जाने, जघन्य अपराध तंदूर कांड की हकीकत 

  जाने, जघन्य अपराध तंदूर कांड की हकीकत 

अपराध की दुनियाँ  में बहुत सी अपराध की कहानियाँ पढ़े और सुने होंगे. हर कहानियों में अपराधी अपराध के लिये अलग अलग तरीके अपनाता है. जिस कहानी में पति पत्नी के बीच प्रेमी या प्रेमिका की इंट्री होती उस अपराध की दस्ता सुन या पढ़ के रूह काँप सी जाती है. मौजूदा समय में शादी के बाद प्रेमप्रसंग और फिर पति या पत्नी की हत्या तो आम बात है, लेकिन इस तरह की वारदात अगर दशको पहले हुई हो तो कहानी को पढ़ने में दिलचस्वी पैदा हो जाती है. वारदात आज से ठीक 26 साल पहले देश की राजधानी दिल्ली की है. राजनीतिक पृष्ठभूमि से तालुकात रखने की वजह से हाई प्रोफाइल केस आज तक लोगों के जेहन में जिंदा है. 

तारीख 2 जुलाई साल 1995  समय रात के करीब 8 बजे होंगे जगह सरकारी फ़्लैट नंबर 8/2 A गोल मार्केट नयी दिल्ली. रोज की तरह उस सरकारी फ़्लैट और उसके आस पास का वही माहौल  था लेकिन अचानक रात के सन्नाटे  को चीरती हुयी, गोली चलने की आवाज आती है. लोग अपने घरों  से निकलते है और यही सोचते है कि  शायद  किसी ने पटाखा फोड़ा है. लेकिन गोली की आवाज किसी और पटकथा को लिख चुकी थी. 

बात आज तक सुर्खियों में छाया रहने वाला जघन्य तंदूर कांड की दरसल  तंदूर कांड के जघन्य अपराध की शुरुआत होती है ,गोल मार्केट के सरकारी फ़्लैट नंबर 8/2  A से. जब कांग्रेस के मौजूदा विधायक और यूथ  कांग्रेस के मौजूदा अधय़क्ष सुशील  शर्मा घर पहुंचता है तो देखता है, कि उसकी पत्नी नैना साहनी उस वक्त फ़ोन पर किसी से बात कर रही होती है. 

जब सुशील शर्मा ने पत्नी नैना साहनी का फ़ोन छीन के देखा तो उसका गुस्सा इतना बढ गया की उसने अपने रिवाल्वर से एक के बाद एक लगातार गोलियाँ चला दी और मौके पर ही उसकी पत्नी नैना साहनी ने दम तोड़ दिया. लेकिन सवाल ये उठता है सुशील  शर्मा इतनी सी छोटी बात पर अपनी पत्नी को जान से क्यों मार दिया.   

दरसल सुशील शर्मा के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था. शर्मा को लगता था पत्नी नैना साहनी का किसी करीम नाम के व्यक्ति से नाजायज सम्बन्ध है. करीम सुशील  का सहपाठी था पत्नी के क़त्ल वाले दिन जब वह घर पहुँचा तो उसकी पत्नी नैना साहनी उसी करीम से फ़ोन पर बात कर रही होती है और उसके बाद जो हुआ उसे लोग तंदूर कांड के नाम से जानते हैं. सुशील ने पत्नी की लाश एक बैग में भरकर गाड़ी तक ले गया और फिर गाड़ी की डिग्गी में लाश रख कर लाश ठिकाने लगाने के लिये निकल गया.  

लेकिन उस समय उसका दीमाक काम नहीं कर रहा था वो लाश को कहाँ  ठिकाने लगाये ,और फिर वो अपनी  कार की स्टेरिंग मोड़ देता है RTO पुल की तरफ RTO पुल  के बीचो बीच  गाड़ी रोककर योजना बनाता रहता है लाश को कैसे ठिकाने लगाया जाये उस समय रात को 9 बज रहे होते है और उसे लगा की इस समाया लाश को नदी में फेकते है तो पोल खुल सकता है और वो पकड़ा जा सकता है.

