मुखड़ा देख ले प्राणी जरा दर्पन में, देख ले कितना पुण्य है कितना पाप तेरे जीवन में

कवि प्रदीप की 25 वीं पुण्यतिथि पर विशेष

आज हिंदी के प्रख्यात गीतकार प्रदीप जी की 25वीं पुण्यतिथि है जिनके गीतों को हर कोई बचपन से सुनता आ रहा है।हिंदी फिल्मीं संगीत में रुचि रखने वाला ऐसा कौन व्यक्ति होगा जिसने “दूसरों का दुखड़ा दूर करने वाले तेरे दुख दूर करेंगे राम” यह गीत कभी ना कभी ना सुना होगा। जिसने भी सुना उसने इस बार-बार सुना क्योंकि यह गीत ही ही ऐसा है। इन्हीं गीतों के क्रम में तेरे द्वार खड़ा भगवान भगत भर दे रे झोली, मुखड़ा देख ले प्राणी जरा दर्पण में, देख ले कितना पुण्य है कितना पाप तेरे जीवन में है। इसी के साथ सुख-दुख दोनों रहते जिसमें जीवन है वो गांव कभी धूप तो कभी छांव के बोल बोल कुछ इस तरह है कि कौन होगा जो इसे गुनगुनाना ना चाहेगा? यह ऐसा गीत है जिसमें हर किसी व्यक्ति को अपने दर्द का ही एहसास होता है और लगता है कि यह गीत उसी की कहानी कह रहा है। यही तो कवि प्रदीप की विशेषता थी कि उनके लिखे गए गीतों में जनसामान्य का दर्द छिपा हुआ है। मुझे लगता है कि किसी भी निराश मन को मोटिवेशन के लिए यदि इन गीतों को सुनाया जाए तो शायद उसमें आश्चर्यजनक परिवर्तन देखा जा सकता है। मैं तो इन गीतों को बचपन से रेडियो पर सुनता आया हूं। इन्हें गीत कहा जाए या भजन इसका निर्धारण कर पाना मुश्किल है। लाउडस्पीकर के जमाने में मंदिरों में भी इनके यह सभी गीत खूब बजते थे। बचपन मैं जब कभी अमरकंटक गया और वहां रुकने पर नर्मदा मंदिर पर कवि प्रदीप के ये गीत सुबह शाम अनिवार्य रूप से बजते हुए सुना । लगता था कोई साधु गीत गा रहे हैं।एक और गीत जिसकी चर्चा हम बचपन से सुनते आ रहे हैं ‘ऐ मेरे वतन के लोगों जरा आंख में भर लो पानी’इस गीत के बगैर तो शायद ही किसी स्कूल या संस्था का 15 अगस्त और 26 जनवरी का पर्व हो वह पूरा हो ही नहीं सकता! यह वही गीत है जिसे वर्ष 1962के भारत-चीन युद्ध के दौरान शहीद हुए सैनिकों की श्रद्धांजलि में कवि प्रदीप ने लिखा था और जब इस गीत को तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 26 जनवरी सन 1963 को स्वर कोकिला लता मंगेशकर की आवाज में दिल्ली के रामलीला मैदान में सुना था तब उनकी आंखें भी नम हो गई थी और उन्होंने लता मंगेशकर जी को बुलाकर वह गीत सुना। इस गीत के प्रचारित होने के बाद दुनिया को पता लगा कि इस देश में कोई ऐसा देश भक्त गीतकार है जिसका नाम है कवि प्रदीप जिनकी आज 25वीं पुण्यतिथि है। दरअसल आज ही के दिन 11 दिसंबर 1998 को इस महान देशभक्त गीतकार कवि ने इस संसार से विदा ले लिया था। मुझे नहीं लगता कि शायद ही कोई व्यक्ति रहा हो जो उनके निधन पर आंसू न बहाया हो। आज सुबह से कवि प्रदीप की पुण्यतिथि पर उनकी याद आई तो उनके गाए गीत जैसे कानों में बजने लगे।

