वैक्सीन दाता भारत की बड़ी कूटनीतिक जीत

कोरोना महामारी का दंश भले भारत में अब भयावह न रहा हो, लेकिन दुनिया के अधिकांश देश आज भी इस भयावह महामारी से खुद को पार पाने की कोशिशें कर रहे हैं. बीते 16 तारीख़ को भारत में कोरोना वैक्सीन पूरे देश के लिये उपलब्ध हुआ. तो विश्व के तमाम देश एक आशा की नजर से भारत से आस लगाये बैठे रहे कि भारत कोरोना की दवा हमें उपलब्ध करायेगा. उम्मीद लगाये विश्व के तमाम देशों की आशा की किरण को नई ऊर्जा और उम्मीद पर भारत खरा भी उतरा. मित्र राष्ट्रों, जैसे भूटान, बांग्लादेश, श्रीलंका, इंडोनेशिया, नेपाल को तत्काल वैक्सीन की बड़ी खेप भारत ने भेजा. जब वैक्सीन की खेप ब्राजील पहुँची, तो वहाँ के मुखिया का एक आभार भरे ट्वीट ने देश को गौरवान्वित किया.
भारत द्वारा दिया जा रहा वैक्सीन का यह उपहार बेमिसाल है. किसी भी अन्य देश ने लाखों की तादाद में दूसरे देशों को मुफ्त में वैक्सीन उपलब्ध नहीं कराई है.
दुनिया के अधिकांश इलाके अभी भी कोरोना के चंगुल में फंसे हैं. उससे बचने के लिए कई जगहों पर नए सिरे से लॉकडाउन लगाए जा रहे हैं. इसके अलावा हर देश कोविड-19 आपदा से निपटने पर ध्यान केंद्रित किए हुए है. ऐसे में कोरोना वैक्सीन की मांग आसमान छू रही है. इन हालात में इसकी गुंजाइश कम ही हो जाती है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारी मात्रा में वैक्सीन उपलब्ध कराई जा सके. इस स्थिति के बावजूद जब भारत ने हाल में हिंद महासागरीय देशों को लाखों की तादाद में कोविड-19 वैक्सीन उपलब्ध कराई, तो उसने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ध्यान आर्किषत किया. बीते हफ्ते म्यांमार से लेकर बांग्लादेश और मॉरीशस से लेकर सेशेल्स तक लाखों की तादाद में भारत में निर्मित वैक्सीन पहुंचाई गई है. पांच लाख वैक्सीन की खेप श्रीलंका भी पहुंची है. भारत द्वारा दी जा रही इस भेंट ने भारत की वैक्सीन बनाने की व्यापक क्षमता को भी प्रदर्शित किया है. इस मामले में भारत का मानवीय पहलू और मुखरित होकर उभरता है, क्योंकि उसने अपने नागरिकों के लिए शुरू किए गए टीकाकरण अभियान के मात्र चार दिन बाद ही वैक्सीन दूसरे देशों को भेजनी शुरू कर दी. टीका हासिल करने वाले देश भी पुलकित हैं. भूटान के प्रधानमंत्री ने इसे परोपकार का पर्याय बताते हुए कहा कि अपनी आवश्यकता की पूर्ति से पहले ही अनमोल वस्तुएं साझा की जा रही हैं.
