बॉम्बे हाई कोर्ट का हैरान करने वाला फैसला

बॉम्बे हाई कोर्ट का हैरान करने वाला फैसला

कभी कभी अदालत के फैसले बेहद चौकाने वाले होते है,ताजा मामला बॉम्बे हाईकोर्ट से जुड़ा हुआ है.बॉम्बे हाईकोर्ट ने ऐसा फैसला सुनाया है.जिसको लेकर लोगो में गुस्सा फुट पड़ा है.सोशल मीडिया पर लोग अदालत के फैसले का जम के विरोध कर रहे है.अदालत ने फ़ैसला सुनाते हुए एक नाबालिग़ बच्ची के साथ यौन उत्पीड़न के मामले में दोषी ठहराए गए शख़्स की सज़ा में बदलाव कर दिया है.

घटना नागपुर की है ,अभियोजन और नाबालिग पीड़िता की अदालत में गवाही के मुताबिक, दिसंबर 2016 में आरोपी सतीश  में लड़की को खाने का कोई सामान देने के बहाने अपने घर ले गया। उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में यह दर्ज किया कि अपने घर ले जाने पर सतीश ने उसके ब्रेस्ट को पकड़ा और उसे निर्वस्त्र करने की कोशिश की।

इससे पहले नागपुर सत्र न्यायालय ने आईपीसी सेक्शन 354 के तहत व्यक्ति को एक साल की और पोक्सो के तहत तीन साल की सज़ा सुनाई थी. ये दोनों सजा  एक साथ दी जानी थीं. लेकिन बॉम्बे हाईकोर्ट के फ़ैसले के बाद तीन साल की सजा वाला फ़ैसला अब निष्क्रिय हो गया है.

आख़िर जज ने अपने फ़ैसले में क्या लिखा?

हाई कोर्ट की नागपुर बेंच की न्यायमूर्ति पुष्पा गनेडीवाला ने 19 जनवरी को पारित एक आदेश में कहा कि किसी हरकत को यौन हमला माने जाने के लिए ‘गंदी मंशा से त्वचा से त्वचा (स्किन टू स्किन) का संपर्क होना’ जरूरी है.उन्होंने अपने फैसले में कहा कि महज छूना भर यौन हमले की परिभाषा में नहीं आता है.न्यायमूर्ति गनेडीवाला ने एक सेशन्स कोर्ट के फैसले में संशोधन किया जिसने 12 वर्षीय लड़की का यौन उत्पीड़न करने के लिए 39 वर्षीय व्यक्ति को तीन वर्ष कारावास की सजा सुनाई थी.


अभियोजन और नाबालिग पीड़िता की अदालत में गवाही के मुताबिक, दिसंबर 2016 में आरोपी सतीश नागपुर में लड़की को खाने का कोई सामान देने के बहाने अपने घर ले गया.उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में यह दर्ज किया कि अपने घर ले जाने पर सतीश ने उसके ब्रेस्ट को पकड़ा और उसे निर्वस्त्र करने की कोशिश की.


हाई कोर्ट ने कहा, चूंकि आरोपी ने लड़की को निर्वस्त्र किए बिना उसके सीने को छूने की कोशिश की, इसलिए इस अपराध को यौन हमला नहीं कहा जा सकता है और यह आईपीसी की धारा 354 के तहत महिला के शील को भंग करने का अपराध है. धारा 354 के तहत जहां न्यूनतम सजा एक वर्ष की कैद है, वहीं पोक्सो कानून के तहत यौन हमले की न्यूनतम सजा तीन वर्ष कारावास है.

सोशल मीडिया पर हो रहा विरोध

जस्टिस गनेडीवाला ने ये फ़ैसला 19 जनवरी को सुनाया था लेकिन रविवार शाम को इस फ़ैसले की ख़बर फैलने के बाद से सोशल मीडिया पर इसका विरोध जारी है.

ट्विटर यूज़र अर्पिता भार्गव लिखती हैं, “मुंबई कोर्ट का आज जो फरमान आया है उससे तो यही साबित हो रहा है कि आज भी भारत में पुरुषवादी मानसिकता वाले लोग हैं और महिलाओं की बराबरी और आज़ादी सिर्फ कागज़ों तक ही रह गई हैं. भारतीय न्याय व्यवस्था पर शर्म है.”

bombey hightcourt

प्राप्ति चौधरी लिखती हैं, “अगर आरोपी एक नाबालिग़ के वक्षस्थल को छू रहा है, तो ये यौन मंशा के बिना नहीं होगा तो क्या होगा? बॉम्बे हाईकोर्ट में जस्टिस ने हमें निराश किया है.”

 

 

Akhilesh Namdeo