फ़ास्ट टैग: सुपरफास्ट तरक्की

दुनिया तरक्की कर रही है, लेकिन तरक्की की जो रफ्तार अपने इंडिया की है, उसको मापने का यंत्र अभी तक बना नहीं. यहां सब चीज फ़ास्ट हो चुकी है. फ़ूड तो पहले से ही था, अब टैग भी फ़ास्ट हो चुका है. गाड़ी में कुछ हो चाहे न हो, लेकिन फ़ास्ट टैग जरूर होना चाहिए.
लोग हल्ला मचाए पड़े हैं. पेट्रोल महंगा हो गया, सिलिंडर महंगा हो गया. वहां एमपी में कांगी शर्ट उतार के प्रदर्शन करने में जुटे हैं. ये सरासर निर्लज्जता है. ये लोग सरेराह सामूहिक अश्लीलता फैला रहे हैं. अरे भाई, धरना दीजिये, प्रदर्शन कीजिये, सड़कें घेरिये, बॉर्डर बंद करिये, लेकिन शर्ट पैंट उतारू प्रदर्शन की इजाज़त इस सभ्य सुसंस्कृत समाज में कतई नहीं होनी चाहिए. यहां कानपुर में कुछ ज्यादा उत्साहित लोग मोटरसाइकिल रिक्शे में रख के घुमाने में लगे हैं. ये न सिर्फ मोटरसाइकिल बल्कि रिक्शे का भी अपमान है. अरे, तेल भराने के पैसे नहीं हैं तो मोटरसाइकिल घर पे रखिये. अपनी राजनीति चमकाने के चक्कर में बेचारे रिक्शे की कमर तोड़ दी. अब रिक्शा अस्पताल के चक्कर लगा रहा है. डॉक्टर कहे हैं कि जब कोरोना की रिपोर्ट आ जायेगी, तभी इलाज शुरू करेंगे. बेचारा पेनकिलर खा के किसी तरह काम चला रहा है.
जनता समझती नहीं है. बस उसे तो बहाना चाहिए चुगली करने का. पहले वाला बहुत अच्छा था…पिछले वाले से भी यही बोलते हैं और अभी वाले से भी. मानव स्वभाव यही है. फ़ास्टटैग के पीछे सरकार की सोची समझी चाल है. सुनियोजित रणनीति के तहत इसे लागू किया गया है. क्रोनोलॉजी समझिये.
फ़ास्ट टैग लागू हो जाने से देश भर में ट्रैफिक जाम की समस्या जड़ से समाप्त हो चुकी है. पहले जहाँ टोल प्लाजा को पार करने में घण्टों लग जाया करते थे, वहीं अब गाड़ियाँ प्लाजा पहुँचने से पहले ही पार कर ले रही हैं. तो अव्वल तो इससे ईंधन की बचत हुई. फिर प्रदूषण भी ख़त्म होके नकारात्मक स्तर पर आ चुका है. तमाम देशी, विदेशी यहां तक कि ‘ग्रेटा’ पर्यायवरण वैज्ञानिकों का भी कहना है कि यदि जल्द ही प्रदूषण बढ़ाने के इंतजाम न किये गए तो घोर पर्यावरण असंतुलन पैदा हो जायेगा. इसके दुष्परिणाम हमारी आने वाली पीढ़ियों को भुगतने होंगे.
तो अब आप सोचिये, आपका कितना इंधन बच गया. फिर पेट्रोल डीजल की बढ़ती कीमतों पर हंगामा क्यों. अगर सही से कैलकुलेशन की जाये, तो गाड़ी का माइलेज बढ़ा तो होगा. अगर बचपन में पढ़ाई से ज्यादा एक्स्ट्रा करिक्यूलर एक्टिविटीज में मन लगाएं हैं, तो बात अलग है. खुद देख लीजिए, सरकार ने पहले फ़ास्ट टैग कम्पलसरी किया, तब जाके रोज तेल के दाम बढ़ाने शुरू किये. साथ ही फ़ास्ट टैग का सीधा और वैध सम्बन्ध रोजगार से भी है. सोचिये, इससे कितने लोगों को रोजगार मिला होगा. किसी कम्पनी ने इसे बनाया होगा, तो किसी ने बेचा होगा. न जाने इसने कितने हाथों को काम दिया होगा, कितनों के घर के चूल्हे जले होंगे, कितनों के पेट भरे होंगे. अफ़सोस, जनता ये नहीं सोच पा रही. उसे तो बस तेल की बढ़ती कीमतें ही दिख रही हैं.
फ़ास्ट टैग डिजिटल इंडिया भी तो बना रहा है. सब डिजिटल हो रहा है. अब टोल प्लाजा पे सब ऑटोमैटिक है, डिजिटल है. अपने आप पैसा कट रहा है, अपने आप गेट खुल रहा है. वहाँ किसी की कोई जरूरत नहीं रह गई है. टोटली पेपरलेस, टोटली मैनपॉवर लेस. अब तो यकीन हुआ कि फ़ास्ट टैग मतलब सुपरफास्ट तरक्की. बेरोजगारी बढ़ेगी, ऐसा विचार मन में बिलकुल न लाइएगा. हाथों में फ़ास्ट टैग रीडर लिए आधा-आधा किमी तक दौड़ लगाकर गाड़ियों में लगे टैग को फ्रेंच किस कराने के लिए भी तो कर्मचारियों की फ़ौज चाहिए.
तो अगर तरक्की की रफ़्तार देखनी हो, तो हमारा फ़ास्ट टैग देखिये. सड़कों की हालत चाहे जैसी हो, टोल प्लाजा पे फ़ास्ट टैग ही चलेगा. भले सरकारी बसों में हेडलाइट न जलती हो, पर शीशे पे फ़ास्ट टैग ही चलेगा. सड़कें भले ही घुप अंधेरों में डूबी हों, लेकिन गाड़ियों में फ़ास्ट टैग ही चमकेगा. तेल के दाम मत देखिये. देखनी है, तो फ़ास्ट टैग की तेजी देखिये. ध्यान रखिए कि अब चलना है तो फ़ास्ट टैग लगवाना है.
*यह एक व्यंग्य लेख है. इसका उद्देश्य किसी व्यक्ति, वस्तु, संस्था या स्थान विशेष की छवि खराब करना नहीं है. न ही इसका कोई राजनीतिक मन्तव्य है.
