माघ पूर्णिमा पर्व 24 फरवरी 2024 सोन कुंड मेला पर विशेष

सोन नदी के उद्गम स्थल मानस तीर्थ सोनकुंड सोनमूंड़ा

गौरेला पेंड्रा मरवाही

नदी की यात्रा हमेशा अध्यात्म, रहस्य एवं रोमांच से भरी होती है। जब आप नदी के करीब होते हैं तब प्रकृति भी आपके स्वमेव करीब होती है। आज हम आपको पेंड्रा से निकलने वाली एक ऐसी नदी के उद्गम ले जा रहे हैं जो नदी नहीं नद है अर्थात पुरुषवाचक ।

हमारे गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले से अनेक नदियों का उद्गम हुआ है जिनमें से एक प्रमुख नदी है सोन। सोन नदी के तीन नाम है पहला शोणभद्र या सोनभद्र दूसरा सोन और तीसरा हिरण्यवाह। यह तीनों पुरुषवाचक नाम है। भारत के भूगोल में केवल तीन महानद है बाकी सभी नदियां हैं अर्थात स्त्री वाचक। हिमालय से निकलने वाला सिंधु और ब्रह्मपुत्र दो महानद है तथा तीसरा महानद सोन है जो पेंड्रा से निकलता है। तो अब आप जब भी सोन नदी के तट पर या उद्गम पर जाएं तो “जय हो सोनभद्र महाराज” कहे जय सोन माता ना कह बैठे!

पेंड्रा से लगभग 14 किलोमीटर दूर पेंड्रा रतनपुर मार्ग पर दक्षिण पूर्व दिशा में ग्राम सोनबचरवार पड़ता है ।इसी सोनबचरवार एवं आमाडांड़ ग्राम की सरहद पर मानस तीर्थ क्षेत्र सोनमुड़ा स्थित है। यह वह भूमि है जहां महर्षि च्यवन ने अपनी त्याग और तपस्या के बल से औषधि के ज्ञाता बने। यहां सोनमुड़ा में सोनकुंड नाम का एक पवित्र जल स्रोत है। इस सोनकुंड मानस क्षेत्र को ऋषभ पर्वत का मस्तक माना जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार अमरकंटक में सोनभद्र का उद्गम होने के बाद वहां सोन और नर्मदा जी का विवाह होने वाला था जहां जोहिला प्रसंग आने के कारण सोन और नर्मदा का विवाह टूट गया और मां नर्मदा क्रोधवश अमरकंटक से पश्चिम गामी हो गई वही सोनभद्र मां नर्मदा के गुस्से से घबराकर पहाड़ी के नीचे कूद पड़े और विलुप्त हो गए तथा जमीन के अंदर ही अंदर गुप्त रूप से यहां सोनमुड़ा में प्रगट हुए इस कारण से पेंड्रा के सोनमुड़ा स्थित सोनकुंड को ही सोन नदी का उद्गम स्थल माना जाता है।

सोन नदी का उद्गम स्थल सोनकुंड सोनमुड़ा प्रकृति प्रेमियों एवं अध्यात्मिक प्रेम रखने वाले लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र है। इस मानस तीर्थ क्षेत्र सोनकुंड के चारों ओर अनेक प्राचीन मंदिर बने हुए हैं जिसमें भगवान सोनेश्वर नाथ जी महादेव जी का मंदिर, सोनभद्र महाराज तथा माता नर्मदा जी का मंदिर, श्री हनुमान जी का मंदिर, भगवान भोलेनाथ का मंदिर, श्री राधा कृष्ण जी का मंदिर, भगवान दसग्रीव जी महाराज का मंदिर, भगवान शनिदेव जी का मंदिर, मां काली जी का मंदिर सहित अन्य मंदिर स्थित है जहां का आध्यात्मिक वातावरण महसूस करने योग्य है। सोनकुंड परिसर में ही मां नर्मदा का छोटा सा कुंड है। इसके अलावा यहां सप्त ऋषि कुंड है।यहां पहुंच कर श्रद्धालु सोन कुंड में स्नान के बाद यहां जप तप का आनंद लेते हैं। कुंड के सामने मानस तीर्थ क्षेत्र सोन कुंड आश्रम स्थित है इस आश्रम की स्थापना ब्रह्मलीन स्वामी सहजप्रकाशानंद जी महाराज नामक सिद्ध सन्यासी ने सैकड़ों वर्ष पूर्व की थी तथा इस सोनकुंड आश्रम के माध्यम से इस विशाल आदिवासी अंचल में सनातन धर्म का प्रचार प्रसार किया। उन्होंने वर्ष 1961 में समाधि ली तथा उनके बाद उनके शिष्य ब्रह्मलीन स्वामी सदानंद महाराज जी द्वारा आश्रम को और ज्यादा विस्तार प्रदान किया गया। सोन कुंड आश्रम सिद्धाश्रम बेलगहना से संबद्ध है। स्वामी सदानंद जी महाराज के ब्रह्मलीन होने के बाद ब्रह्मलीन स्वामी कृष्णानंद जी महाराज आश्रम की देखरेख में रहे।उनके बाद स्वामी चिदानंद जी महाराज और उनके बुजुर्ग होने के बाद अब युवा साधु महिपालानंद जी महाराज मानस तीर्थ क्षेत्र सोनकुंड आश्रम की सेवा में हैं।

