लव-जिहाद कानून के पीछे का चेहरा
कहते हैं ,राजनीति वक्त और मेहनत मांगती है और राजनीति किसी के बाप की बपौती नहीं होती. जिसने राजनीति को बपौती समझा, वह राजनितिक अखाड़े में चारो खाने चित्त हो गया और जिसको भी सियासी ताज जागीर में मिला उसका सियासी सफर और साख दोनों सस्ते में सिमट के रह गये. उदाहरण:- अजित सिंह, लालू के दोनों शूरवीर और मुलायम के अखिलेश, बाकि पप्पू की तो बात ही निराली है. सरकार की सभी नीतियों और योजनाओं में मुख्य किरदार निभाते कुछ राजनीतिक शूरवीरों में से एक ने अभी हाल ही में उत्तरप्रदेश में लव जिहाद के खिलाफ कानून बना दिया है.
यूपी के इस नए कानून के मुताबिक यदि यह साबित हो जाता है कि धर्म परिवर्तन की मंशा से शादी की गई है, तो दोषी को 10 साल तक की सजा हो सकती है. इस कानून के तहत जबरन, लालच देकर या धोखाधड़ी से धर्म परिवर्तन कराने को भी गैर ज़मानती अपराध माना गया है. इसका मतलब यह है कि पुलिस आरोपी को बिना वारंट के गिरफ्तार करके, उससे पूछताछ कर सकती है. तोहफा, पैसा, मुफ्त शिक्षा, रोजगार या बेहतर सुख-सुविधा का लालच देकर भी धर्म परिवर्तन कराना अपराध है. धर्म परिवर्तन करने वाले व्यक्ति के माता-पिता या रिश्तेदार भी केस दर्ज करा सकते हैं. अध्यादेश में सामान्य तौर पर अवैध धर्म परिवर्तन पर पांच साल तक की जेल और 15 हजार रुपये के जुर्माने का प्रावधान है. लेकिन अनुसूचित जाति-जनजाति की नाबालिग लड़कियों से जुड़े मामले में 10 साल तक की सजा का प्रावधान और 25 हजार रुपये जुर्माने का प्रावधान है. पहले के धर्म को दोबारा अपनाने पर धर्म परिवर्तन नहीं माना जाएगा. अवैध धर्म परिवर्तन कराने का दोबारा दोषी पाए जाने पर सजा दो गुनी हो जाएगी.
लव जिहाद के खिलाफ कानून बनाने में जिस व्यक्ति की मुख्य भूमिका है, वो हैं बृजेश पाठक. इनके राजनैतिक सफर की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है.
वर्ष 1980 में बृजेश पाठक हरदोई जिले से इंटर पास करके आगे की पढ़ाई के लिए लखनऊ आए. बीकॉम किया और उसके बाद चार्टर्ड अकाउंटेंट बनने के लिए उन्होंने आईसीडब्ल्यूए (I.C.W.A) में दाखिला लिया. पारिवारिक पृष्ठभूमि ऐसी थी, जो उन्हें लंबे वक्त तक बिना कमाए पढ़ते रहने की इजाजत नहीं दे रही थी. उधर सीए बनने का रास्ता लंबा होता दिख रहा था. तभी उन्होंने ट्रैक बदला और तय किया कि अब एलएलबी करनी है, जिससे कोर्स पूरा होते ही वकालत शुरू हो सके.
पढ़ाई के दौरान राजनीति का लगा चस्का
लखनऊ विवि में कानून की पढ़ाई के दौरान ही उन्हें राजनीति का चस्का लगा. वे पहले छात्रसंघ में विधि प्रतिनिधि हुए, उसके बाद उपाध्यक्ष और अध्यक्ष की कुर्सी तक जा पहुंचे. यह वह समय था, जब माना जाता था कि लखनऊ विवि के छात्र संघ का दरवाजा विधानसभा के अंदर खुलता है. बृजेश के अंदर अब विधानसभा पहुंचने की ख्वाहिश जाग चुकी थी. पहले 1996 और उसके बाद 2002 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने बीजेपी से टिकट पाने की बहुत कोशिश की, लेकिन बात नहीं बनी.
राजनैतिक सफर
आखिरकार उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर वर्ष 2002 में पहला चुनाव में लड़ा, लेकिन महज 130 वोटों से हार गए. इतनी नजदीकी हार ने उन्हें तमाम राजनीतिक दलों की नजरों में चढ़ा दिया. बृजेश ने अपनी हार को कोर्ट में चुनौती दी. 2004 की वह एक दोपहर थी, जब चुनाव याचिका पर सुनवाई के दौरान वे कोर्ट में मौजूद थे, उन्हें बीएसपी चीफ मायावती का संदेशा मिला. दरअसल तब तक लोकसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी थी. बीएसपी को ऐसे ब्राह्मण चेहरे की जरूरत थी जो बिरादरी के वोट पार्टी की तरफ ला सके. बृजेश को उन्नाव सीट से लोकसभा का टिकट दिया गया. यह वही चुनाव था, जिसमें पहली बार ‘हाथी नहीं गणेश हैं, ब्रह्मा, विष्णु, महेश हैं’ का नारा गढ़ा गया था। बृजेश वह चुनाव जीत गए और उसके बाद उन्होंने राजनीति में पीछे मुड़कर नहीं देखा.
बीजेपी में पैठ
बीएसपी ने बाद में बृजेश को राज्यसभा भी भेजा, लेकिन यूपी के 2017 के चुनाव के वक्त उनकी मुलाकात अमित साह से हुई और फिर यहीं से उनके बीजेपी में आने का रास्ता खुल गया. वे बीजेपी के टिकट से लखनऊ से चुनाव जीते और कानून मंत्री बनाये गए. इन दिनों वे अटल बिहारी वाजपेयी की स्मृतियों को संजोने में लगे हैं. इसके लिए उन्होंने अटल जी के नाम पर एक फाउंडेशन स्थापित किया है. उनके नाम पर वे एक फैलोशिप भी शुरू करने वाले हैं.

