हिंदू महिलाओं की संपत्ति पर मायके वालो का भी है अधिकार : SC

देश के सर्वोच्च न्यायपालिका ने हिंदू महिलाओं की संपत्ति पर उत्तराधिकारी को लेकर एक बड़ा फैसला सुनाया है. फैसले के मुताबिक, हिंदू महिला के पिता की ओर से आए हुए लोगों को उसकी संपत्ति में उत्तराधिकारी माना जा सकता है. ऐसे में परिजनों को परिवार से बाहर का व्यक्ति नहीं माना जा सकता है और हिंदू उत्तराधिकार कानून के तहत एक विधवा की संपत्ति उसके मायके वाले को भी मिल सकती है. सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश अशोक भूषण और जस्टिस सुभाष रेड्डी की बेंच ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि हिंदू उत्तराधिकार कानून की धारा 15 (1) डी के तहत हिंदू महिला के पिता की ओर से आए परिजन को भी उत्तराधिकारियों के दायरे में आते हैं. ऐसे में परिजनों को अजनबी करार देकर महिला का परिवार मानने से इनकार नहीं किया जा सकता है.
क्या है हिंदू उत्तराधिकार कानून की धारा 15 (1) डी
हिंदू उत्तराधिकार 1956 की धारा 15 (1) डी के तहत, अगर बिना वसीयत के किसी महिला की मृत्यु होती है, तो उसकी संपत्ति का उत्तराधिकार धारा 16 के तहत होगा. इसमें पहला हक उसके अपने बेटे और बेटियों का होगा, दूसरा हक उसके पति के परिजनों का होगा,तीसरा हक महिला के माता-पिता का होगा और चौथा हक महिला के पिता के परिजनों का होगा. अंत में, संपत्ति पर हक महिला की मां के परिजनों का होगा.
किस मामले में आया कोर्ट का फैसला
सुप्रीमकोर्ट ने फैसला ऐसे मामले में दिया, जिसमें विधवा महिला जगनो को अपने पति की संपत्ति मिली थी. 1953 में ही उनके पति की मौत हो गई थी. उनका कोई बच्चा नहीं था. इसलिए महिला को कृषि का आधा हिस्सा मिला उत्तराधिकार कानून 1956 बनने के बाद धारा 14 के तहत पत्नी संपत्ति की एकमात्र पूर्ण वारिस बन गई. इसके बाद जब उन्होंने संपत्ति का एग्रीमेंट किया और संपत्ति अपने भाई के बेटों के नाम कर दिया. इस मामले में जगनो के पति के भाइयों ने आपत्ति जताई थी और मामले को कोर्ट में चुनौती दी थी.
