कैंची धाम की महत्ता और नीम करौली बाबा

कैंची धाम की महत्ता और नीम करौली बाबा

आज बात एक ऋषि और कैंची धाम की. यू तो भारत, भूमी पर समय समय पर अनेक ऋषि मुनि, संत सन्यासी और महात्माओ ने जन्म लिया और देश की गरिमा उसकी महिमा को उजागर किया है. लेकिन कुछ ऐसे संत महात्मा हुये जो भारत ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व में भारतभूमि की यशगाथा को फ़ैलाने का काम किया है. 

भारत की धरती पुरातन काल से महान संतो, महापुरुषों एवं विदुषियों की जन्मदायिनी रही है. संत चाहे दुनिया के किसी भी कोने में पैदा हुये हो, सही मायनो में संत वही है, जो इंसानो को सही एवं कुदरती राह पर चलना सिखाता है. भारतीय संत परम्परा में संत कबीर से लेकर गुरनानक देव, बुल्ले शाह, मलूकदास, ज्योतिबा फुले, स्वामी विवेकानंद आदि. सभी संतों की सामान्य प्रवृति में ज्ञान एवं कर्म की साधना करना एवं इसका उपयोग मानव एवं कुदरत सहअस्तिव के लिए करने का भाव है. परन्तु ज्ञान, कर्म एवं भक्ति की साधना कर महान मानवीय या फिर ईश्वरीय गुणों को प्राप्त करने और उनको मानवता की सेवा में समर्पण कर देने का एक बड़ा नाम  एक उदाहरण   है.

वैसे तो सम्पूर्ण भारत की भूमि को देवभूमि कहाँ जाता है, लेकिन देश के पहाड़ी भाग में अवस्थित उत्तराखंड देवों के देव भूमि के रूप में जाना जाता है. हिमालय की कोख में पला बसा उत्तराखंड जहाँ की प्राकृतिक खूबसूरती देश को धरोवर के रूप मिला है. जहाँ गंगा यमुना की कल कल करती निर्मल धारा को निहारने पर महसूस होता, निर्मल धारा अमृत का पान करा रही है. दृश्य देख कर यही लगता मानों प्रकृति यहाँ एकांत बैठी निज रूप सवारती, आज देवभूमि के एक धाम एक संत के बारे में पढ़ेगे. 

कैची धाम संत नीमकरौली बाबा 

आरंभिक जीवन  

हनुमान के भक्त महाराज नीम करोली बाबा जी का जन्म सन 1900 के आस पास उत्तर- प्रदेश के फिरोजाबाद जिले के अकबरपुर ग्राम में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ  था. नीम करोली महाराज के पिता का नाम श्री दुर्गा प्रसाद  शर्मा था. नीम करोली बाबा जी के बचपन का नाम लक्ष्मी नारायण शर्मा था. अकबरपुर के किरहीनं गांव में ही उनकी प्रारंभिक शिक्षा- दीक्षा हुयी . मात्र 11 वर्ष कि उम्र में ही लक्ष्मी नारायण शर्मा का विवाह हो गया था. परन्तु  जल्दी ही उन्होंने घर छोड़ दिया और लगभग 10 वर्ष तक घर से दूर रहे.

एक दिन उनके पिता को किसी ने उनकी खबर दी, पिता उनसे मिले और गृहस्थ जीवन का पालन करने का आदेश दिया. पिता के आदेश को तुरंत मानते हुये वो घर वापस लौट  आये और पुनः गृहस्थ जीवन आरम्भ कर दिया. गृहस्थ  जीवन  के साथ- साथ सामाजिक और धार्मिक कार्यों में वो बढ़ – चढ़ कर  हिस्सा लिया करते थे.बाद में  दो बेटों एवं एक बेटी के पिता भी बने  परन्तु घर गृहस्थी में लम्बे समय तक उनका मन नहीं रमा और कुछ समय बाद लगभग 1958 के आस- पास उन्होंने फिर से गृह त्याग कर दिया

गृह त्याग एवं तपस्या 

घर-बार त्याग कर वो अलग-अलग जगह घूमने लगे. इसी भृमण के दौरान उनको हांड़ी वाला बाबा, लक्ष्मण दास, तिकोनिया वाला बाबा आदि नामों से जाना  गया. कहा जाता है कि और उन्होंने मात्र 17 वर्ष की आयु में ज्ञान प्राप्त कर लिया था. नीम करोली बाबा जी ने गुजरात के बवानिया मोरबी में साधना की और वहां वो तलैयां वाला बाबा के नाम से विख्यात हुये वृंदावन में महाराज जी, चमत्कारी बाबा के नाम से जाने गये. 

