महामना के सपनों को मिली पँख

महामना के सपनों को साकार करने दिशा में सरकार ने एक निर्णायक कदम बढ़ाया है,सनातन धर्म और संस्कृति को सहेजने की दिशा में यह निर्णायक कदम हिंदू धर्म को मजबूती प्रदान करेगा
अब बीएचयू के भारत अध्ययन केंद्र में हिंदू स्टडीज के नाम से पूर्णत: हिंदू धर्म व संस्कृति पर ही आधारित कोर्स की विधिवत शुरूआत की जा रही है। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय एक बार फिर राष्ट्र निर्माण में अपनी सार्थकता सिद्ध करने की दिशा उठ खड़ा हुआ है। आधुनिकता के साथ सनातन प्राचीन परंपरा की थाती संजोए बीएचयू में छात्र अब वेद, पुराण, ब्राह्मण और श्रमण परंपरा के साथ रामायण, महाभारत, दर्शन, ज्ञान मीमांसा सहित हिंदू धर्म के वैशिष्ट्य और परंपरा पर आधारित पाठ्यक्रमों में पढ़ाई कर सकेंगे।
बीएचयू, जेएनयू, आइआइटी-कानपुर समेत देश भर के विद्वानों ने बैठक कर फैसला लिया है कि भारत में पहली बार बीएचयू में हिंदू अध्ययन की शिक्षा दी जाएगी। हिंदू स्टडीज नामक नए कोर्स को 2021-22 के इसी सत्र से शुरू करने का निर्णय लिया गया है। इसके तहत दो वर्षीय एम ए का कोर्स होगा, जो कि इसी सत्र 2021-22 से शुरू हो जाएगा।
भारत में यह पहला मौका है जब इस कोर्स के तहत देश में सनातन परंपरा, ज्ञान मीमांसा सहित तत्व विज्ञान लेकर सैन्य विज्ञान जैसे प्राचीन हिंदू शास्त्रों को एकेडमिक स्वरूप प्रदान किया गया है। इस कोर्स के अंतर्गत हिंदू धर्म के वैशिष्ट्य और परंपरा पर आधारित पाठ्यक्रम की रचना की गई है, जिसमें मुख्य रूप से तत्त्व, प्रमाण विमर्श, वाद परंपरा और शास्त्रों के अर्थ निर्धारण की पद्धति, पाश्चात्य ज्ञान मीमांसा, रामायण, महाभारत, स्थापत्य, लोकवार्ता, लोक-नाट्य कला, भाषा विज्ञान और प्राचीन सैन्य विज्ञान को विषय रूप में शामिल किया गया है।
आप देश के इतिहास की किताबों के पन्ने खगालेगे तो पायेंगे उनकी भाषा शैली में भारत को नीचा दिखाने की भरपूर कोशिश की है ,बात धर्म की हो तो सनातन धर्म को हमेशा से नीचा और भेदभाव की प्रवित्तियों में बांधने की हर संभव कोशिश की है मुस्लिम आक्रांताओ का महिमामंडन करने से कोई गुरेज नहीं रहा है ,अग्रेजी हुकूमत को देश का उत्थान के रूप में दर्शाने से भी पीछे नहीं हटे है
प्रोफ़ेसर राकेश उपाध्याय का कहना है , “ऐसे ज़्यादातर वामपंथी विचारधारा के लोग हैं जिनका एकमात्र उद्देश्य हिन्दू धर्म और सनातन परंपरा से द्रोह के कारण अपने नैरेटिव के लिए हर जगह अनावश्यक डिबेट खड़ा करके उसे ख़ारिज करना है न कि उसे समझाना और उस पर वास्तविक विमर्श करना।”
उन्होंने कुछ इतिहासकारों की तरफ इशारा करते हुए कहा, “ये जो रोमिला थापर, हरबंश मुखिया आदि वामपंथी प्राचीन इतिहास के विशेषज्ञ बने हुए हिन्दू धर्म पर व्याख्यान देते फिर रहे हैं। इन्हें खुद मूल ग्रंथों का ज्ञान नहीं है। जो परंपरा से ऋग्वेद पढ़ रहे हैं उन्हें उसमें गाय काटने का वर्णन नहीं मिलेगा लेकिन जिन्हें हिन्दू धर्म को सिर्फ बदनाम करना है वह ऐसा कोई भी क्षेपक-प्रक्षेपक के सहारे जो भारत का है, जो इस राष्ट्र का गौरवशाली तत्व है उसे विकृत और दुष्प्रचारित करने में लगे हैं।”
साथ ही उन्होंने यह जोड़ा कि इस सम्पूर्ण अध्ययन का उद्देश्य किसी के साथ विवाद करना नहीं बल्कि आगे आने वाले दिनों में सनातन और हिन्दू धर्म को केंद्र में रखकर प्राचीन शास्त्रों से लेकर, योग, ज्ञान, सैन्य और शास्त्र परम्पराओं का समावेशन करते हुए अपनी विशिष्टताओं को उभारना है। इस पर शोध और लेखन को बढ़ाना है ताकि आगे आने वाली पीढ़ी अपनी विशिष्टतता को जानकर गौरवान्वित हो न कि वामपंथी दुराग्रह के कारण खुद को हीन समझे। हमारे मूल शास्त्रों ग्रंथों में बहुत कुछ ऐसा विशिष्ट है जिससे आज भी वह सनातन परंपरा इतना कुछ झेलते हुए भी अक्षुण्य है।
प्रोफ़ेसर राकेश उपाध्याय ने बताया कि बुद्ध और जैन साहित्य पर भी चर्चा करते हुए उन्होंने इस बात पर विशेष जोर दिया कि बाद में जो भी धर्म, मत या विचारधारा निकले उनका भी मूल सनातन ही है। उन्होंने यह भी कहा कि इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए ब्राह्मण से लेकर श्रमण परम्पराओं का अध्ययन भी इस अध्ययन का प्रमुख हिस्सा है। कैसे इस प्राचीन भूमि पर सनातन से ही बाकी परम्पराएँ किस तरह से निकली, कहाँ तक यात्रा की, उनके मूल में क्या था, उनके ज्ञान मीमांसा का स्रोत क्या रहा है इन सबको लेकर न सिर्फ शास्त्रीय बल्कि व्यावहारिक और प्रयोगात्मक दृष्टि से भी अध्ययन पर जोर दिया जाएगा।
प्रोफ़ेसर राकेश उपाध्याय ने बताया कि कोर्स को इस तरह से डिज़ाइन किया गया है ताकि इसकी लोकप्रियता के साथ आगे चलकर इसमें नेट-जेआरएफ के साथ शोध को भी बढ़ावा मिले और आने वाली पीढ़ियाँ अपने वैशिष्ट्य को उसके मूल रूम में जान और समझ सकें न कि उसके विकृत स्वरुप को ही सत्य मानकर भ्रमित हों। ऐसा इस दिशा में तमाम विद्वानों का मत है।
