पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ने की गणित समझिये

देशभर में एक बार फिर से पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों की वजह से हंगामा शुरू हो गया है. आखिर पेट्रोल और डीजल के दाम अचानक से इतने कैसे बढ़ गये. आज के समय में देश की अर्थव्यवस्था और आमजन के आवागमन में पेट्रोल, डीजल और एलपीजी आवश्यक तत्त्व के रूप में है.
इस समय देशभर में पेट्रोल और डीज़ल की कीमतें आसमान छू रही हैं. आज राजधानी दिल्ली में पेट्रोल का भाव 90.19 रुपये प्रति लीटर और डीज़ल का भाव 80.60 रुपये प्रति लीटर पर पहुंच गया है. लगातार बढ़ते तेल की कीमतों की वजह से आम लोगों में आक्रोश होना स्वभाविक सी बात है. सरकार की दलीलें हैं कि अक्टूबर 2020 के बाद से अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल का भाव करीब 50 फीसदी तक बढ़कर 63.3 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया है. जिसके कारण तेल रिटेलिंग कंपनियों को पेट्रोल-डीज़ल के दाम बढ़ाने पड़ रहे हैं. ध्यान देने वाली बात यह है कि कच्चे तेल का भाव पिछले साल जनवरी की तुलना में कम है, जबकि पिछले साल जनवरी की तुलना में इस साल डीज़ल-पेट्रोल का भाव ज्यादा हो गया है.
भारत में पेट्रोल-डीज़ल के दाम बढ़ने का कारण?
आप सभी जानते हैं कि भारत पेट्रोल और डीज़ल के लिये पूरी तरह से दूसरे देशों पर आश्रित है. भारत में पेट्रोल-डीज़ल का दाम, वैश्विक बाजार में कच्चे तेल के भाव पर निर्भर है. ये कहा जा सकता है कि विश्व के बाजार में कच्चे तेल के दाम कम होने से भारत में पेट्रोल-डीज़ल सस्ता होगा. अगर वैश्विक बाजार में कच्चे तेल का दाम बढ़ता है, तो पेट्रोल-डीज़ल का दाम भारत में भी बढ़ जाएगा, लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि हर बार ऐसा नहीं होता है. जब अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल का दाम बढता है, तब ग्राहकों पर तो इसका बोझ डाला जाता है. लेकिन जब कच्चे तेल का दाम कम होता है, उस वक्त सरकार अपना राजस्व बढ़ाने के लिए ग्राहकों पर टैक्स का बोझ डाल देती है. इस तरह से हम समझ सकते हैं, वैश्विक बाजार में कच्चे तेल का भाव कम होने से आम लोगों को कुछ खास राहत नहीं मिलती है.
पिछले साल जब कोरोना वायरस महामारी का प्रकोप आया, तब क्रूड ऑयल के भाव में भारी गिरावट देखने को मिली. लगातार 82 दिनों तक खुदरा ईंधन के भाव में तेल कम्पनियों ने कोई बदलाव नहीं किया. इस लिहाज से ग्राहकों को 2020 के पहले 6 महीने में सस्ते कच्चे तेल का लाभ मिलना चाहिये था, लेकिन नहीं मिला, जबकि दूसरे 6 महीने में सरकार ने टैक्स का बोझ डाल दिया.
कच्चे तेल का भाव बढ़ने का कारण
मार्च 2020 के बाद दुनिया पूरी तरह से महामारी की चपेट में आ गयी थी. अप्रैल 2020 के दौरान दुनिया ठप सी हो गयी थी. दुनियाभर में ईंधन की मांग का कम होना स्वाभाविक सी बात थी. जिससे कच्चे तेल के भाव में ऐतिहासिक गिरावट देखने को मिली. उस समय पूरी दुनिया में आर्थिक गतिविधियां लगभग न के बराबर चल रही थी. कोरोना वैक्सीन आने के बाद अचानक से वैश्विक स्तर पर तेल की मांग बढ़ी है. 2020 में जून से अक्टूबर के बीच 40 डॉलर प्रति बैरल रहने वाली कच्चे तेल की कीमत कोरोना वायरस की वैक्सीन आने के बाद 60 डॉलर प्रति बैरल के पार पहुँच गयी है.
