अमरकंटक में सर्वोदय तीर्थ की स्थापना करने वाले जैन आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज हुए ब्रह्मलीन
जैन समाज में शोक की लहर
डोंगरगढ़ में हुआ उनका महाप्रयाण
गौरेला पेंड्रा मरवाही

मां नर्मदा के उद्गम स्थल तीर्थ स्थल अमरकंटक में सर्वोदय तीर्थ की स्थापना करने वाले संत शिरोमणि जैन आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज समाधिस्थ हो गए हैं। छत्तीसगढ़ के प्रमुख तीर्थ स्थल डोंगरगढ़ में 17 फरवरी के रात्रि 2:30 बजे उनका महा प्रयाण हुआ।
जैन आचार्य स्वामी विद्यासागर महाराज जी का इस नर्मदा अंचल खासकर गौरेला पेंड्रा से लगभग 30 साल पुराना नाता रहा है। साल वनों की घाटी प्राकृतिक सुषमा से भरपूर मां नर्मदा का उद्गम अमरकंटक उन्हें वर्ष 1994 में अपने पास खींच लाया था तथा यहां उन्होंने भारत के जैन समाज को एक सूत्र में पिरोकर यहां सर्वोदय तीर्थ की नींव रखी। पेंड्रा में संचालित सर्वोदय गौशाला संत शिरोमणि विद्यासागर महाराज की ही देन है।15 जनवरी वर्ष 1994 में विद्यासागर महाराज जी का 15 मुनियों के साथ अमरकंटक आगमन हुआ था तो वह सर्वोदय तीर्थ की स्थापना के लिए लंबे समय तक अमरकंटक में ही रहकर समाज का मार्गदर्शन करते थे।

तीर्थस्थली अमरकंटक में सर्वोदय तीर्थ निर्माण के लिए आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी के मार्गदर्शन में जैन समाज की एक बड़ी समिति बनाई तथा हर रविवार को उनका प्रवचन कार्यक्रम आयोजित होता था जिसमें न सिर्फ पूरे भारत के कोने-कोने से जैन समाज के लोग पहुंचते थे बल्कि सर्व हिंदू समाज आचार्य श्री के प्रवचन को सुनने के लिए अमरकंटक पहुंचता था। महाराज जी का प्रथम अमरकंटक प्रवास लगभग 6 महीने का था जिसके कारण प्रवचन का क्रम लंबे समय तक चला रहा।

1994 से 2023 के बीच में आचार्य श्री का अनेक बार अमरकंटक आगमन हुआ। आचार्य श्री के निमंत्रण पर उपराष्ट्रपति भैरव सिंह शेखावत भी दो बार अमरकंटक आए थे। मध्य प्रदेश के कांग्रेस एवं भाजपा के मुख्यमंत्री क्रमशः दिग्विजय सिंह एवं शिवराज सिंह चौहान भी सर्वोदय तीर्थ आचार्य श्री के निमंत्रण पर आते रहे। आचार्य श्री की प्रेरणा से अमरकंटक स्थित सर्वोदय तीर्थ आज पूरे देश में प्रचलित हो चुका है। वही आचार्य श्री द्वारा पेंड्रा में स्थापित सर्वोदय गौशाला भी लगातार प्रगति की ओर अग्रसर है। इन सब कारणों से गौरेला पेंड्रा के लोगों सहित जैन समाज का स्वाभाविक रूप से आचार्य श्री विशेष लगाव रहा।
उनके विचार ,उनकी त्याग, तपस्या सदैव समाज का मार्ग प्रशस्त करेगी। उनके समाधिसथ होने के समाचार के बाद पेंड्रा गौरेला में जैन समाज से संबंधित अधिकांश प्रतिष्ठान बंद रहे।

