मीडिया घरानों और सोशल मीडिया के बीच व्यावसायिक संतुलन जरुरी है

मीडिया घरानों और सोशल मीडिया के बीच व्यावसायिक संतुलन जरुरी है

मीडिया घरानों और सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्मों के बीच व्यावसायिक संतुलन भी होना बहुत जरूरी है. उदाहरण के तौर पर, अर्थशास्त्र के बुनियादी सिद्धांत को समझने की जरूरत है. अर्थशास्त्र के बुनियादी सिद्धांत के अनुसार, किसी उत्पाद को यानी वस्तु को तैयार करने के लिए जितनी ईकाइयां, जितने संसाधन प्रयोग किए जाते हैं, उस उत्पाद को बेचने पर जो लाभ होता है, उसका विभाजन सभी में होना चाहिए. यही अर्थशास्त्र का बुनियादी सिद्धांत होता है. बड़ी हैरानी की बात है कि डिजिटल दुनिया में इस मूलभूत सिद्धांत की अवहेलना होती रही है. इस ओर दुनिया का ध्यान पहली बार तब गया जब एक देश की सरकार इस संबंध में कानून बनाने के लिए तैयार हुई. इस संबंध में कानून बनाने वाले देश का नाम है, ऑस्ट्रेलिया. अभी हाल ही में ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने अप्रैल 2020 में  एक संस्था से एक ऐसा तंत्र विकसित करने के लिए कहा था, जिससे ऑस्ट्रेलियाई मीडिया घराने और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्मों के बीच व्यावसायिक संतुलन स्थापित हो सके.

संस्था के सुझाव के अनुरूप सरकार ने ‘मीडिया कोड’ के नाम से एक कानून संसद में लागू किया. इस संहिता का सार तत्व है कि अब ऑस्ट्रेलिया में गूगल और फेसबुक को अपने प्लेटफॉर्म पर शेयर होने वाली खबरों के बदले में उन खबरों के प्रदाता मतलब जो खबर उपलब्ध कराएगा, उसके एवज में उसको भुगतान करना होगा. अभी की स्थिति के अनुसार गूगल या फेसबुक अपने प्लेटफॉर्म पर कोई भी खबर शेयर करते हैं, तो उस उस खबर के बदले गूगल, फेसबुक खबर प्रदाता को कोई भुगतान नहीं करता है. ऑस्ट्रेलिया में बनी हाल ही में जो संहिता यानि कानून बना है, उसके अनुसार गूगल और फेसबुक को पहले मीडिया प्रतिष्ठानों से एक सौदा करना होगा. जिसके तहत परस्पर सहमति से तय राशि के भुगतान के बाद बाद ही कोई खबर फेसबुक और गूगल अपने प्लेटफॉर्म पर शेयर कर सकते हैं. अगर परस्पर सहमति नहीं बन पाती है, तो एक सरकारी माध्यम होगा जो भुगतान की राशि की सीमा को तय करेगा. इस नियम को न मानने पर जुर्माने का भी प्रावधान किया गया है. हालांकि गूगल और फेसबुक इस नियम का विरोध कर रहे हैं, लेकिन ऑस्ट्रेलिया की संसद इस नियम के लिए पूरी तरीके से प्रतिबद्ध हैं.

भारत के लिहाज से कितना कामगर

भारत के परिपेक्ष्य में बात करें, तो यहां भी ऐसे नियम और क़ानून होने चाहिए. दरअसल, भारत में इंटरनेट उपयोगकर्ता का विशाल जनसमूह उपस्थित है. इसलिए जाहिर तौर पर इसका बाजार भी उसी अनुपात में आगे बढ़ रहा है. दुर्भाग्य से, इस बढ़ते बाजार का फायदा समावेशी न होकर गूगल और फेसबुक जैसी कंपनियों तक सीमित हो गई है. गौर करने वाली बात यह है कि गूगल और फेसबुक के पास अपना कंटेंट नहीं होता है, लेकिन जिनका कंटेंट शेयर करने से इन्हें विज्ञापन मिल रहा होता है, उनसे आय का कोई भी हिस्सा साझा नहीं करते हैं. ऐसी स्थिति में मीडिया प्रतिष्ठान परंपरागत विज्ञापन से होने वाले लाभ से कट रहे है और मीडिया संस्थानों को डिजिटल प्लेटफॉर्म के ऊपर मिलने वाले विज्ञापन में भी कोई हिस्सेदारी नहीं मिल रही है, अगर भारत में भी यह व्यवस्था बन जाती है, तो न केवल एक संतुलित और टिकाऊ व्यवस्था बनी रहेगी, बल्कि मीडिया कहीं अधिक जन पक्षधर हो सकेगी, क्योंकि फिर मीडिया संस्थानों को आय का लाभ होगा और मीडिया संस्थान पूरी शिद्दत के साथ देश में मौजूद पाठकों तक हर खबर को पहुंचाने के लिए ज़ोरदार कोशिश करेंगे.

Akhilesh Namdeo