विश्व आदिवासी दिवस पर एक शिक्षक की पाती, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री माननीय विष्णु देव साय जी के नाम

गौरेला पेंड्रा मरवाही

विश्व आदिवासी दिवस पर शिक्षक अक्षय  नामदेव ने मुख्यमंत्री विष्णु देव साय को लिखा पत्र

माननीय मुख्यमंत्री जी सादर अभिवादन,

विश्व आदिवासी दिवस पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।आज 9 अगस्त विश्व आदिवासी दिवस पर मुझे याद आ रहा है कि जब दो वर्ष पूर्व 4 जुलाई 2022 को छत्तीसगढ़ के तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जी पेंड्रा के कोटमीकला में भेंट मुलाकात कार्यक्रम में लोगों से मिल रहे थे तो एक आदिवासी छात्रा शिखा पेंद्रो ने मुख्यमंत्री जी से मांग रखी कि जिस तरह से कक्षा पहली से कक्षा दसवीं तक की छात्राओं को निशुल्क पाठ्य पुस्तक उपलब्ध कराई जाती है उसी तरह कक्षा एवं 11वीं एवं 12वीं पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं को भी निशुल्क पाठ्य पुस्तकें उपलब्ध कराई जाए।

इसी तरह एक अन्य आदिवासी छात्रा ने कोटमी सकोला में महाविद्यालय खोलने की मांग रखी थी। एक अन्य छात्रा की मांग थी कि उनके लिए वहां पोस्ट मैट्रिक आदिवासी कन्या छात्रावास खोल दिया जाए।चुंकि यह सभी मांगे आदिवासी छात्राओं की ओर से तत्कालीन मुख्यमंत्री जी के सामने रखी गई थी इसलिए मुझे पूरी उम्मीद थी कि शासन-प्रशासन आदिवासी छात्र छात्राओं के हित में जरूर निर्णय लेगा परंतु दुर्भाग्य से ऐसा हो ना सका जबकि हर सरकार मानती है कि आदिवासियों को शिक्षा के माध्यम से ही आगे बढ़ाया जा सकता है। इन बच्चों को लेकर मैं भी उस कार्यक्रम में था ।मेरा भी मन था कि मुझसे पूछा जाए कि आप क्या कहना चाहते हैं अगर मुझसे मुख्यमंत्री जी पूछते तो मैं यही कहता कि इन बच्चों की मांग पूरी कर दी जाए और साथ में मैं यह भी कहता कि स्कूल कॉलेज में शिक्षा के लिए जाति प्रमाण पत्र जारी करने का अधिकार संस्था प्रमुख को दे दिया जाए क्योंकि वर्तमान में जाति प्रमाण पत्र प्राप्त करने की जो प्रणाली है वह अत्यंत कठिन है जिसके कारण आदिवासी समाज का एक बड़ा वर्ग जाति प्रमाण पत्र नहीं ले पा रहा है और सरकारी योजनाओं जैसे छात्रवृत्ति इत्यादि से वंचित हो रहा है।

यह सिर्फ बात नहीं है इसका परीक्षण कराया जा सकता है की पूरे राज्य में कितने आदिवासी छात्र-छात्राएं विद्यालयों में दर्ज हैं उनमें से कितने छात्र छात्राएं छात्रवृत्ति का सुविधा उठा रहे हैं हकीकत सामने आ जाएगी जबकि संस्था प्रमुख द्वारा जाति प्रमाण पत्र जारी करने के बाद सभी आदिवासी छात्र-छात्राओं को छात्रवृत्ति मिल सकेगी जो उनकी शिक्षा में सहायता करेगी। संस्था प्रमुख द्वारा जाति प्रमाण पत्र जारी करने में गलती की संभावना बहुत ही कम होगी।

