आत्मनिर्भरता बना वर्ड ऑफ़ द ईयर

आत्मनिर्भरता बना वर्ड ऑफ़ द ईयर

ऑक्सफ़ोर्ड लैंग्वेजेज़ के अनुसार हर साल किसी ऐसे शब्द को चुना जाता है, जिससे बीते साल का मूड और लोगों की व्यवस्था झलकती हो और जिसका आने वाले दौर में भी सांस्कृतिक महत्व होता है. आत्मनिर्भरता शब्द की सोच और अर्थ गत वर्ष अधिकांश भारतीयों की भावनाओं का भाग रहा है.

‘आत्मनिर्भरता’ शब्द को ऑक्सफ़ोर्ड लैंग्वेजेज़ ने वर्ष 2020 के लिए हिंदी ऑक्सफ़ोर्ड शब्द चुना है. कोरोना महामारी के प्रारंभिक समय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा कोविड-19 पैकेज की घोषणा के दौरान लोगों को आत्मनिर्भर बनने पर ज़ोर देते हुए कहा था कि कोरोना महामारी से देश को बाहर निकालने के लिए हमें “देश, समाज, अर्थव्यवस्था तथा स्वयं के लिए आत्मनिर्भर भारत का निर्माण करना होगा.”

प्रेस रिलीज़ करके ऑक्सफ़ोर्ड लैंग्वेजेज़ ने कहा है कि “बीता साल भारत के लिए काफ़ी कठिनाइयों भरा रहा था. वैश्विक महामारी महामारी कोरोना के कारण से यहाँ 69 दिन सख़्त लॉकडाउन लगा था. लोगों के आवागमन को लेकर लगाई गई पाबंदियों का सीधा असर इस देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ा, लाखों लोग इससे प्रभावित हुए. इन मुश्किल भरे हालातों में भी लोगों ने अपने प्रयास जारी रखे और आत्मनिर्भरता का प्रमाण दिया.”

कृतिका अग्रवाल जो कि हिंदी वर्ड ऑफ़ द ईयर की सलाहकार समिति के पैनल की सदस्य हैं, ने बताया कि “हमें कई शब्द एंट्री करने के लिए मिले थे, लेकिन महामारी के दौर में आत्मनिर्भरता शब्द असंख्य भारतीयों के दैनिक जीवन संघर्ष और उनकी जंग को परिभाषित करता है, इसीलिए इस शब्द का चुनाव किया गया”

इस शब्द का प्रयोग इसके बाद से ही काफ़ी बढ़ गया, लोग इस शब्द को सामान्य बोलचाल में भी इस्तेमाल करने लगे. इस वर्ष के गणतंत्र दिवस की परेड में इसकी झलक भी देखने को मिली, बायोटेक्नोलॉजी विभाग ने इस वर्ष गणतंत्र दिवस पर आयोजित हुई परेड में ‘मेड इन इंडिया’ या ‘आत्मनिर्भर भारत’ नाम की झांकी निकाली थी, जिसको देखकर देशवासी बहुत खुश एवं प्रभावित हुए

साथ ही ऑक्सफ़ोर्ड लैंग्वेजेज ने ये भी कहा है, “आत्मनिर्भरता की यह अवधारणा कोई नई नहीं है, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को लेकर यह अवधारणा महात्मा गांधी के द्रष्टिकोण से मिलती-जुलती है. राष्ट्रपिता गांधी का भी यही कथन था कि प्रत्येक गाँव का विकास अपने आप में एक आत्मनिर्भर इकाई के रूप में होना चाहिए.”

भारत सरकार ने 1960 और 70 के दशक में जो हरित क्रांति और दुग्ध क्रांति के नाम पर क़दम उठाए थे, वो भी इसी दिशा में किये गये प्रयास थे. सरकार ने उस दौर में देश के अंदर उत्पन्न हुए खाद्य संकट के समाधान के उद्देश्य से प्रकार के क़दम उठाए थे.

                                 aatmanirbhar

गांधी का आत्मनिर्भरता का विज़न

पुस्तक ‘स्वतंत्रयोत्तर भारत में ग्राम्य विकास और गांधी दर्शन’ में केशन पांड्या द्वारा लिखित है कि, “गांधी जी ने गाँवों में सत्ता के विकेंद्रीकरण का विचार  अपने विभिन्न लेखों तथा व्याख्यानों के माध्यम से दिया था. वे प्रत्येक गाँव को निजी भौतिक आवश्कताओं की प्रतिपूर्ति हेतु यथासंभव आत्मनिर्भर बनाना चाहते थे.”

गांधी जी की अवधारणा का ज़िक्र पीटर गॉन्ज़ालेविस ने भी अपनी किताब ‘गांधी के क्रांति के महाप्रतीक’ में किया है, जिसमे गाँव में व्यवस्था कैसी होनी चाहिए और वहाँ की अर्थव्यवस्था कैसी हो आदि की पूर्ण जानकारी उपलब्ध है.

उन्होंने लिखा है कि गांधी जी के मतानुसार, “प्रत्येक गाँव को अपने मामलों को व्यवस्थित करने में इतना सक्षम और आत्मनिर्भर होना चाहिए, जिससे कि वो पूरी दुनिया से भी स्वयं की रक्षा कर सके. यह दुनिया पर निर्भर रहने या पड़ोसियों से सहायता लेने में भी बाधा उत्पन्न नहीं करता है.”

“स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान भी गांधी जी ने ग्रामीण लोगों को कपड़े के लिए स्वयं का कपास और भोजन के लिए अपनी फसल उगाने हेतु प्रोत्साहित किया.”

 

Akhilesh Namdeo