भारत पहले चरण में 30 करोड़ की आबादी को टीका लगाने के लिए तत्पर है. ऐसा करने वाला वह पहला बड़ा विकासशील देश है. इसका घरेलू कार्यक्रम दुनिया का सबसे बड़ा कोविड-19 टीकाकरण अभियान है. इस मामले में भारत के साथ जुड़े ताकतवर पहलुओं में से एक यह है कि विभिन्न बीमारियों के प्रतिरोध में काम आने वाली दुनिया की 60 प्रतिशत से अधिक वैक्सीन भारत में ही बनती है. वैक्सीन निर्माण में अपनी इस महारत का लाभ वह अपने पड़ोसियों को मुफ्त वैक्सीन के रूप में मानवीय कूटनीति को मूर्त रूप देने में उठा रहा है. यह भारत के व्यापक एवं विस्तृत वैक्सीन विनिर्माण ढांचे का ही दम है कि फिच सॉल्यूसंश ने यह अनुमान व्यक्त किया है कि भारत अपने स्वास्थ्य कर्मियों और बूढ़ी आबादी के एक बड़े हिस्से को इस साल के मध्य तक टीका लगवाने में सक्षम होगा. इस मोर्चे पर भारत अपने से कहीं छोटे दक्षिण कोरिया जैसे देश से भी बाजी मार ले जाएगा।
भारत पहले ही कई देशों को एक अरब वैक्सीन डोज देने पर सहमति जता चुका है. वह विश्व स्वास्थ्य संगठन की कोवैक्स पहल के लिए भी योगदान देगा. इस पहल का मकसद गरीब देशों को टीका उपलब्ध कराना है. फिलहाल भारत दो वैक्सीन बना रहा है. इसमें एक तो एस्ट्राजेनेका-ऑक्सफोर्ड की सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया द्वारा बनाई जा रही कोविशील्ड और दूसरी भारत बायोटेक द्वारा विकसित कोवैक्सीन है. दुनिया में वैक्सीन के सबसे बड़े विनिर्माता सीरम को एस्ट्राजेनेका-ऑक्सफोर्ड ने वैक्सीन बनाने का सबसे बड़ा अनुबंध भी दिया है. जनवरी की शुरुआत में जब भारत ने वैक्सीन के आपात उपयोग की अनुमति प्रदान की, तब उससे पहले ही सीरम द्वारा कोविशील्ड की छह से आठ करोड़ खुराक तैयार कर दी गई थी. इसका अर्थ है कि दूसरे देशों के साथ वैक्सीन साझा करने के लिए भारत के पास विशाल भंडार है. इसके अतिरिक्त भारत में कोरोना के मामलों की लगातार घटती संख्या ने भी मोदी सरकार को वैक्सीन कूटनीति के लिए कहीं अधिक गुंजाइश दे दी है. कोरोना के मामलों में तेज गिरावट से स्पष्ट है कि यहां अब यह महामारी पिछड़ रही है. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अमेरिका, ब्रिटेन, रूस और चीन द्वारा वैक्सीन पेशकश को लेकर प्रतिस्पर्धा ने भारत की भूमिका को अहम बना दिया है. महामारी की शुरुआत से ही भारत ने कोविड-19 टेस्ट किट्स, पीपीई और कोरोना वायरस के लक्षणों के बाद उपचार में काम आने वाली दवाओं का भारी मात्रा में निर्यात किया. जेनेरिक दवाओं के मामले में भारत पहले से ही दुनिया में अव्वल है. इसके उलट पूरी महामारी के दौरान चीन ने दवा उद्योग में अपनी महारत को वाणिज्यिक हितों की पूर्ति के लिए इस्तेमाल किया और उसने अभी तक बहुत कम संख्या में ही वैक्सीन देने का एलान किया है. हालांकि विकासशील देशों को अपनी वैक्सीन बेचने की उसकी कोशिशों को तब तगड़ा झटका लगा, जब ब्राजील में अंतिम चरण के परीक्षण में उसकी वैक्सीन महज 50 प्रतिशत प्रभावी साबित हुई. फिर ब्राजील ने वैक्सीन के लिए भारत की ओर ही रुख किया.
सवाल यह है कि क्या भारत की वैक्सीन कूटनीति उसके अंतर्राष्ट्रीय हितों को पोषित करने में सहायक होगी?
भारत-चीन सीमा पर भारी तनातनी है. भारत के पड़ोस में भी चीन अपनी शातिर बिसात बिछा रहा है. भारत को उम्मीद है कि जहां चीन को महामारी के जनक के रूप में वहीं भारत को इस महामारी से राहत दिलाने वाले देश के रूप में याद किया जाएगा. चीन अभी भी भारत के पड़ोस में अपना प्रभाव बढ़ाने में जुटा है, ऐसे में नई दिल्ली अपनी वैक्सीन डोनेशन से बनी भावनाओं को अपने पक्ष में भुना सकती है.
भारत की वैक्सीन रणनीति ने पश्चिमी वर्चस्व वाले विमर्श की हवा निकाल दी है. दुनिया भारत को वैक्सीन के प्रभावी एवं किफायती आपूर्तिकर्ता की दृष्टि से तमाम उम्मीदों के साथ देख रही है. भारत में ऑस्ट्रेलिया के राजदूत बैरी ओ फैरेल ने इन उम्मीदों को इन शब्दों में बयान किया कि वैसे तो दुनिया के तमाम देशों में वैक्सीन बनाई जा रही है, लेकिन हर एक देश की आवश्यकता की पूर्ति करने की क्षमता किसी देश में है, तो वह भारत है.
वास्तव में यह भी एक विरोधाभास है कि भारत के मुकाबले कई धनी देशों विशेषकर यूरोपीय संघ के देशों में टीकाकरण की रफ्तार बहुत सुस्त है. स्पष्ट है कि इस महामारी के अंत में भारत के वैक्सीन उद्योग की केंद्रीय भूमिका होगी.
