एक्शन मूड में बाईडेन ट्रम्प के फैसलों पर उलटफेर शुरू

एक्शन मूड में बाईडेन ट्रम्प के फैसलों पर उलटफेर शुरू

सत्ता बदलती तो हुकूमत का तरीका बदलता, सिद्धांत बदलते रणनीति बदलती अमेरिका में हाल ही में ट्रम्प की जगह बाइडेन सत्ता संभाले है. सत्ता संभाले अभी सप्ताह भर हुआ, बाइडेन पूरे तरीकें से एक्शन मूड में नजर आ रहें है. 2 दिन पहले प्रवासियों के लिये H1 बीजा में बदलाव किया था, और आज सामरिक महत्व से जुड़े बड़े फैसले को लेते हुये सऊदी अरब और यूएई को हथियार बेचने पर अस्थायी रूप से रोक लगा दी है.

डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल के दौरान सऊदी अरब और यूएई को आधुनिक हथियार बेचने के लिए हुए अरबों डॉलर के समझौते को मंजूरी दी गई थी. बाइडेन सरकार अब इस इस फैसले की समीक्षा करेगी.

बाइडेन को सत्ता में आए अभी सिर्फ एक हफ्ते ही हुए हैं लेकिन उन्होंने पहले ही साफ कर दिया है कि मध्यपूर्व को लेकर अमेरिकी की विदेश नीति ट्रंप सरकार से बहुत अलग होने वाली है. बाइडेन सरकार ने इस बात के भी संकेत दे दिए हैं कि अमेरिका अब यमन में ईरान समर्थित हूती विद्रोहियों के खिलाफ सऊदी अरब और यूएई के अभियान को समर्थन देना जारी नहीं रखेगा.

अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने बुधवार को अपनी पहली प्रेस ब्रीफिंग में कहा, “सऊदी और यूएई को हथियारों की बिक्री की समीक्षा इसलिए की जा रही है ताकि हमारे रणनीतिक मकसद पूरे हों और हमारी विदेश नीति आगे बढ़ सके. हम इस वक्त यही कर रहे हैं.”

अमेरिका के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने बुधवार को एक बयान में कहा कि दोनों देशों को अमेरिकी हथियारों की बिक्री पर अस्थायी रूप से रोक लगाई गई है. ताकि नए नेतृत्व को इसकी समीक्षा करने का मौका मिल सके. प्रवक्ता ने कहा, “सत्ता हस्तांतरण के दौरान ये एक सामान्य प्रक्रिया होती है और इससे प्रशासन की पारदर्शिता और सुशासन को लेकर प्रतिबद्धता जाहिर होती है.”

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अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने सीनेट के सामने सुनवाई के दौरान कहा था कि यमन में हूती विद्रोहियों के खिलाफ सऊदी के हमले की वजह से गंभीर मानवीय संकट खड़ा हो गया है. हूती विद्रोहियों को ईरान का समर्थन हासिल है और इस गठजोड़ के खिलाफ सऊदी अरब-यूएई ने मिलकर यमन में युद्ध छेड़ रखा है.

ट्रंप ने नवंबर महीने में यूएई को एफ-35 और सशस्त्र ड्रोन समेत आधुनिक हथियारों की बिक्री को मंजूरी दी थी. ये सौदा 23 अरब डॉलर से भी ज्यादा का था. अमेरिका के पूर्व विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने इसके बाद बयान जारी कर कहा था, ये यूएई के साथ हमारे मजबूत रिश्ते का संकेत है. ईरान से बढ़ते खतरे के खिलाफ यूएई को अपनी सुरक्षा के लिए आधुनिक हथियारों की सख्त जरूरत है.

 

ट्रंप ने अपने कार्यकाल में हमेशा मानवाधिकारों और जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों से ज्यादा आर्थिक हितों को प्राथमिकता दी. सऊदी अरब और यूएई को हथियारों की बिक्री से भी ट्रंप का रुख स्पष्ट था. हालांकि, बाइडेन ट्रंप के उलट मानवाधिकार उल्लंघन को लेकर बेहद गंभीर हैं. इसके अलावा, बाइडेन ईरान के साथ हुए परमाणु समझौते को बहाल कर सकते हैं. इससे सऊदी अरब, यूएई और इजरायल की चिंता बढ़ना तय है.

जब ट्रंप ने सीनेट में यूएई को एफ-35 समेत आधुनिक हथियार बेचने पर सहमति दी थी तो उस वक्त भी बाइडेन की डेमोक्रेटिक पार्टी ने इसका विरोध किया था. पार्टी के कई सांसदों का कहना था. कि इससे मध्यपूर्व में भी हथियारों के लिए होड़ शुरू हो जाएगी. हालांकि, इस सौदे को रोका नहीं जा सका था.
एफ-35 के अलावा, अमेरिका यूएई को सशस्त्र ड्रोन की सप्लाई भी करने वाला था, वहीं सऊदी अरब को भी भारी मात्रा में हथियार हासिल होने वाले थे.

मानवाधिकार संगठनों ने ट्रंप प्रशासन के फैसले का विरोध किया था और कहा था कि इससे यमन और लीबिया में क्षेत्रीय संघर्ष बढ़ सकता है जहां पर हूती
विद्रोहियों के खिलाफ पहले से ही सऊदी अरब और यूएई ने युद्ध छेड़ रखा है. ट्रंप ने कारोबारी नजरिए से हथियारों की बिक्री को सही ठहराया था और कहा था कि सऊदी अमेरिकी कंपनियों से हथियार खरीदकर अमेरिकियों के लिए रोजगार पैदा कर रहे हैं.

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की विदेश नीति इजरायल को मजबूत समर्थन देने और ईरान के खिलाफ अधिकतम दबाव पर केंद्रित थी. इजरायल के साथ-साथ सऊदी अरब और यूएई भी ईरान को अपने लिए एक खतरे की तरह लेते हैं. ऐसे में, ईरान के क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वी सऊदी अरब और यूएई को भी ट्रंप के कार्यकाल में भरपूर सहयोग मिला. ट्रंप ने ईरान के साथ साल 2015 में हुए परमाणु समझौते से भी अमेरिका को बाहर कर लिया था और उस पर प्रतिबंध लगा दिए थे. सऊदी और यूएई भी ईरान के खिलाफ ट्रंप के सख्त रुख के पक्ष में थे. हालांकि, बाइडेन सरकार के आने के बाद से मध्यपूर्व के देशों में खलबली मची हुई है.

 

Akhilesh Namdeo