फलता फूलता सिलिंडर

फलता फूलता सिलिंडर

और भैया क्या हाल चाल. जलवे हैं आजकल तो. मतलब एकदम गज़ब ढाए हो. जहाँ देखो बस तुम्हारे चर्चे हैं.  प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, सोशल मीडिया हर तरफ तुम ही तुम हो. क्यों गैस सिलिंडर महोदय, सही कह रहे हैं ना???

भाव तो बहुत खा रहे हो. जमीन पे पैर नहीं टिक रहे. तुम ऐसा करोगे यकीन नहीं होता.  दिल की जगह दिल ही है या पत्थर वत्थर लगवा लिए हो.  तुम भी जियो बन गए हो.  सिलिंडर महोदय, पहले सस्ता दे दे के लोगों को बहलाये.  चूल्हा, अँगीठी के नुकसान और अपने फायदे बता बता के खूब फुसलाये.  ऐसी गन्दी आदत लोगों में डलवा दी कि एक पल तुम्हारे बिना न रह सके.  जब तुम जान गए कि अब जनता पूरी तरह से तुम्हारे खोपचे में आ चुकी है, तब तुमने अपना असली रूप दिखाना शुरू कर दिया.

शुरू शुरू में तो सब्सिडी का ऐसा लॉलीपॉप दिए कि आदमी एकदम से झांसे में आ गया. सिलिंडर महोदय, तुम बढ़ते तो सब्सिडी बढ़ती, तुम घटते तो सब्सिडी घटती.  ऐसी जुगलबंदी कम ही दिखती है.  कुछ दिन तो ये खेला खूब चला. लेकिन अब तुम्हारे इरादे नेक नहीं लगते.  तुमने एक गहरी बल्कि बहुत गहरी साजिश रची.  पहले तो खूब घटे और साथ में सब्सिडी में घटाए.  इसके बाद तो तुमने अपना असली रंग ही दिखा दिया.  तुम बढ़ते गये, बढ़ते गये.  अब तो बस एक झटका ही बाकी है, और सीधे 800 पार.

चलो ये भी सह लेते, लेकिन ये बताओ कि सब्सिडी कहाँ छोड़ आए.  गई तो तुम्हारे ही साथ थी, फिर साथ लौटी क्यों नहीं.  जब तुम 600 तक गिर गए थे, तब सोलह सत्रह थी, अब जब 800 पहुँचने वाले हो तब भी वो उतने पर ही अटकी है.  कोई झगड़ा हुआ है क्या तुम दोनों का??? नहीं नहीं, हुआ है तो बता दो.  कोई एक दो नहीं, ये बात तो पूछता है भारत.  वैसे भी झगड़े में कुछ नहीं रखा.  प्यार मोहब्बत से मिलके रहो.  पहले तो बड़ा प्यार था दोनों में. अचानक से क्या हो गया.  हमें तो तुम्हारे ऊपर पूरा डाउट है.  कैरेक्टर ढीला लगता है तुम्हारा.  जरूर कुछ ऊटपटांग हरकत किये होगे बेचारी सब्सिडी के साथ.

कुछ याद है 2014 चुनाव से पहले तुम्हारी फोटो लगा के लोग कहते थे ‘बहुत हुई महंगाई की मार, अबकी बार…’.  तुम्हारी फोटो लगा के लोग भोली भाली जनता को बेवकूफ बना दिए.  अब वही लोग सारा दोष तुम्हारे ऊपर मढ़े दे रहे हैं.  जनता का तो कुछ ख्याल करो भाई.  पहले ही लोगों का इतना नुकसान कर चुके हो.  जब से तुम आये हो, लोगों में गैस की समस्या बढ़ गई है.  नहीं तो देख लेयो, घर घर में गैस का चूरन मिल जायेगा.  पूरी पूरी पिक्चरें गैस के ऊपर बनी जा रही हैं.

ठीक है कभी कभी उछल लिया करो सेहत के लिए जरूरी है लेकिन इतना तो ध्यान रखो कि लोगों के चूल्हे भी जलते रहें.  भैया फलो फूलो लेकिन कम से कम पैर तो जमीन पे ही रखो.  या तुम्हें भी मीडियाजीवी बनने का शौक चर्राया हो बता दो.  फिर जनता भी अपना इंतजाम कर ले.  जिस तरह से तुम बेतहाशा बढ़े जा रहे हो, पक्का तुम खुद गैस की समस्या की गिरफ्त में आ चुके हो.

*यह एक व्यंग्य लेख है. इसका उद्देश्य किसी व्यक्ति, वस्तु, संस्था या स्थान की छवि खराब करना नहीं है. न ही इसका कोई राजनीतिक मन्तव्य है.

Akhilesh Namdeo