नस्लीय भेदभाव कुछ और नहीं बल्कि मानसिक बीमारी 

  नस्लीय भेदभाव कुछ और नहीं बल्कि मानसिक बीमारी 

नस्लीय भेदभाव आज 21 वी शदी में भी अपने चरम पर है. सभ्यता का सीधा सीधा अर्थ होता है, समाज में योग्यता यानि शिक्षा का प्रादुर्भाव होना. लाज़मी है, जहाँ शिक्षा है वहाँ के समाज में लोग सभ्य ही होंगे ये आकड़े किताबी है. घिसी पीटी बातें है सही मायने में आप देखेंगे तो सभ्यता का शिक्षा से कोई लेना देना नहीं है. सभ्यता के विकास क्रम में समाज में कुछ स्वार्थी तत्त्वों की वजह से नस्ल, क्षेत्र, सामुदायिक पहचान आदि को लेकर अवांछित पूर्वाग्रहों के जन्म लेने और पलने-बढ़ने के बाद कालांतर में मनुष्य ने इनसे पार पाने की भी कोशिश की है. माना जाता है कि विकसित देशों में समाज और सत्ताओं ने इस तरह की धारणाओं को दूर करने के मसले पर काफी काम किया और काफी हद तक इसमें कामयाबी मिली है.
लेकिन आज भी जब ऐसे पूर्वाग्रहों के साथ कुछ लोग दिख जाते हैं तो यह हैरानी और अफसोस की बात है.

रविवार को सिडनी में आस्ट्रेलिया और भारत के बीच क्रिकेट टेस्ट मैच में जिस तरह के हालात पैदा हुए, वह यह बताने के लिए काफी है कि विकसित कहे जाने वाले देशों में भी कुछ लोग नस्लवादी दुराग्रहों से मुक्त नहीं हो सके हैं

अगर कोई भी व्यक्ति इस तरह की दुर्भावनाओं के साथ जीता है और उसे कुछ लोगों के बीच भी किसी स्तर की स्वीकार्यता प्राप्त है तो यह उस समूचे समाज के लिए शर्मिंदगी की बात है. गौरतलब है कि सिडनी टेस्ट में दूसरे और तीसरे दिन के खेल के दौरान नशे में धुत कुछ दर्शकों ने फील्डिंग करते जसप्रीत बुमराह और मोहम्मद सिराज पर नस्लीय टिप्पणियां कीं और लगातार गालियां भी दीं. यह दूसरे देश की धरती पर जाकर खेलने वाले किसी भी खिलाड़ी या व्यक्ति के लिए बेहद अपमानजनक और दुखद है.

स्वाभाविक ही दोनों खिलाड़ियों ने प्रबंधन को इस बात की जानकारी दी और ऐसी टिप्पणियां करने वाले लोगों को स्टेडियम से बाहर निकाल दिया गया. लेकिन जब मामले ने तूल पकड़ा तब क्रिकेट आस्ट्रेलिया ने इन घटनाओं पर अपना आधिकारिक रुख स्पष्ट किया कि हर तरह के भेदभाव को लेकर हमारी नीति साफ है; अगर आप नस्लवादी गालियां देते हैं तो आस्ट्रेलियाई क्रिकेट में आपकी कोई जरूरत नहीं है. क्रिकेट आस्ट्रेलिया ने एक कदम और आगे बढ़ कर मेजबान होने के नाते भारतीय क्रिकेट टीम से माफी मांगी. आस्ट्रेलियाई क्रिकेट की ओर से ऐसी सख्त प्रतिक्रिया इसलिए राहत की बात है कि वहां ऐसी नकारात्मक प्रवृत्तियों को सांस्थानिक स्तर पर कोई समर्थन प्राप्त नहीं है. मगर सामाजिक स्तर पर यह न केवल आस्ट्रेलिया के लिए, बल्कि समूची दुनिया के लिए अफसोस और चिंता की बात है.

यों दुनिया के अलग-अलग देशों में आज भी नस्ल, क्षेत्र और समुदाय या जाति-समूहों को लेकर दुराग्रह या पूर्वाग्रहों से ग्रस्त धारणाएं पूरी तरह खत्म नहीं हुई हैं. खेल की दुनिया में भी गाहे-बगाहे ऐसे व्यवहार सामने आते रहे हैं, लेकिन अच्छा यह है कि इस पर औपचारिक रूप से उचित प्रतिक्रिया सामने आई और जरूरी कार्रवाई हुई है.
करीब चार महीने पहले आस्ट्रेलिया के ही एक खिलाड़ी डेन क्रिश्चन ने कहा था कि उन्होंने अपने पूरे कॅरियर में नस्लवाद सहा है और अब उनके साथ खेलने वाले खिलाड़ी उनसे माफी मांगते हैं.

दरअसल, नस्ल, जाति, समुदाय आदि को लेकर जिस तरह के पूर्वाग्रह देखे जाते हैं, वे व्यक्ति के सामाजिक प्रशिक्षण का हिस्सा रहे होते हैं और पैदा होने के बाद उनके भीतर जाने-अनजाने बैठा दिए जाते हैं. अफसोस यह है कि आलोचनात्मक विवेक के साथ इन मसलों पर विचार करने की कोशिश नहीं की जाती है. नतीजतन, कोई व्यक्ति कई बार निजी या फिर सार्वजनिक रूप से भी किसी अन्य नस्ल, जाति या समूह के लोगों को कमतर करने वाली या नफरत से भरी टिप्पणियां करके आहत करने की कोशिश करता है. जबकि समझने की बात यह है कि ऐसे पूर्वाग्रह या कुंठा पालने वाला कोई भी व्यक्ति सभ्य होने की कसौटी पर बहुत पिछड़ा होता है. इंसानों के भीतर इंसान के लिए समानता की संवेदना ही सभ्य होने की कसौटी है.

Akhilesh Namdeo