बैक डोर से एंट्री पर सुप्रीमकोर्ट का बड़ा फैसला

बैक डोर से एंट्री पर सुप्रीमकोर्ट का बड़ा फैसला

संविधान के संघीय ढाँचा में संसद के दो सदन को स्थापित किया गया था. राज्यसभा और लोकसभा, ये प्रक्रिया देश के लिये है. कुछ राज्यों में यही प्रक्रिया विधान परिषद् और विधानसभा के रूप में उल्लेखित है. देश का इतिहास रहा है, प्रमुख चेहरे मुख्यतः बैक डोर से एंट्री लेते हैं. बैक डोर का तात्पर्यं राज्यसभा या राज्य में विधान परिषद् से है. राज्य सभा से राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की अनुशंसा पर 12 सदस्यों को संसद में भेज सकता है. वैसे ही एक राज्य में राज्यपाल मुख्यमंत्री की अनुशंसा पर विधान परिषद् से राज्य की विधानसभा सीट के आधार पर निर्धारित सदस्यों को MLA बना सकता है.

               अब बैकडोर से एंट्री लेकर मंत्री बनने का सफर मुश्किल होता दिख रहा रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने अपना कड़ा रुख दिखाया है.

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को लोकतंत्र के मंदिर में पिछले दरवाजे से एंट्री पर बहुत महत्वपूर्ण बात कही. उसने कर्नाटक हाई कोर्ट के एक फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि अयोग्य घोषित विधायक को विधान परिषद् में मनोनीत कर मंत्री नहीं बनाया जा सकता है. देश की सर्वोच्च अदालत ने साफ कहा कि अगर विधायक अयोग्य घोषित हुआ है, तो वह मंत्री तभी बन सकता है जब फिर से विधानसभा या विधान परिषद् का चुनाव जीतकर आए, न कि मनोनीत होकर.

बीजेपी नेता की दलील

उससे पहले, बीजेपी नेता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायणन ने दलील दी कि यह मुद्दा संविधान के प्रावधानों की कानूनी व्याख्या से संबंधित है, जो सदन के सदस्य के अयोग्य होने से संबंधित है. उन्होंने कहा कि उनकी अयोग्यता उसी ऑफिस (विधानसभा) की क्षमता तक सीमित है जहां से उन्हें अयोग्य घोषित किया गया था. इस पर बेंच ने कहा कि प्रावधान के अनुसार यदि व्यक्ति विधान परिषद् के लिए मनोनीत किया जाता है और चुना नहीं जाता है, तो अयोग्यता प्रभावी रहेगी. बेंच ने साफ कहा, “अगर आप एमएलए या एमएलसी के रूप में चुने जाते हैं, तो आप सरकार में मंत्री बन सकते हैं, लेकिन यदि आप मनोनीत हैं, तो आप मंत्री नहीं बन सकते. उच्च न्यायालय का फैसला सही है. हम आपकी विशेष अनुमति याचिका को खारिज कर रहे हैं.”

 सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा

सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक विधानसभा से अयोग्य ठहराए गए बीजेपी नेता एएच विश्वनाथ की हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दाखिल याचिका को खारिज कर दिया. सीजेआई एसए बोबडे और जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी रामसुब्रमण्यम की बेंच ने कहा, “अगर आप एमएलए या एमएलसी के रूप में चुने जाते हैं, तो आप सरकार में मंत्री बन सकते हैं, लेकिन यदि आप मनोनीत हैं, तो आप मंत्री नहीं बन सकते. उच्च न्यायालय का फैसला सही है. हम आपकी विशेष अनुमति याचिका को खारिज कर रहे हैं.”

 लोकतांत्रिक राजनीति में सुधार की राह

शीर्ष अदालत का यह फैसला चुनाव सुधार और देश की लोकतांत्रिक राजनीति को साफ-सुथरा करने की दिशा में एक बड़ा और प्रभावी कदम माना जा सकता है. मंत्री पद या कोई दूसरे लालच में रातोंरात दल बदलने का चलन बढ़ गया है. ऐसे में पीठासीन अधिकारी (विधानसभा अध्यक्ष) और अदालतें संवैधानिक प्रावधानों के तहत दल-बदलुओं को अयोग्य तो ठहरा देते हैं, लेकिन उनके लिए विधान परिषद् का पिछला दरवाजा खुल जाता है. सत्ताधारी दल उन्हें बहुमत के बल पर चोर दरवाजे से विधानमंडल में लाने की कोशिश करता है.

अभी इन राज्यों में द्विसदनीय व्यवस्था

आप जानते हैं कि भारत में अभी 28 राज्य एवं आठ केंद्रशासित प्रदेश हैं. इन 28 राज्यों में पांच राज्य ऐसे हैं जहां विधानसभा और विधान परिषद्, दो सदन हैं. इन दोनों सदनों को मिलाकर विधानमंडल बनता है. ये राज्य हैं- कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना. 5 अगस्त, 2019 से पहले तक जम्मू-कश्मीर भी एक राज्य हुआ करता था, जहां द्विसदनीय व्यवस्था हुआ करती थी, लेकिन अब यह जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बंट गया है और दोनों को केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा दे दिया गया. इसके साथ ही, वहां द्विसदनीय व्यवस्था भी खत्म हो गई.

नजीर बनेगा सुप्रीम कोर्ट का फैसला

दरअसल, पिछले कुछ दशकों में राजनीति में धनबल और बाहुबल का बोलबाला बढ़ रहा है. जैसे-तैसे पैसा और प्रसिद्धि कमाने वाले लोगों का रुख राजनीति की तरफ होने लगा है. अपराध एवं अन्य गलत धंधों से जुड़े लोग राजनीतिक और प्रशासनिक संरक्षण प्राप्त करने के लिए राज्यसभा के रास्ते संसद और विधान परिषद के रास्त विधानमंडल में प्रवेश करने को आमादा होते हैं. अच्छी बात यह है कि कर्नाटक के मामले में आया सुप्रीम कोर्ट का फैसला भविष्य के लिए नजीर बन जाएगा.

भरे पड़े हैं बैक डोर से मलाई बांटने के उदाहरण

दूसरे शब्दों में कहें तो विधान परिषद् लोकतंत्र के मंदिर की बैक डोर रही है और अब पावर बैलेंसिंग और पॉलिटिकल नफा-नुकसान के लिए इस्तेमाल हो रही है. बिहार की ही बात करें, तो वहां कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहे अशोक चौधरी ने अपनी पार्टी तोड़कर सत्ताधारी दल जेडीयू का रुख कर लिया. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने चौधरी को मंत्री बना दिया. यही नहीं, जब सन ऑफ मल्लाह कहे जाने वाले मुकेश साहनी इस बार का बिहार विधानसभा चुनाव हार गए, तो बीजेपी ने अपने कोटे से उन्हें विधान परिषद् भेजकर मंत्री बना दिया.

इसी तरह, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नजदीकी लोगों में शुमार पूर्व आईएएस अधिकारी अरविंद कुमार शर्मा (Arvind Sharma) को बीजेपी जॉइन करने के एक दिन बाद ही उत्तर प्रदेश विधान परिषद् चुनाव का उम्मीदवार बना दिया. बीजेपी ने एमएलसी के चार प्रत्याशी घोषित किए, जिनमें दिनेश शर्मा के साथ अरविंद कुमार शर्मा को भी टिकट दिया गया था. अब अरविंद शर्मा यूपी से विधान पार्षद हैं.

 

 

Akhilesh Namdeo