निजता को मिल पायेगी क़ानूनी मान्यता

पृथ्वी पर मानव विकास में भाषा को आवश्यक तत्त्व के रूप में स्वीकार किया जा सकता है. भाषा ही मानव विचारों के आदान-प्रदान में प्रबल माध्यम बनी. जैसे-जैसे मानव पीढ़ी का विकास हुआ, वैसे ही भाषा का भी विकास होता चला गया. समयानुसार मानव विकास के स्तर में बदलाव आया और इसी के साथ भाषा का स्तर और रूप भी अत्यधिक व्यापक हो गया. आज हम भाषा के तात्पर्य को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जोड़ सकते हैं. वर्तमान समय में अभिव्यक्ति की इसी व्यापकता के कारण निजता के क़ानूनी अधिकारों को लेकर जंग छिड़ गयी है.
विश्व का इतिहास उठा कर देखें, तो पाएंगे कि पिछले तीन-चार सौ साल से दुनिया में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर एक बड़ी लड़ाई चल रही है. लोकतंत्र में समानता और स्वतंत्रता के लिहाज से ब्रिटेन, यूरोप, अमेरिका और भारत जैसे कई देशों में तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता उपलब्ध हो गई है. लेकिन आज भी बहुत से लोकतांत्रिक देश ऐसे हैं, जहां के नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता उपलब्ध नहीं है. उदाहरण के रूप में, आप चीन, रुस और कुछ अफ्रीकी देशों को देख सकते हैं, जहां अभिव्यक्ति की आजादी के लिए लड़ाई आज भी जारी है.
ध्यान देने वाली बात यह है कि आजकल दुनिया में एक और नई लड़ाई छिड गई है. इस लड़ाई का तात्पर्य व्यक्तिगत तथ्यों को छुपाने की स्वतंत्रता से है. व्यक्तिगत तथ्यों को छुपाने का अर्थ यही है कि आपने यदि किसी से फोन पर चैट के माध्यम से या फिर ई-मेल से कोई बातचीत की है, तो उसे कोई तीसरा व्यक्ति न जान पाये. वह तभी जाने, जब आप उसे जानने की अनुमति प्रदान करें.
अभी भी अनजान हैं लोग
बदलते तकनीकी दौर में आज के समय में दुनियाभर में करोड़ों लोग प्रतिदिन अरबों-खरबों संदेशों का आदान-प्रदान कर रहे हैं. लेकिन बहुत से लोग इस बात से अनभिज्ञ होते हैं कि उनके हर एक संदेश पर कुछ खास लोगों की नजर रहती है. कौन हैं ये नजर रखने वाले लोग? ये दुनिया के प्रचलित सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स (जैसे:- व्हाट्सएप और फेसबुक) द्वारा नियुक्त किये गये अधिकारी होते हैं. इनके पास कुछ ऐसी तकनीकें होती हैं, जिनके माध्यम से ये आपकी गोपनीय बातों एवं संदेशों को सुन और पढ़ सकते हैं. सवाल यह खड़ा होता है कि आखिर वो ऐसा क्यों करते हैं. इसमें उनका क्या स्वार्थ छिपा है. क्या वह आप को आर्थिक नुकसान पहुंचा सकते हैं? आपके मन-मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव डाल सकते हैं अथवा आपको ब्लैकमेल कर सकते हैं या फिर आपके आपसी रिश्तों को बिगाड़ सकते हैं. गौर करने वाली बात यह है कि मीडिया प्लेटफॉर्म्स की यह प्रक्रिया आम लोगों के साथ-साथ यह सवाल देश के प्रशासनिक तंत्र, मंत्री और सांसदों पर भी और यहां तक कि प्रशासनिक एवं सुरक्षा अधिकारियों के ऊपर भी लागू होती होगी.
सुरक्षा पर भी सवाल
आज के समय में विभिन्न प्रशासनिक एवं सुरक्षात्मक सूचनाएं भी इन्हीं मीडिया प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से प्रशासनिक अंगों तक भेजी जाती हैं. अतः यह सवाल उठाना लाज़मी है कि यदि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है, तो फिर व्यक्तिगत निजता के अधिकार क्यों नहीं हैं. निजता का तात्पर्य व्यक्तिगत गोपनीयता से है. मजे की बात यह भी है कि आज तक हमारे संविधान में मौलिक निजता की कोई सुरक्षा उपलब्ध नहीं है.
सुप्रीमकोर्ट में हुई खींच-तान
साल 2017 में सर्वोच्च न्यायालय में इस मुद्दे को लेकर जमकर खींच-तान और बहस हुई. अब 4 साल बाद 2021 में भी सर्वोच्च न्यायालय में यही मुद्दा फिर से जोरों पर है. गौर करने वाली बात यह है कि 2017 और 2021 के बीच में गहरा अंतर है. यदि हम वर्ष 2017 की बात करें, तो तब निजता का पहला मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था. इसमें याचिकर्ताओं की मांग यह थी कि निजता को भी अभिव्यक्ति की तरह ही संविधान के मूल अधिकार में शामिल किया जाये.
लेकिन तब सरकारी वकील ने तर्क दिया कि यदि निजता को मूल अधिकार बना दिया जाता है, तो उसकी आड़ में वेश्यावृत्ति, तस्करी तथा विदेशी जासूसी, जैसी आपराधिक, राष्ट्रद्रोह एवं आतंकी गतिविधियाँ भी बिना किसी रोक-टोक के धड़ल्ले से चल सकती हैं. उस समय के सरकारी वकील ने सर्वोच्च न्यायालय के वर्ष 1954 और 1956 के दो फैसलों का भी जिक्र किया था. जिसमे निजता के अधिकार को मान्य नहीं किया गया था.