कहना तो यह भी चाहता हूं कि छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अंचल में कक्षा9 से 12 तक के छात्र-छात्राओं के लिए भी मध्यान भोजन शुरू करवा दीजिए । इससे स्कूली शिक्षा में और बेहतरी आएगी ‌,साथ ही कक्षा एक से कक्षा बारहवीं तक के बच्चों को बरसात से बचने के लिए रेनकोट तथा ठंड के समय सर्दी से बचने के लिए स्वेटर एवं जूते मोजे प्रदान किए जाएं। हालांकि मेरी यह मांग अत्यंत पुरानी है जो अभी तक पूरी नहीं हुई है। देखते हैं आगे क्या होता है। मुझे आशा है आप इसका संज्ञान लेंगे।यह मेरा निवेदन हैं क्योंकि मैं सिर्फ निवेदन ही कर सकता हूं। संवैधानिक तौर पर मुझे निवेदन करने का अधिकार तो है ही।

छत्तीसगढ़ सरकार हो या मध्य प्रदेश सरकार या देश के अन्य राज्यों की सरकारें। इन सरकारों ने आदिवासियों की शिक्षा के लिए काफी कुछ किया है। अलग से आदिवासी विकास विभाग भी बना दिया है राज्य स्तर पर और केंद्र स्तर पर भी। आदिवासी विकास विभाग के माध्यम से केंद्र एवं राज्य सरकार योजना बनाकर आदिवासियों में शिक्षा के प्रचार प्रसार के लिए विशेष प्रयत्न कर रही है। इन विभागों में गड़बड़ियां ना हो इसलिए इस वर्ग विशेष के जनप्रतिनिधियों को भी पर्याप्त प्रतिनिधित्व दिया गया है परंतु अत्यंत हैरानी की बात है कि इसके बावजूद आदिवासियों के विकास में बाधाएं कम नहीं है।