दुनिया के सबसे बड़े तेल उत्पादक देश के रूप में सऊदी अरब का नाम सामने आता है. इसके बाद रूस और फिर अमेरिका का नंबर आता है. सऊदी अरब ने फरवरी-मार्च के दरमियान कच्चे तेल के उत्पादन में 10 लाख बैरल प्रति दिन तक कटौती करने का फैसला लिया है. ये भी एक कारण हो सकता है कि कच्चे तेल के दाम में तेजी देखने को मिल रही है.
टैक्स का क्या असर पड़ेगा?
केंद्र सरकार पिछले एक साल में पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी (एक प्रकार का अप्रत्यक्ष कर होता है. इसे हम एक्साइज टैक्स के नाम से भी जानते हैं, जो वस्तुओं के उत्पादन या मैन्युफैक्चरिंग पर लगाया जाता है) को बढ़ाकर 32.98 रुपये कर दिया. 2020 के शुरुआत में यह 19.98 रुपये था. इसी प्रकार डीज़ल पर सरकार ने एक्साइज ड्यूटी को बढ़ाकर 31.83 रुपये कर दिया है. जनवरी 2020 में यह करीब 15.83 रुपये था. सवाल ये खड़ा होता है कि आखिर सरकार ने अचानक से एक्साइज ड्यूटी को इतना क्यों बढ़ा दिया? आप सभी जानते हैं कि महामारी के दौरान आर्थिक गतिविधियाँ लगभग बंद हो गयी थी. महामारी के दौरान सरकार के वित्तीय कोष पर भी भारी दबाव पड़ा, इस वजह से भी सरकार ने रेवेन्यू बढ़ाने के लिए यह टैक्स बढ़ाया.
केंद्र के साथ-साथ यही हाल राज्यों के साथ भी हुआ है. राज्यों ने भी अपना रेवेन्यू बढ़ाने के लिए पेट्रोल-डीज़ल पर लगने वाले सेल्स टैक्स में बढ़ोत्तरी की है. विशेषज्ञों ने अनुमान लगाया था कि सेंट्रल एक्साइज ड्यूटी में कटौती देखने को मिल सकती है. लेकिन संसद के सत्र में केंद्र के पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने जानकारी दी है कि फ़िलहाल सरकार एक्साइज को कम करने के मूड में नहीं है.
भारत की क्या स्थिति है अन्य देशों की तुलना में
पूरी दुनिया में कोरोना के पहले जो तेल का दाम था, अब वह फिर से उसी स्तर पर पहुंच रहा है. जबकि भारत में इसका असर बिल्कुल उल्टा दिख रहा है. भारत में तेल के दामों के आसमान छूने की वजह राज्य एवं केंद्र सरकार द्वारा ज्यादा टैक्स वसूलने की नीति है. ध्यान देने वाली बात यह है कि जनवरी 2020 की तुलना में इस साल जनवरी में पेट्रोल का औसत दाम करीब 13.6 फीसदी ज्यादा रहा.
बढ़ते पेट्रोल-डीज़ल के भाव का महंगाई पर क्या होगा असर?
जानकारों का मानना है कि सरकार महंगाई को संतुलित करने की कोशिश कर रही है. विशेषज्ञों का कहना है कि ईंधन की बढ़ती महंगाई को, कम खाद्य महंगाई ने संतुलित करके रखा है, लेकिन ध्यान देने वाली बात यह है कि ईंधन की बढ़ती महंगाई का असर उन ग्राहकों को देखने को मिल रहा है, जो अपने ट्रैवल पर ज्यादा खर्च कर रहे हैं. गौर करें, तो ईंधन की बढ़ती महंगाई का असर शहरों में रहने वाली आबादी पर ज्यादा होगा, जबकि गाँवों में रहने वाले लोगों के ऊपर इसका असर कम देखने को मिलेगा. हालांकि बात खेती-बाड़ी की करें, यदि इस साल मॉनसून कमजोर रहता है तो किसानों पर महंगाई का असर देखने को मिल सकता है. कमजोर मॉनसून की स्थिति में किसानों को सिंचाई के लिए डीज़ल पर निर्भर रहना पड़ेगा.
