उल्टी गिनती

ल्यो, ये भी हाथ से गया. शुरू हो गई उल्टी गिनती. ले दे के चार जगह तो बची थी, उसमें भी एक चली गई. समय बड़ा क्रूर है. ये किसी की नहीं सुनता. इसके आगे किसी की नहीं चलती. ईश्वर भी बड़ा निष्ठुर है. एक-एक कर सब छीने ले रहा है. पहले देश छीना, अब रहे सहे प्रदेश भी छीने ले रहा है.
भैया पुडुचेरी, एकदम आखिरी समय में काहे नाराज हो गए. दो ही तीन महीने तो और बचे थे. तनिक रुक जाते. धीरज, दया नाम की भी कोई चीज होती है कि नहीं, या फिर इनको डिक्शनरी से हटवा ही दिया जाये. कहीं तुम भी तो विरोधी खेमे में नहीं चले गए. सही है, डूबते सूरज को कौन पूछता है. जब अपने ही नेता अपने न हुए, तो तुमसे क्या शिकायत करना.
राउल भैया अभी तो गये थे. भैया बहुत मेहनती हैं. जबसे राजनीति में आये हैं, दिन रात और खून पसीना दोनों कर दिए हैं. जनता कंफ्यूज है. क्या खून है, क्या पसीना, कब दिन है, कब रात, कुछ नहीं समझ पा रही है. इतना मेहनत किये हैं, तब जाकर पूरे देश में केवल चार राज्य हाथ में बचे थे. वरना, पहले तो गिनना मुश्किल था. भैया जी इस समस्या को समझे. फिर जमके मेहनत किये. अब गिनने में कहीं कोई समस्या नहीं है. बच्चा भी आसानी से गिन सकता है. पुडुचेरी में तो केवल इनके जाने से ही काम हो गया. ये बस वहां से निकले उधर सरकार गिरी. मतलब एकदम इंस्टैंट रिएक्शन है. इतना इंस्टैंट तो ईनो भी काम नहीं करता.
जैसे पेड़ों में पतझड़ आता है, वैसे ही इस पार्टी में विधायकों का भी पतझड़ का मौसम आया हुआ है. दो-चार दिन में एक-आध तो झड़ ही जाता है. राउल भैया एक बार कहे थे कि वो बोलेंगे तो भूकम्प आ जायेगा. बोलने से तो नहीं, हाँ उनके जाने से भूकम्प जरूर आ जाता है. जिस राज्य में जाते हैं, वहीं उनकी सरकार काँप जाती है. अब पंजाब, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के कांगी ईश्वर से प्रार्थना में जुटे पड़े हैं. बस, इसी खौफ में हैं कि भैया कहीं यहाँ दर्शन न दे दें, जो तीन से दो हो जाएं.
इधर दीदी ने भी यूपी में दर्शन वगैरह शुरू कर दिए हैं. अगले साल परीक्षा भी तो देनी है. पिछली बार तो राउल भैया हमाये अकिलेश भैया से गठबंधन किये थे, तो अच्छी खासी बनी बनाई सरकार सफलतापूर्वक ले डूबे थे. वैसे भी, राउल भैया का आभामंडल ही इतना देदीप्यमान है कि उसे झेल पाने में देश-प्रदेश सब नाकाम साबित हुए हैं.
हालाँकि भैया जी अध्यक्ष पद कब का छोड़ चुके हैं, लेकिन अगर असली आस्था देखनी सीखनी है तो इनके कार्यकर्ताओं से मिलिए. वो इनके आगे किसी को देखना सुनना नहीं चाहते. अब समस्या ये है कि दोनों में से कोई पीछे हटने को तैयार नहीं. भैया जी की सबसे खास बात ये है कि वो जानते हैं असली खिलाड़ी वो नहीं जो जीते, बल्कि असली खिलाड़ी तो वो है, जो आखिरी दम तक लड़े. तो वो खूब लड़ते हैं, आखिरी दम तक लड़ते हैं, तब जाके हारते हैं. गलती उनकी भी नहीं है. अब सामने वाला खिलाड़ी भी तो देखिये. ये उनकी बदकिस्मती ही कही जाएगी कि सक्रिय राजनीति में आते ही उनका सामना छप्पन इंची से हो गया. फिर भी मैदान तो नहीं छोड़े हैं.
असफलता में ही सफलता का राज छुपा होता है. बस, भैया जी वही राज खोजने में लगे हैं. यकीन मानिए, राज मिलते ही गिनती पीछे की बजाय, फिर से आगे को चलने लगेगी. फिलहाल तो इनकी जो गिनती चल रही है, शास्त्रों में इसे ही उल्टी गिनती कहा गया है. खैर, लम्बी छलाँग लगाने के लिए कुछ कदम पीछे तो हटना ही पड़ता है.
*यह लेख एक व्यंग्य मात्र है. इसका उद्देश्य किसी व्यक्ति, वस्तु, संस्था या स्थान की छवि खराब करना नहीं है. न ही इसका कोई राजनीतिक मन्तव्य है.