आत्मचिंतन, विश्लेषण और पीछे मुड़कर देखे तो सुदूरआदिवासी अंचलों में रहने वाले आदिवासी समाज में विकास की किरणें अभी पहुंचना बाकी है। यह सही है कि आजादी के बाद सरकारों द्वारा आदिवासियों के विकास एवं उत्थान की अनेक योजनाएं बनाई गई। शैक्षणिक संस्थानों की उपलब्धता के माध्यम से आदिवासी समाज शिक्षा की धारा से जुड़ा है। अन्य विकास परियोजनाओं के माध्यम से आदिवासियों के उत्थान के लिए काम किया जा रहा है परंतु सुदूर आदिवासी अंचलों में अभी भी आदिवासी समाज उपेक्षित एवं कटा हुआ है उनके लिए आज भी रोटी कपड़ा और मकान दवाइयां यह सब उपलब्ध नहीं है। उत्तर एवं दक्षिण छत्तीसगढ़ तो दूर है बात करें गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले से सटा पसान मातिन क्षेत्र की तो यह इलाका आज भी शिक्षा स्वास्थ्य सड़क एवं अन्य बुनियादी सुविधाओं के मामले में चुनौतियो सामना कर रहा है । समय-समय पर सुनते रहे हैं कि इस इलाके को नए गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले में जोड़ दिया जाएगा ताकि वे विकास की धारा में जुड़ सके परंतु अभी तो यह दूर की कौड़ी ही लग रही है। छत्तीसगढ़ में आज भी ज्यादातर जनजाति समाज चुनौतियों के बीच समस्याओं से जूझते हुए अभावों में जीवन बिता रहे हैं।दरअसल सरकारी स्तर पर आदिवासियों के उत्थान के लिए शासन शिक्षा , नौकरी एवं विकास की योजनाएं तो बना रही है परंतु उसका लाभ सिर्फ जागरूक आदिवासी परिवार ही उठा पा रहे हैं बाकी आदिवासी समाज अभी भी वंचितों की श्रेणी में है। आदिवासियों को शोषण से बचाने के लिए अनेक प्रावधान भी बनाए गए हैं तथा उसके क्रियान्वयन की जवाबदारी भी उन्हीं के वर्ग के अधिकारियों एवं जनप्रतिनिधियों को दी गई है इसके बावजूद भी उन्हें इसका लाभ ठीक ढंग से नहीं मिल पाना चिंता का विषय है।समाज में जो लोग आगे बढ़ गए हैं उन्हें पीछे मुड़कर देखना होगा की उनके परिवार एवं समाज की क्या स्थिति है? पीछे रह गए लोगों को आगे किस तरह लाया जाए इसके लिए उन्हें स्वयं आगे होकर उन्हें भी विकास की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए आगे आना होगा।आदिवासी अंचल में रहने और आदिवासी विभाग में लंबे समय से कार्यरत रहने के कारण मेरा ज्यादातर समय इसी समाज के बीच में गुजरा है। एक नहीं अनेक उदाहरण है जिसमें मैंने पाया है कि एक ही परिवार में शिक्षा और विकास के मामले में असमानता है संभवत जो लोग आगे बढ़ गए उन्होंने अपने पीछे रह गए अपने समाज के गरीब लोगोंको आगे लाने के लिए प्रयत्न नहीं किया।पेंड्रा के विद्यानगर इलाके में जहां मेरा घर है उसके सामने ही बहुत पुराना आदिवासी छात्रावास पंडित मोतीलाल नेहरू आदिवासी छात्रावास स्थित है। लगभग 45 साल से एक नहीं सैकड़ों उदाहरण है कि यहां रहकर पढ़ने वाले आदिवासी छात्रों ने पढ़ लिख कर सार्वजनिक एवं सरकारी क्षेत्रों में अपनी जगह तो अच्छी बनाई परंतु मुझे कभी यह महसूस नहीं हुआ कि उन्होंने अपने परिवार और बेटे बेटियों के अलावा अड़ोस पड़ोस या गांव के गरीब आदिवासी बच्चों को आगे लाने के लिए भी कुछ योगदान दिया! यदि उन्हें पढ़ने के नाम से अपने घर में रखे भी तो पढ़ने की बजाय सिर्फ घर का काम बर्तन एवं कपड़े धुलवाने के सिवा कुछ नहीं किया। मतलब पढ़ने के नाम से आए बच्चे की स्थिति घरेलू नौकर से ज्यादा नहीं रही। यह मैं लंबे समय के अध्ययन से बोल पा रहा हूं। मैं अपनी इस बात पर अडि हूं कि आदिवासी उत्थान के लिए सरकारी प्रयास के अलावा आदिवासी समाज में आगे बढ़ गए लोगों में जब तक पीछे रह गए लोगों को आगे लाने का भाव जागृत नहीं होगा तब तक आदिवासी समाज का उत्थान संभव नहीं है और ना ही दिवस विशेष की सार्थकता।

आज विश्व आदिवासी दिवस पर मैं अपनी उन छात्राओं को विशेष बधाई देता हूं जो असुविधाओं के बीच आदिवासी अंचल गौरेला पेंड्रा मरवाही में जिमनास्टिक जैसे खेल को आगे बढ़ाया और प्रदेश और देश में नाम रोशन कर रहे हैं। उन बच्चों को भी खूब याद कर रहा हूं जो तमाम तरह की सामाजिक आर्थिक भौगोलिक बढ़ाओ को पार करके सुदूर वनांचल इलाके मातिन क्षेत्र से पढ़ाई के लिए जद्दोजहत कर रही हैं।
अंत में…..

चांद के चितेरों की चर्चा चले, जिक्र उनका भी हो जो अंधेरों में है। ‌ आसमां के सितारे ही चमकते नहीं, वे दिये भी तो हैं जो मुंडेरा में है।

शुभकामनाएं एवं बधाइयां💐💐💐💐💐🙏

आपका अक्षय नामदेव पेंड्रा छत्तीसगढ़ 9406213643

Akhilesh Namdeo

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