कहाँ चले???

कहाँ चले??? नहीं नहीं. अरे नहीं भाई. ऐसे कैसे. सुनो तो. ओह्हो…अरे, तुम तो गुस्सा हो गए. ये क्या बात हुई भला. अभी कितने दिन हुए. कहाँ चले…कुछ दिन और रुकते. अच्छा, जा ही रहे हो तो ख़ुशी मन से जाओ. और सुनो, हिम्मत हो तो दोबारा आके दिखा देना.
निकल गई सारी हेकड़ी. धरी की धरी रह गई तुम्हारी अकड़. बहुत तीस मार खां समझे थे खुद को. तुम्हें भाई क्या बना लिए थे, तुम तो सिर पे चढ़ने लगे. जिस छाती पे बैठ के तुम मूंग दलने की सोच रहे थे, वो ऐसी वैसी छाती नहीं है. पूरे छप्पन इंच की है. ये तो हम छः सात साल पहले का साइज बता रहे हैं. अब दो चार इंच ज्यादा ही होगा कम नहीं होगा. इतना मेहनत किये तुम लोग. सारा सामान लाद के पहुंचाये. कितने स्थायी अस्थायी निर्माण कर डाले. नतीजा, टाँय-टाँय फिस्स. सब टंडीला समेटना पड़ा. तुम्हारे सैनिक ठण्ड में जड़ा गये, सो अलग. आज तक दुनिया ने तुम्हारी पीठ नहीं देखी थी. अब वो भी देख ली. तुम्हारी बनी बनाई इज्जत मिट्टी में मिल गई. अब दुनिया को अपना मुँह कैसे दिखाओगे.
सनकी हो तुम लोग एकदम. बना के चलते तो फायदे में रहते. अब कितनी कम्पनियों का भट्ठा बैठा दिए. कुछ समझदार निकलीं, तो खुद ही बोरिया बिस्तर समेट लिया, बाकी को ससम्मान और ससामान बाहर फिंकवा दिया गया. अब तुम्हारे लौट जाने से ये कम्पनियां थोड़े ही लौट आएंगी. आँखें तो ऐसे तरेर रहे थे, जैसे वहीं से भस्म कर दोगे. कम से कम अपनी आँखों के साइज़ का तो ख़्याल किया होता. छोटी-छोटी आँखें… आधी ताकत तो खोलने में ही खर्च हो जाती होगी. एक हिंदुस्तानी तुम जैसे दो के बराबर है. अभिषेक बच्चन जैसों के सामने तीन. जितने नम्बर के जूते तुम्हारे पिंग पहनते हैं, उतने तो हमारे यहां के बच्चे पहना करते हैं. जितनी दूरी तुम दौड़ लगा के तय करते हो, उतनी तो हमारे यहां लोग टहल के और वो भी तुमसे कम समय में तय कर लिया करते हैं.
तुम्हारी सेना तो चाइनीज आइटम से भी गई-गुजरी निकलीं. चाइनीज आइटम तो फिर भी कुछ दिन चल ही जाते हैं. एक बात कान खोल के सुन ल्यो और आँख खोल के देख ल्यो ये, न्यू इंडिया है. झुकेगा नहीं, रुकेगा नहीं. अब ये तुमसे बेहतर कौन समझ सकता है. मतलब बच्चा समझ के जरा दुलरा दिया, तो हमारी ही उंगली में दाँत गाड़ने चले थे. ये तो ‘हम दो हमारे दो’ वाला वायरस फ़ैल गया, वरना आज तुम हमसे आधे होते. ये तो शुक्र मनाओ कि नरेन जी हैं, कहीं राउल जी होते, तो पन्द्रह मिनट का काम था. पन्द्रह मिनट में तुम लोग भारत की सीमा से बाहर होते. एक दो सेकंड की भी देरी तुम्हें चीन की सीमा से भी बाहर कर देती.
अब जगहंसाई तो करा ही लिए हो. आठवीं उंगली से पीठ दिखा ही चुके हो. भलाई इसी में है कि और जिन-जिन उँगलियों पे बैठे हो, वहां से भी बड़ी तेजी से निकल ल्यो. वरना अब तक बहुत धैर्य रखें हैं हमारे जवान. अगर चुक गया, तो इनका निशाना न चूकेगा.
*यह लेख व्यंग्य मात्र है. इसका उद्देश्य किसी व्यक्ति, वस्तु, संस्था या स्थान विशेष की छवि खराब करना नहीं है. न ही इसका कोई राजनीतिक मन्तव्य है.
