महाराजा सुहेलदेव: जिनका पराक्रम इतिहास के पन्नों से गायब हो गया
भारतीय इतिहास वामपंथ की उपज है, इतिहास के पन्नों पर कभी अकबर की धार्मिक सहिष्णुता दिखाई देती तो कभी तैमूर का पराक्रम पढ़ने को मिल जाता है. भारत के वीर योद्धाओं की कहानी कही नहीं दर्ज है. वामपंथ के साथ साथ आजादी के बाद सत्ताधारी कांग्रेस भी कम दोषी नहीं जो भारत के वीर पराक्रमियो को अनदेखा करते आयी है. वरना हमारी पीढ़ी आजाद, भगत सिंह, के साथ महाराजा सुहेलदेव और बहुत से गुमनाम हुये वीरों की वीर गाथा जरुर पढ़ी होती.
महाराजा सुहेलदेव के बारे में पूरी जानकारी जरुर पढ़ने को मिलेगी, उससे पहले हालिया घटनाक्रम क्या है, ये जान लेना जरूरी है.
बंगाल के बाद अगला विधानसभा चुनाव उत्तर प्रदेश में होने वाला है. विधानसभा चुनावों से पहले राजनीतिक हलचल बढ़ने लगी है. इसी राजनीतिक खींचातानी के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंगलवार को यूपी बहराइच में महाराजा सुहेलदेव के स्मारक का शिलान्यास करने जा रहे हैं. पीएम मोदी की इस कार्यक्रम में उपस्थिति वर्चुअल तौर पर होगी, लेकिन यूपी सरकार बड़े स्तर पर इस दिन को मना रही है.
उत्तर प्रदेश में महाराजा सुहेलदेव के अलग-अलग शहीद स्मारकों पर कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है और उन्हें याद किया जा रहा है. इसको राजनीतिक रूप से भी काफी अहम माना जा रहा है, क्योंकि महाराजा सुहेलदेव को राजभर समुदाय से जोड़ा जाता है, जिनका उत्तर प्रदेश की करीब 40 विधान सभाओं पर सीधा प्रभाव है.
आखिर महाराजा सुहेलदेव कौन थे
महमूद गज़नवी के भतीजे सैयद सालार मसूद ग़ाज़ी को धूल चटाने वाले योद्धा
इतिहास के पन्नों पर जमा वामपंथी धूल को साफ करेगें तो वास्तविक इतिहास की एक झलक दिखाई देगी. महाराजा सुहेलदेव 11वीं सदी में श्रावस्ती के सम्राट थे, जिन्हें एक महान योद्धा के तौर पर देखा जाता है. महमूद गज़नवी ने जब हिन्दुस्तान पर आक्रमण किया और उसकी अलग-अलग सेनाएँ हिन्दुस्तान में घुसने लगीं, तब श्रावस्ती की कमान महाराजा सुहेलदेव के हाथ में ही थी.
भारत पर आक्रमण करने वाला प्रथम अफगानी महमूद गज़नवी का भांजा सैयद सालार मसूद ग़ाज़ी ने सिंधु नदी के पार तत्कालीन भारत के कई हिस्सों पर अपना कब्जा जमा लिया था. सैयद सालार मसूद ग़ाज़ी जब बहराइच की तरफ आया, तब उसका सामना महाराजा सुहेलदेव से हुआ. बहराइच में हुई इस जंग में महाराजा सुहेलदेव ने गज़नवी के भतीजे सैयद सालार मसूद ग़ाज़ी को धूल चटा दी.
महाराजा सुहेलदेव की अगुवाई में उनकी सेना ने सैयद सालार मसूद ग़ाज़ी का खात्मा किया और पूरी टोली को ही मिट्टी में मिला दिया. करीब 17वीं सदी में जब फारसी भाषा में मिरात-ए-मसूदी लिखी गई, तब इस वाकये का विस्तार से जिक्र किया गया.
आदरणीय प्रधानमंत्री जी के मार्गदर्शन में लगभग एक हजार वर्ष से विस्मृत 'राष्ट्र रक्षक' महाराजा सुहेलदेव जी की स्मृतियों और गौरवशाली इतिहास को पुनर्जीवित करने का कार्य @UPGovt द्वारा किया जा रहा है।
यह हमारे समस्त ज्ञात-अज्ञात महापुरुषों को सच्ची श्रद्धांजलि है।— Yogi Adityanath (@myogiadityanath) February 16, 2021
अलग-अलग समुदाय जताते रहे हैं दावा
मौजूदा वक्त में उत्तर प्रदेश में कई जातियां महाराजा सुहेलदेव से खुद के रक्त को जोड़कर सुहेलदेव पर अपना दावा ठोकती आई हैं. मुख्य रूप से महाराजा सुहेलदेव को महाराजा सुहेलदेव राजभर कहा जाता है, ऐसे में राजभर समुदाय अपना हक उनपर जताता आया है. राजभर समुदाय के अलावा पासी समुदाय भी उत्तर प्रदेश में महाराजा सुहेलदेव से सुहेलदेव का संबंध रखने का दावा रखता है.
राजभर और पासी समाज मानता है वंशज
मौजूदा उत्तर प्रदेश में एक जिला श्रावस्ती स्थित है, महाराजा सुहेलदेव 11वीं सदी में श्रावस्ती के सम्राट थे. सुहेलदेव ने महमूद गज़नवी के भांजे सालार मसूद को मौत के घाट सुलाया था. राजभर और पासी जाति के लोग उन्हें अपना वंशज मानते हैं, जिनका पूर्वांचल के कई जिलों में खासा प्रभाव है. हिंदूवादी संगठन और भाजपा सुहेलदेव को हिंदू राजा के तौर पर चित्रित करते हैं. उत्तर प्रदेश सरकार में भाजपा का सहयोगी दल सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (भासपा) के अध्यक्ष और उत्तरप्रदेश में मंत्री ओमप्रकाश राजभर सुहेलदेव को राजभर बताते हैं, वहीं सुहेलदेव को पासी बिरादारी का भी बताया जाता है. हाल ही में राजभर ने केंद्र सरकार से सुहेलदेव के नाम पर डाक टिकट जारी करने की मांग की थी.
इतिहास खोजना मुश्किल
डॉ. राजकिशोर जो बहराइच के प्रसिद्ध इतिहासकार है, उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया था कि राजा सुहेलदेव आज से करीब हजार वर्ष पूर्व के ऐसे महानायक हैं, जिनका इतिहास खोजना काफी मुश्किल है. वीरता के कई किस्से मौजूद हैं. लोगों के बीच उनकी जाति को लेकर काफी भ्रान्ति मौजूद है, कोई उन्हें राजभर, तो कोई पासी जाति का बताता है.
प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ. राजकिशोर के मुताबिक, 1907 में प्रकाशित बहराइच गजेटियर के कुछ संपादित अंश में भी कुछ स्पष्ट नहीं था. गजेटियर में सुहेलदेव के आगे राजपूत, भर, पासी, जैन, बौद्ध जैसे शब्द भी जुड़े थे, यानी स्पष्ट नहीं था कि सुहेलदेव किस जाति या पंथ से जुड़े राजा थे. लोगों की मान्यता यह भी है कि सुहेलदेव भर जाति से ताल्लुक रखते थे. भर पासी जाति की चौदह उपजातियों में से एक है. सुहेलदेव एक वीर राजा थे और उनके अंदर में चौदह अन्य राजा थे.
एक अन्य किताब ‘जैन धर्म के शासक’ में भी सुहेलदेव के बारे में चर्चा है. इसके अनुसार सुहेलदेव ने जैन धर्म अपना लिया था. तर्क था कि उस वक्त ब्राह्मण मुनि नीची मानी जाने वाली जातियों के राजा का अभिषेक नहीं करते थे, जैन मुनि कर देते थे, इसीलिए शायद उन्होंने जैन धर्म स्वीकार कर लिया.
मिथकों-लोककथाओं के अनुसार सुहेलदेव को 18वीं और 19वीं रज्जब हिजरी 424 वर्ष 1033 में कौड़ियाला नदी के तट पर लड़े गए युद्ध के लिए सबसे ज्यादा याद किया जाता है.