बाबा के बारे में एक रोचक कहानी  

कहते है कि गृह- त्याग के बाद, जब वो अनेक स्थानों के भ्रमण पर थे तभी एक बार महाराज जी एक स्टेशन से ट्रेन में  बिना टिकट के ही चढ़ गए और प्रथम श्रेणी में जाकर बैठ गए. मगर कुछ ही समय बाद टिकट चेक करने के लिए एक कर्मचारी उनके पास आया और टिकट के लिए बोला, महाराज ने बोला टिकट तो नहीं है, कुछ वाद- विवाद के बाद ट्रेन के ड्राइवर एक जगह ट्रेन रोक दी. महाराज को उतार दिया गया और  वापस ट्रेन चलने लगी मगर ट्रेन दुबारा स्टार्ट नहीं हुयी. बहुत कोशिश की गयी, इंजन  को बदल कर देखा गया मगर सफलता हाथ नहीं लगी.

इसी बीच एक अधिकारी वहां पहुंचे और  उन्होंने ट्रेन को अनियत स्थान पर रोके जाने का कारण जानना चाहा. तो कर्मचारियों ने पास में ही  एक पेड़ के नीचे बैठे  साधु  को इंगित करते हुये  कारण अधिकारी को बता दिया. वो अधिकारी महाराज और उनकी दिव्यता से परिचित था. अतः उसने साधु को वापस ट्रेन में बिठा कर ट्रेन स्टार्ट करने को कहा. साधु ने इंकार कर दिया परन्तु जब अन्य सह यात्रियों ने भी महाराज से बैठ जाने का आग्रह किया तो महाराज ने दो शर्तें रखी. एक कि उस स्थान पर ट्रेन स्टेशन बनाया जायेगा, दूसरा कि साधु सन्यासियों के साथ भविष्य में ऐसा बर्ताव नहीं किया जायेगा. रेलवे के अधिकारिओं ने दोनो शर्तों के लिए हामी भर दी तो महाराज ट्रेन में चढ़ गए और ट्रेन चलने लगी. 

बाद में रेलवे ने उस गांव में एक स्टेशन बनाया. कुछ समय बाद महाराज उस गांव में आये और वहां रुके तभी से लोग उन्हें नीम  करौली वाले बाबा  या नीम करोली बाबा के नाम से जानने लगे.

नीम करौली बाबा की महासमाधि 

नीम करोली बाबा जी आगरा से वापस कैंची धाम आ रहे थे. जहां वो  में दर्द की शिकायत के बाद जरुरी चिकित्सा जाँच के लिए गए थे, इसी बीच मथुरा स्टेशन पर पुनः दर्द  होने के कारण उन्होंने अपने शिष्यों को वृंदावन आश्रम वापस चलने के लिए कहा. तबियत ज्यादा ख़राब होने कि वजह से शिष्यों ने उन्हें वृंदावन में एक हॉस्पिटल के आकस्मिक  चिकित्सा सेवा कक्ष  में भर्ती कर दिया. डॉक्टर्स ने उन्हें कुछ इंजेक्शन दिए और ऑक्सीजन मास्क लगा दिया.

कुछ ही देर में महाराज वापस बैठ गए और ऑक्सीजन मास्क को उतार कर कहा “बेकार” और महाराज  धीरे- धीरे  कई बार “जय जगदीश हरे” पुकारते हुये 11 सितम्बर 1973 को 1 बजकर 15 मिनट पर  बहुत ही शांति  में लीन  हो गए. 

कैंची धाम की महत्ता 

बाबा के चमत्कार की बहुत सी कहानियाँ  लोगो के बिच प्रचलित है ,खाश बात बाबा की महिमा विदेशों  तक फैली है ,अभी भी कैची धाम में लाखों विदेशी  श्रद्धालु हर साल बाबा के दर्शन और अपनी मनोकामना  की पूर्ति के लिये  यहाँ आते रहते है.

एप्पल कंपनी के सीईओ स्टीव जॉब्स 80 के दशक में जब अपने बुरे दौर से गुजर रहे थे तो बाबा के सानिध्य में आके वक्त गुजारा था फेसबुक के मालिक जब अपने जीवन के संघर्षो से जूझ रहे थे तो बाबा के सरण में आये थे ,इसका खुलासा खुद दोनों ने किया है.

भारत भूमि पर रहने वाले हर महात्मा अपन आप में सिद्ध पुरुष है, जिनको जानना उन पे गर्व करना हमारा काम है, अगले कड़ी में फिर किसी सिद्ध महात्मा के जीवन गाथा को लेकर आप लोगों के बीच हाजिर होऊंगा.

 

Akhilesh Namdeo