वो सोच ही रहा था कि क्या करूँ उसके दिमाग में  एक तरीका इजाद होता है और वो अपनी कार की स्टेरिंग मोड़ देता है, कनॉट प्लेस की ओर और पहुँच जाता है, कनॉट प्लेस के अशोका यात्री निवास के अंदर बगिया रेस्त्रा में.  घबराया हुआ सुशील शर्मा होटल के मैनेजर से तुरंत होटल बंद करने के लिये कहता हैं.

होटल में  मौजूद सभी ग्राहकों को जाने के लिये कहाँ जाता है. होटल का मैनेजर केशव बाकी स्टाफ को भी छुट्टी दे देता है. अब तक रात के 10:30 बज चुके थे. होटल पूरी तरह खाली हो जाता है, होटल की लाइट को बंद कर केशव और सुशील पहुंचते है, गाड़ी के पास गाड़ी की डीग्गी से बैग निकालते और होटल में लेके आते है. 

रेस्त्रा तो पूरी तरह से बंद हो चूका था, लेकिन तंदूर में आग जल रही थी. लाश को बैग से निकालने के बाद सुशील सोचता है पूरी लाश को ही तंदूर में डाल  दिया जाये.  लेकिन पूरी लाश का तंदूर में जाना संभव नहीं था. ऐसे में रेस्त्रा में मौजूद चाकू से लाश के टुकड़े कर के तंदूर में डालना शुरू कर देता हैं. तंदूर में आग धीरे धीरे कम हो रही थी, लिहाजा सुशील अपने मैनेजर केशव से रेस्त्रा में मौजूद बटर लाने  के लिये  कहता है. 

तंदूर में बटर डालते ही आग की लपटे तेज हो जाती है और धुआँ ऊपर उठने लगता है. रेस्त्रा  के बाहर फुटपात पे सो रही एक अधेड़ उम्र की औरत समझती हैं. रेस्त्रा में आग लग गई हैं औरत चिल्लाना शुरू कर देती हैं. महिला का शोर सुनकर पास में गश्त कर रहा दिल्ली पुलिस का कॉन्स्टेबल रेस्त्रां  में जाता है. रेस्त्रां में पहुँचने के बाद जो दृश्य देखा उस दृश्य को देखकर हैरान रह जाता है. मौका पाकर सुशील  शर्मा वहाँ से फरार हो जाता हैं. 

अगले दिन पूरी घटना आग की तरह फ़ैल जाती है, मौजूदा समय में युथ कांग्रेस का नेता करीम प्रेस कॉन्फ्रेन्स करता हैं और पुष्टि करता तंदूर में डाली गयी लाश किसी और की नहीं बल्कि नैना साहनी की है. 10 जुलाई को सुशील शर्मा समर्पण कर देता है. निचली अदालत में केस चलता रहता है अदालत फांसी की सजा मुकम्मल करती है, मामला हाईकोर्ट में पहुंचा  हाईकोर्ट भी निचली अदालत के फैसले पर सहमति जताती और फांसी की सजा बरकरार रखती हैं. 

2003  में सुशील शर्मा सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाता हैं, दया याचिका दायर करता कोर्ट फांसी की सजा उम्रकैद में तब्दील कर देती है. अपनी उम्रकैद की सजा काटने के बाद सुशील की 2019 में रिहाई हो जाती है. जेल से बाहर आने के बाद जब पत्रकारों ने सुशील से पूछा क्या आपको अफ़सोस है, अपनी पत्नी की हत्या पर सुशील भाऊक हो जाता और कहता अब करने के लिये बस अफ़सोस ही बचा हैं.

अपराध की बहुत सी घटनाओ में जघन्य अपराध की दस्ता की पठकथा वारदात के बाद उसके सबूत को मिटाने के लिये लिखी जाती जिसको पढ़ने के बाद रूह काँप सी जाती है तंदूर कांड की सच्चाई भी ऐसी ही है. 

Akhilesh Namdeo