माया के बाद दलितों का अगला मसीहा कौन

राजनीति में जब भी दलित चेहरे का नाम याद किया जाता मायावती का नाम सबसे ऊपर होता है। बीते कुछ सालों में मायावती के रसूख में कमी जरूर आई है। लेकिन आज भी दलित वोट बैंक में एक बड़ी सेंधमारी की भूमिका निभाने में मायावती सबसे आगे है।
आज मायावती का 65वा जन्मदिन है ,ऐसे में लोगो के मन में एक सवाल पनपता है आखिर मायावती का अगला वारिश कौन होगा लाज्मी भी है वजह अभी तक माया ने अपने वारिश का ऐलान खुले मंच से कभी नहीं किया। लोगों के बीच कानाफूसी आपसी गुफ्तगू होती रहती आखिर माया की सियासत का अगला वारिश कौन होगा
इस फेहरिस्त में एक समय आजमगढ़ के रहने वाले राजाराम का नाम प्रमुख तौर पर लिया जा रहा था. माना गया कि वही आगे चलकर मायावती की गद्दी संभालेंगे, लेकिन धीरे-धीरे अब मायावती के राजनीतिक वारिस के तौर पर एक के बाद एक नाम जुड़ रहे हैं. मायावती के भाई आनंद कुमार से लेकर भतीजे आकाश के नाम लिए जा रहे है। इतना ही नहीं पार्टी के कई और भी दलित नेता हैं, जिन्हें मायावती के उत्तराधिकारी के तौर पर देखा जा रहा है
आइये जानते है, मायावती का सियासी सफर
1984 सांसद पहली बार
बिजनौर लोकसभा से पहली बार सांसद चुनी गयी
मुलायम के साथ गठजोड़
1993 वह साल था जब पहली बार बसपा ने सत्ता में भागीदारी की। मुलायम सिंह भले ही मुख्यमंत्री बने लेकिन सत्ता की चाभी बसपा के ही हाथ में रही ,लेकिन ये सियासी रिस्ता बहुत लम्बा नहीं चला और 1995 में मुलायम सिंह यादव से समर्थन वापिस लेकर 3 जून को भाजपा के सहयोग से पहली बार यूपी की मुख्यमंत्री बनी। हालांकि यह भी दौर ज्यादा दिन तक नहीं चला। अक्टूबर में ही भाजपा के समर्थन वापस लेने के बाद प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लग गया।
देश की पहली दलित सीएम
1995 में मायावती पहली बार यूपी की मुख्यमंत्री बनी। इसी के साथ उनके नाम दो रिकॉर्ड दर्ज हुए। एक तो प्रदेश की सबसे युवा सीएम का और दूसरा देश की पहली दलित मुख्यमंत्री का।
बीजेपी के समर्थन से बनी सीएम
वैसे तो मायावती हरदम ही बीजेपी की राजनीति के खिलाफ रही,लेकिन 1997 और 2002 में मुख्यमंत्री बनने के लिए उन्होंने बीजेपी का समर्थन लेने से गुरेज नहीं किया ,जिसके चलते वह आलोचकों के निशाने पर रहती है।
सत्ता पाने के लिए माया ने दलितों और सुवर्णो को बांटा
मायावती को दलितों का मसीहा बनना था सबसे पहले सुवर्णो और दलितों को अलग किया हर मंच से खुद को दलित मसीहा बता दलित वोट बैंक को अपने पाले में कैद करने की भरपूर कोशिश की।
ब्राह्मणों को लुभाने की भरपूर कोशिश
माया को पता चल गया था सुवर्ण वोटो में बिना सेंधमारी के उप की राजनतिक सियासत का ताज नहीं पहना जा सकता माया ने ब्राह्मणों को लुभाने की कोशिश की काफी हद तक सफल भी रही उसी का परिणाम हुआ 2007 में मायावती ने उप विधानसभा का चुनाव जीत गई।
एक फेमस नारा निकला “सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय” और “हठी नहीं गणेश है, ब्रह्मा वष्णु महेश है” का नारा दिया।
यूपी ही नहीं कई राज्यों में दलितों की ताकत बानी बसपा
कांशीराम और मायावती की जोड़ी ने यूपी समेत कई राज्यों में दलितों को उनकी ताकत का एहसास कराते कराते खुद भी ताकतवर होते चले गए। दलितों का जुड़ाव बसपा से इस कदर हुआ कि
वे पार्टी के लिये मरने तक तैयार होने लगे और पूरी ताकत से लोकतांत्रिक पर्व में प्रतिभाग करने लगे।
बुआ बबुआ कभी साथ कभी अलग
लोकसभा चुनाव 2019 में बुआ और बबुआ एक साथ चुनाव मैदान में उतरे साईकिल की सवारी से हाथी को तो लाभ हुआ लेकिन बबुआ की साईकिल तो पूरी तरह पंचर हो गई.
