमली जामा पहनाने जा रही है. सेना ने तिब्बत के इतिहास, वहां की संस्कृति और भाषा को जानने-समझने की रणनीति बनाई है. इसके तहत आर्मी अफसरों को एलएसी के दोनों तरफ के तिब्बत का गहराई से अध्ययन करने को कहा जाएगा सूत्रों ने बताया कि भारतीय सेना इस प्रस्ताव (Tibetology Proposal) को आखिरी रूप देने में जुटी है.

इन सात संस्थानों की हुई पहचान

जिन सात संस्थानों का चयन किया गया है, वो हैं- दिल्ली यूनिवर्सिटी का बौद्ध अध्ययन विभाग, वाराणसी स्थित सेंट्रल इंस्टिट्यूट फॉर हाइयर तिब्बतन स्टडीज, बिहार का नवा नालंदा महाविहार, प. बंगाल की विश्व भारती, बेंगलुरु स्थित दलाई लामा इंस्टिट्यूट फॉर हाइयर एजुकेशन, गंगटोक का नामग्याल इंस्टिट्यूट ऑफ तिब्बतॉलजी और अरुणाचल प्रदेश के दाहुंग स्थित सेंट्रल इंस्टिट्यूट ऑफ हिमालयन कल्चर स्टडीज.

तिब्बत के अध्ययन का प्रस्ताव पहली बार अक्टूबर महीने में आयोजित आर्मी कमांडरों के सम्मेलन में आया था. अब सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे के निर्देश पर शिमला स्थित आर्मी ट्रेनिंग कमांड (ARTRAC) की ओर से प्रस्ताव के विश्लेषण का काम बढ़ रहा है. एआरटीआरएसी ने तिब्बतॉलजी (Tibetology) में पोस्ट ग्रैजुएट की डिग्री देने वाले सात संस्थानों की पहचान की है जहां आर्मी अफसरों को अध्ययन के लिए छुट्टी (Study Leave) पर भेजा जा सकता है. प्रस्ताव में आर्मी अफसरों को तिब्बत के बारे में संक्षिप्त अध्ययन के लिए भी इन संस्थानों में भेजने का सुझाव शामिल है.

चीन की दुखती रग है तिब्बत

दरअसल, चीन के लिए तिब्बत एक दुखती रग है जिसे भारत ने अब तक नहीं छेड़ा है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि भारत ने 1954 में ही बड़ा मौका खो दिया जब चीन के साथ ट्रेड एग्रीमेंट के दौरान तिब्बत क्षेत्र को चीन का हिस्सा मान लिया. हालांकि, एलएसी पर छिड़े ताजा संघर्ष में भारत में रह रहे निर्वासित तिब्बतियों के स्पेशल फ्रंटियर फोर्स (SFF) के एक जवान की शहादत को सार्वजनिक कर चीन को सीधा संदेश देने की कोशिश जरूर हुई है। एक एक्सपर्ट ने कहा, “अगर आप चीन के साथ संघर्ष में तिब्बत कार्ड खेलना चाहते हैं तो आपको तिब्बत मामलों की विशेषज्ञता हासिल करनी होगी।”

‘पाकिस्तान को बहुत जानते हैं, लेकिन चीन को नहीं’

सेना के एक अधिकारी ने कहा, “आर्मी के अफसर आम तौर पर पाकिस्तान के बारे में बहुत-कुछ जानते है, लेकिन उनमें चीन और चीनी मानसिकता की ऐसी ही समझ का अभाव है. चीन को अच्छे से समझने वाले अफसरों की संख्या बहुत कम है। तिब्बत को समझने वाले तो और भी कम हैं। इन कमियों को दूर करना होगा.” सेना का कहना है कि एक बार चीन और तिब्बत की भाषाई, सांस्कृतिक और व्यावहारिक समझ विकसित कर लेने पर अफसर को लंबे समय तक एलएसी के पास तैनाती सुनिश्चित कर दी जाएगी। उन्हें उच्चस्तरीय भाषाई ज्ञान हासिल करना होगा. एक अधिकारी ने कहा, “मैंडरीन (चीनी भाषा) में सिर्फ दो साल का कोर्स करने भर से काम नहीं चलेगा.”

 

 

Akhilesh Namdeo