बात 2021 की करें, तो निजता के अधिकार की मंजूरी के लिए अब तो सरकारी वकील ही सर्वोच्च न्यायालय में पूरा जोर लगा रहे हैं. वजह यह है कि व्हाट्सएप और फेसबुक जैसी कंपनियों के बारे में यह शिकायतें आ रही हैं कि ये कंपनियां लोगों की जासूसी के द्वारा बहुत से फायदे उठा रहीं हैं. व्हाट्सएप से भेजे जाने वाले संदेशों से तो इतना अधिक फायदा उठाया जा रहा है कि फेसबुक ने व्हाट्सएप को 19 अरब डालर की मोटी रकम देकर ख़रीदा है.
आप व्हाट्सएप पर ध्यान देंगे तो उसकी प्राइवेसी पॉलिसी में यह साफ-साफ लिखा रहता है कि आपके संदेश को कोई पढ़ नहीं सकता है और न ही सुन अथवा देख सकता है, लेकिन इस साल उसने घोषणा की कि 8 फरवरी 2021 से व्हाट्सएप द्वारा भेजे गये हर संदेश और बातचीत पर फेसबुक की निगरानी रहेगी, यानी फेसबुक उन संदेशों को देख, सुन अथवा पढ़ सकता है. जैसे ही यह खबर लोगों के बीच आयी, तो लोगों के बीच हंगामा मच गया. हंगामे को देखते हुए व्हाट्सएप ने अब 8 फरवरी की डेट लाइन को 15 मई तक के लिए बढ़ा दिया है. इससे लोगों के बीच प्राइवेसी को लेकर इतना भय बैठ गया है कि लोग व्हाट्सएप की जगह टेलीग्राम एवं सिग्नल जैसे नए माध्यमों से जुड़ रहे हैं.
आज कल सर्वोच्च न्यायालय में सरकारी वकीलों और फेसबुक के वकीलों के बीच जमकर बहस हो रही है. भारत के सरकारी वकीलों ने फेसबुक से यह सवाल किया है कि यूरोप के देशों में जो व्यवस्था 2 साल से लागू है वह भारत में क्यों नहीं लागू हो सकती. यूरोपीय संघ ने निजता भंग करने के ऊपर कड़े प्रतिबंध लगा दिए हैं और जो कंपनियां इसका उल्लंघन करती हैं, उन्हें भारी जुर्माना देना पड़ेगा. यूरोपीय देशों में यह नियम है कि व्यक्ति विशेष की अनुमति के बिना कोई भी उसकी निजता को भंग नही सकता है. आज यूरोपीय देशों में बच्चे 16 साल की उम्र से ही व्हाट्सएप इस्तेमाल कर सकते हैं.
गौर करने वाली बात यह भी है कि सर्वोच्च न्यायालय भी निजता के अधिकार की रक्षा में गहरी दिलचस्पी दिखा रहा है. चीफ जस्टिस एस.ए. बोबडे की अध्यक्षता वाली खंड पीठ ने फेसबुक के वकीलों से कहा है कि आपकी कंपनी 2-3 ट्रिलियन की कंपनी क्यों न हो, लेकिन लोगों की निजता की कीमत आपकी कंपनी की कीमत से ज्यादा है और उसकी सुरक्षा देश की जिम्मेदारी है. खंडपीठ ने फेसबुक से कहा कि 4 हफ्ते में वे अपनी प्रतिक्रिया दें. ऐसे में फेसबुक के वकीलों की दलील थी कि यदि भारतीय संसद यूरोप जैसा कानून बना देगी, तो हम उसका भी पालन करेंगे. अतः हमारी संसद को भी निजता के कानून को बनाते समय विशेष सावधानी बरतनी होगी.
क्या हो सकती आगे की राह
सोशल मीडिया के ऊपर लोगों की निर्भरता आज के समय में काफी हद तक बढ़ चुकी है. भारत में 2015 के बाद लोगों में जो एक बड़ा बदलाव देखने को मिला है, वो बदलाव है स्वदेशी अपनाने की होड़ का. चीन के साथ मचे विवाद के समय आपने देखा होगा कि बहुत से लोगों ने चीनी ऐप्स का खुद ही बहिष्कार करना शुरू कर दिया था. हाल ही में ट्विटर से उपजे बवाल के बाद लोगों ने कू(KOO) नामक एक भारतीय सोशल मीडिया ऐप को अपनाना शुरू कर दिया है. ऐसे में देश की जनता भी सरकार के साथ है. इसमें कोई संदेह नहीं है कि सरकार यदि कोई फैसला देश हित और आम जनता के हित को देखते हुए लेती है, तो आम जनता का समर्थन सरकार को पूर्ण रूप से मिलेगा. यदि फेसबुक और व्हाट्सएप निजता के ऊपर सेंधमारी करतें हैं और अपने फैसले नहीं बदलते हैं, तो सरकार आम जन के निजता के अधिकार को ध्यान में रखकर भारत में फेसबुक और व्हाट्सएप पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगा सकती है. हां, साथ ही यह भी जरूरी है कि लोगों को फेसबुक और व्हाट्सएप जैसे सोशल प्लेटफॉर्म्स के स्थान पर भारतीय प्लेटफॉर्म्स का विकल्प मिल सके.
