मिली इंसानियत की सजा, उतार दिया मौत के घाट

मिली इंसानियत की सजा, उतार दिया मौत के घाट

मंगोलपुरी की घटना पर लोगों की चुप्पी से बहुत हैरानी हो रहीं है. अन्याय के खिलाफ आवाज देश में धर्म देख के आवाज़ उठाई जाती है. हां, बिल्कुल सही पढ़ रहे हैं. जब देश में कोई अप्रिय घटना होतीं है, तो देश के तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग, वामपंथी और सेकुलरवाद की चादर लपेटे देश में रहने वाला एक वर्ग ऐसा है, जो न्याय की मांग अन्याय के खिलाफ आवाज धर्म देख के उठाता है. संविधान में लिखें क़ानूनी हथकंडे की मांग समुदाय विशेष के लिये करता है. क्या ये उचित है? नहीं, बिल्कुल भी नहीं. कमी कहाँ है? सहीं मायने में कमी, हम सब में है. साहब हम हैं तो अभी बहुसंख्यक, लेकिन डरते हैं किसी अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाने के लिये, हम डरते हैं न्याय की गुहार लगाने के लिये. लोगों की नजरों में हम आना नही चाहते है, पूरी कहानी एक लाइन में समझिये हम डरपोक हैं और यही डर हमारे आने वाली नस्लों के लिये जी का जंजाल बनने वाला है. वक्त है निद्रा से जगने का, वरना आने वाली नस्लों की कब्र हम खुद खोद के जाएंगे.

मंगोलपुरी की मानवता को शर्मसार करने वाली घटना से मन बहुत आहत हुआ. देश में घटित हुआ अन्य मॉब लिंचिंग के खिलाफ जहां लोग आवाज उठाते थे, ऐसे ही आज भी लोगों को आवाज उठानी चाहिये, लेकिन अफ़सोस वहा बस लोग सोशल मीडिया पर पुलिस की तरफ से जारी कॉपी सोशल मीडिया पर लोग शेयर कर रहे है. सत्यता से परे अमुक दर्शक की भाति लोग मुखबाधिर बनें हुये है. सत्य क्या है, किसी को क्या फर्क पड़ता आप लोग गौर किये होंगे अगर बात धर्म विशेष से जुड़ीं हो तो सोशल मीडिया पर लोग अब तक आंधी तूफान ज्वार भाटा तक ला दे. ध्यान देने वाली बात हम न्याय की मांग इंसानियत के लिये करतें है. हम गलत के खिलाफ आवाज हर धर्म और मजहब के लिये उठाते है, शायद यही हमारी सबसे बड़ी कमी है.

एक सवाल खड़ा होता, आखिर मंगोलपुरी के रिंकू शर्मा की बेरहम हत्या पर सबके मुँह में दही क्यों जमा हुआ है? क्या हम अपनी मानवता को चुल्लूभर पानी में घोल के पी चुकें है. क्या सच में हम इतने संवेदनहीन हो गये हैं कि जिन बातों का विरोध करते रहे उन्हें स्वयं में समा हित कर लिया? एक निर्मम हत्या पर चुप्पी की वजह इसलिए क्योंकि वह 25 वर्षीय बालक भगवान राम का भक्त था और बजरंग दल का सक्रिय कार्यकर्ता था? क्या राम भक्त होना और किसी संगठन का कार्यकर्ता होना अपराध है? फिर ये चुप्पी कैसी? सोशल मीडिया का सेलेक्टिव आउटरेज समझ नहीं आता.

आप सभी को लग रहा है, शायद मंगोलपुरी घटना का मामला हिंदू-मुसलमान का है इसलिए मुँह में च्युइंग गम भर के इस घटना को खुद के भीतर चबाने का प्रयास कर रहे है, तो निद्रा से उठे और ज़रा ग़ौर करें. मंगोलपुरी की घटना में साम्प्रदायिकता और कट्टरता तो बिलकुल थी ही नहीं. रिंकु शर्मा के मौत के दोषी इस्लाम और मेहताब है, इन्हीं दोनों ने मिलकर उसे मार डाला, गौर करने वाली बात आरोपी इस्लाम की बीवी को रिंकू ने तीन वर्ष पहले ख़ून दिया था. रक्तदान को महादान मानते हैं न आप? उसका भाई जब कोरोना काल में कोविड का शिकार हुआ था तो उसे रिंकू अस्पताल ले गया और इलाज में मदद की. कोरोना महामारी के समय लॉकडाउन में अस्पतालों की दशा और कोविड का ख़ौफ़ याद कर लें तो समझ आयेगा कि यह कितनी बड़ी बात थी. जब लोग किसी के खाँसने से दूर भाग जाते थे और जुकाम सुनकर मिलने नहीं जाते थे तब वह लड़का रिंकू आरोपी के परिवार के साथ रहा.

सवाल ये खड़ा होता है, अगर झगड़ा पार्टी में हुआ हो या पार्क में हुआ, क्या उस छोटी सी घटना को इतना तूल दिया जाना जरुरी था कि रात के साढ़े दस बजे गुंडों के साथ घर पर धावा बोल दिया जाए? सोचिये उन जिहादियों के अंदर कितना ग़ुस्सा और कितनी नफ़रत भरी थी जो लाठी से पीटने पर भी नहीं ख़त्म हुई और अंत में रिंकू के पीठ पर चाकू घोंप दिया गया, जो उसकी रीढ़ की हड्डी में फँसा रह गया. आज समझ में आया पीठ पर चाकू घोंपना इसे ही कहते हैं.

अगर आप रिंकू के रामभक्त होने से इस मामले पर मौन मुद्रा में हैं तो शर्म की बात है, आप को अपने गिरेबान में झाँकने की ज़रूरत है.अगर आप रिंकू के बजरंग दल का कार्यकर्ता होने की वजह से उसकी हत्या का विरोध नहीं कर पा रहे हैं और मौन हैं तो सोचिएगा कि रिंकू की रीढ़ पर वार हुआ है, आपकी रीढ़ को क्या हुआ.

लिखने और कहने को तो बहुत कुछ है, लेकिन इतना ही कहूंगा कभी भी मतभेद को मनभेद नहीं बनाना चाहिए,जीवन की नैतिकता के हिसाब से मनुष्यता सर्वोपरि है, विरोध विचारों का करिये हो व्यक्ति का नहीं. अब आज से सभी के लिये समान न्याय जैसी बातें अब कूड़ेदान में डाल दें. सूट नहीं करता आपके टेंपरामेंट (स्वभाव) को.

Akhilesh Namdeo