भारत विशेष में संगीत से प्रेम करने वाला हर कोई कवि प्रदीप के गीतों से परिचित है। कवि प्रदीप भारत में परिचय के मोहताज नहीं है। देशभक्ति पूर्ण रचनाओं के लिए चर्चित कवि प्रदीप एक तरह से जनकवि माने गए हैं जिनकी रचनाएं जनसामान्य को अपने आसपास दिल को छूती हुई जान पड़ती है।कवि प्रदीप का यह गीत जिसमें जीवन का मर्म छुपा हुआ है” सुख दुख दोनो रहते जिसमें जीवन है वो गांव , कभी धूप तो कभी छाँव “इस गीत को आपने कभी ना कभी जरूर गुनगुनाया होगा । एक और गीत “देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान, कितना बदल गया इंसान” यह गीत आपकी जुबान पर कभी न कभी आया होगा। इस गीत की चर्चा ना हो तो कवि प्रदीप की चर्चा पूरी ही नहीं होगी जिसमें उन्होंने कहा ” पिंजरे के पंछी रे तेरा दर्द न जाने कोय”‌। इस गीत को सुनने के बाद ऐसा लगता है कवि ने अपनी जुबानी मेरी कहानी लिख दी है।
कवि प्रदीप ने जितने गीत लिखे और गाए वे ज्यादातर 50 वर्ष पूर्व के ही हैं परंतु उनके गीत आज भी प्रासंगिक और समाज में फिट बैठते हैं। वर्तमान समाज की तस्वीर प्रस्तुत करता हुआ उनका यह गीत”आज के इंसान को यह क्या हो गया ” हमें आज भी झझकोर देता है। इसी तरह उनका एक और गीत “हमने जग की गजब तस्वीर देखी एक हंसता है दस रोते हैं”समाज की वास्तविक तस्वीर है। मनुष्य को आईना दिखाता यह गीत “मुखड़ा देख ले प्राणी , जरा दर्पण में देख ले कितना पुण्य है कितना पाप तेरे जीवन में” हमें अपने आप के बारे में सोचने में मजबूर कर देती है। कवि प्रदीप ने देश भक्ति पूर्ण जो रचनाएं की है उसमें उनका एक कालजयी गीत जिसे लता मंगेशकर जी ने गाया “ए मेरे वतन के लोगों जरा आंख में भर लो पानी जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो कुर्बानी ” गीत सुनकर आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं तथा आंखें नम हो जाती है। इसके अलावा “आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं झांकी हिंदुस्तान की इस मिट्टी से तिलक करो यह धरती है बलिदान की “वंदे मातरम वंदे मातरम “आज भी बच्चे बच्चे की जुबान पर है। भारत भूमि की विशेषताओं से परिपूर्ण इस गीत के बगैर हमारा गणतंत्र दिवस एवं स्वतंत्रता दिवस पूरा नहीं हो सकता। महान गीतकार एवं कवि प्रदीप जिनके प्रेरणा दायक हमेशा से हम सबकी जुबान पर रहे हैं।

कवि प्रदीप का मूल नाम ‘रामचंद्र नारायण जी द्विवेदी’ था। उनका जन्म 6 फरवरी सन 1915 में मध्य प्रदेश के उज्जैन में बड़नगर नामक स्थान में हुआ। कवि प्रदीप की पहचान 1940 में रिलीज हुई फिल्म बंधन से बनी। हालांकि 1943 की स्वर्ण जयंती हिट फिल्म किस्मत के गीत “दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिंदुस्तान हमारा है” ने उन्हें देशभक्ति गीत के रचनाकारों में अमर कर दिया। गी। उनके गीत से बौखलाई तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने उनकी गिरफ्तारी के आदेश दिए। इससे बचने के लिए कवि प्रदीप को भूमिगत होना पड़ा।
गूगल से प्राप्त जानकारी के अनुसार कवि प्रदीप ने 71 फिल्मों के लिए 1700 गीत लिखे। उनके देशभक्ति गीतों में, फिल्म बंधन (1940) में “चल चल रे नौजवान”, फिल्म जागृति (1954) में “दे दी हमें आजादी बिना खडग ढाल” और फिल्म जय संतोषी मां (1975) में “यहां वहां जहां तहां मत पूछो कहां-कहां” है। इस गीत को उन्होंने फिल्म के लिए स्वयं गाया भी था। 11 दिसंबर सन 1998 को हिंदी के इस महान कवि गीतकार प्रदीप जी ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।
भारत सरकार ने उन्हें सन 1997-98 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया। कवि प्रदीप कुमार के सम्‍मान में मध्‍यप्रदेश सरकार के कला एवं संस्‍कृति विभाग ने कवि प्रदीप राष्‍ट्रीय सम्‍मान की स्‍थापना वर्ष 2013 में की । पहला कवि प्रदीप राष्‍ट्रीय सम्‍मान पुरस्‍कार उत्‍तर प्रदेश के प्रसिध्‍द गीतकार गोपालदास नीरज को दिया गया।

राष्ट्रकवि प्रदीप की गायन शैली और उनकी आवाज का आज भी कोई मुकाबला नहीं है। अपने गीतो के माध्यम से उन्होँने जिस तरह से निराश मन में प्राण फूंका,समाज का जो मार्गदर्शन किया उसे भुलाया नहीं जा सकता । देशभक्ति पूर्ण रचना करने वाले जनकवि प्रदीप जी की पुण्यतिथि पर सादर शत शत नमन।

अक्षय नामदेव पेंड्रा छत्तीसगढ़ मोबाइल 94062 13643

Akhilesh Namdeo

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