वैसे तो मानस तीर्थ सोनकुंड में वर्ष भर श्रद्धालुओं का आना जाना लगा रहता है परंतु यहां आषाढ़ पूर्णिमा अर्थात गुरु पूर्णिमा तथा माघ पूर्णिमा को प्रतिवर्ष परंपरागत रूप से मेला भरता है जहां पेंड्रा तथा आसपास के ग्रामीण अंचलों में रहने वाले लोग शामिल होते हैं। खासकर बिहार मिर्जापुर क्षेत्र के भी श्रद्धालु सोनकुंड में मुंडन संस्कार एवं स्नान के लिए आते हैं। दरअसल पेंड्रा के सोनमुड़ा से निकले सोन का स्वरूप भले ही यहां शिशु रूप में शांत और अबोध है परंतु बिहार प्रांत में इसके विकराल स्वरूप और बरसात की भीषण त्रासदी को कौन नहीं जानता?
सोन नद पेंड्रा के सोनमुड़ा से निकलकर उत्तर दिशा की ओर लगभग 784 किलोमीटर बहकर बिहार के पटना से 20 किलोमीटर पश्चिम में गंगा नदी में मिल जाता है। वहां सोन नदी का विशाल पाट देखने को मिलता है। गंगा एवं सोन नदी का संगम का विशेष महत्व है तथा वहां सोनपुर में प्रतिवर्ष एशिया का सबसे बड़ा मेला सोनपुर का मेला भरता है जो 2 माह से भी अधिक समय तक चलता है। बताते हैं कि उस मेले में दुनिया की हर सामग्री विक्रय के लिए उपलब्ध होती है।

पेंड्रा के सोनमुड़ा निकलने वाला सोन नद गंगा नदी की एकमात्र ऐसी सहायक नदी है जो हिमालय से नहीं निकलती अर्थात हिमवाही नहीं है। वैसे तो पेंड्रा क्षेत्र से सोन,अरपा, तान, तिपान, बम्हनी, जोहिला, मलनिया, एलान सहित एक दर्जन से ज्यादा नदियों एवं नालों का उद्गम हुआ है परंतु इनमें से अधिकांश महानदी बेसिन की सहायक हैं परंतु सोन एकमात्र ऐसा नद है जो गंगा बेसिन का सहायक है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जिस तरह नर्मदा में पाया जाने वाला पत्थर शिव के रूप में पूजित होता है उसी तरह सोन नदी में पाया जाने वाला पत्थर भगवान गणेश के रूप में पूजा जाता है।

ब्रह्मलीन स्वामी सदानंद जी महाराज कथा सुनाया करते थे कि मानस तीर्थ सोनमुड़ा मानसी च्यवन की तपोभूमि है। हजारों वर्ष पूर्व महर्षि च्यवन ने यहां तपस्या की थी। एक बार वे तपस्या में लीन थे और उनके ऊपर दीमक वाली मिट्टी का आच्छादन हो गया । सिर्फ उनकी आंखों से तेज निकलता दिखाई दे रहा था तभी गणेशपुरी अर्थात वर्तमान का कारीआम के राजा सर्जाती की पुत्री सुकन्या दीमक के ढेर से निकलते आंखों के तेज को समझ नहीं पाई और कौतूहल वह उसमें कांटा चुभा दिए जिससे महर्षि च्यवन की आंखों से तेज रक्त बह निकला । इस घटना से घबराकर राजकुमारी सुकन्या और उसकी सहेलियां गणेशपुरी वापस आ गई। महर्षि च्यवन को कष्ट पहुंचाया जाने का परिणाम यह हुआ कि राज्य में अशांति एवं तहस-नहस होने लगी। राजा सर्जाती को इस वास्तविकता की जानकारी मिलने पर उन्होंने महर्षि च्यवन से जाकर क्षमा प्रार्थना करते हुए उनकी सेवा में अपनी पुत्री सुकन्या को अर्पित कर दिया। महर्षि च्यवन के आंखों की रोशनी जा चुकी थी तब देवताओं के वैद्य अश्वनी कुमार जी ने देवताओं के पंगत पर बैठकर भोजन करने का अधिकार नहीं था ने अपनी वैद्यविद्या से महर्षि च्यवन की आंखों की रोशनी वापस करने इस शर्त पर तैयार हुए कि उन्हें देवताओं की पंगत पर भोजन कराया जाएगा। कहते हैं कि अश्वनी कुमार ने इसी सोन कुंड में जड़ी बूटियों का घोल बनाकर महर्षि च्यवन को डुबकी लगवाया जिसके बाद महर्षि च्यवन की आंखों की रोशनी वापस आ गई। तब वैद्य अश्वनी कुमार की शर्त के अनुसार सोनमुड़ा में ही देवता एवं सप्त ऋषियों के साथ वैद्य अश्विनी कुमार को पंगत में एक साथ बैठा कर भोजन कराया गया तब से यह स्थान पुराणों में और अधिक मान्यता प्राप्त है। मान्यता है कि सोन कुंड के जल में अभी भी वह विलक्षण शक्ति मौजूद है जिससे नेत्र के रोगों से मुक्ति मिलती है।

इस तरह पेंड्रा सोनमुड़ा स्थित सोन नदी का उद्गम स्थल सोन कुंड आध्यात्मिक रुचि रखने वाले लोगों के आकर्षण का केंद्र है। 24 फरवरी 2024 माघ पूर्णिमा पर्व पर यहां विशाल मेला का आयोजन हो रहा है जो 23 फरवरी से 27 फरवरी तक चलेगा।

साभार…

अक्षय नामदेव पेंड्रा छत्तीसगढ़ मोबाइल 94062 13643

Akhilesh Namdeo

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *