ज्वालेश्वर महादेव

मां नर्मदा के उद्गम अमरकंटक से सटे प्रमुख तीर्थ स्थानों में से एक ज्वालेश्वर महादेव है जो अमरकंटक स्थित नर्मदा कुंड मंदिर से उत्तर की ओर अमरकंटक से राजेंद्रग्राम मार्ग पर लगभग 8 किलोमीटर पर स्थित है जबकि पेंड्रारोड रेलवे स्टेशन से इसकी दूरी मात्र 16 किलोमीटर है।
छत्तीसगढ़ के गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले के ग्राम तवंडबरा में स्थित ज्वालेश्वर महादेव पर मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ सहित पूरे भारत के भक्तों की आस्था है और यही कारण है कि पूरे वर्ष भर ज्वालेश्वर महादेव में तीर्थयात्रियों की परिक्रमा वासियों का नाम जाना लगा रहता और ज्वालेश्वर महादेव को बाणलिंग भी कहा जाता है।
स्कंद पुराण के अनुसार सतयुग में बलि नाम के श्रेष्ठ दैत्य के पुत्र जिसका नाम बाणासुर था। बाणासुर की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने कहा था कि उनके दिए गए वरदान के अनुसार ज्वालेश्वर महादेव बाणलिंग कहलाया। मान्यता के अनुसार जालेश्वर धाम में स्नान त्रयस्थ श्राद्ध आदि कर्म करने से मनुष्य जन्म मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है। ज्वालेश्वर धाम शिवलिंग के नीचे से ही जोहिला नदी का उद्गम हुआ है। शिवलिंग के नीचे से पानी रहस्यमय तरीके से बहता है और कुएं में जाता है नदी का उद्गम कुएं से माना जाता है बाद में कुछ दूरी से नदी बहती हुई दिखाई दी देता है। यह नदी जोहिला नदी अमरकंटक की तराई से उतर कर अनूपपुर जिले को सींचती हुई सोन में समा जाती हैं….
मान्यताओ के अनुसार भगवान शिव ने स्वयं इस मंदिर को स्थापित किया था. पुराणों में इस स्थान को महा रूद्र मेरु कहा गया है. यहीं से अमरकंटक की तीसरी नदी जोहिला की उत्पत्ति होती है. इसलिए ज्वालेश्वर महादेव मंदिर की बहुत अधिक मान्यता है.
यहां स्थापित बाणलिंग की कथा का जिक्र स्कंद पुराण में है. इस बाणलिंग पर दूध व शीतल जल अर्पित करने से सभी पाप, दोष और दुखों का नाश हो जाता है.
पौराणिक कथा के अनुसार बली का पुत्र बाणासुर अत्यंत बलशाली और शिव भक्त था. बाणासुर ने भगवान शिव की तपस्या कर वर मांगा कि उसका नगर दिव्य और अजेय हो. भगवान शिव को छोड़कर कोई और इस नगर में ना आ सके. इसी तरह बाणासुर ने ब्रह्मा और विष्णु भगवान से भी वर प्राप्त किए. तीन पुर का स्वामी होने से वह त्रिपुर कहलाया,लेकिन बताया जाता है कि शक्ति के घमंड में बाणासुर उत्पात मचाने लगा. इसलिए भगवान शिव ने पिनाक नामक धनुष और अघोर नाम के बाण से बाणासुर पर प्रहार किया. इस पर बाणासुर अपने पूज्य शिवलिंग को सिर पर धारण कर महादेव की स्तुति करने लगा. उसकी स्तुति से शिव प्रसन्न हुए. बाण से त्रिपुर के तीन खंड हुए और नर्मदा के जल में गिर गए और वहां से ज्वालेश्वर नाम का तीर्थ प्रकट हुआ. भगवान शिव के छोड़े बाण से बचा हुआ ही यह शिवलिंग बाणलिंग कहलाया….सावन मास के सावन सोमवार में जलेश्वर महादेव में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है…..
