समान लिंग विवाह के खिलाफ है सरकार

समान लिंग विवाह के खिलाफ है सरकार

केंद्र सरकार ने बीते गुरुवार को दिल्ली उच्च न्यायालय को बताया कि भारत में एक विवाह को तभी मान्यता दी जा सकती है, जब वह एक “जैविक पुरुष” और एक “जैविक महिला” के बीच में हो, जिनसे बच्चे जन्म ले सकें. समान लिंग वाले वैवाहिक संघों की मान्यता का सरकार घोर विरोध करती है.

सरकार ने कहा कि व्यक्तिगत क़ानूनों के आधार पर वैवाहिक क़ानून में एक अदालत द्वारा हस्तक्षेप समाज में मतभेद पैदा करेगा और संसद की मंशाओं को धराशायी करेगा. सरकार ने आगे कहा एक मौलिक अधिकार एक “अघोषित अधिकार” नहीं हो सकता है और अन्य संवैधानिक सिद्धांतों के ऊपर अध्यारोपित नहीं हो सकता है.

दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति राजीव सहाय एंड लॉ और अमित बंसल की खंडपीठ के समक्ष दायर एक हलफनामे में, सरकार ने समान-लिंग विवाह को वैध करार देने की मांग का पुरजोर विरोध किया और कहा कि कानून इसलिए अनिवार्य है जिससे कि “एक जैविक पुरुष और एक जैविक महिला के बीच एक पवित्र वैवाहिक बंधन” रहे.lgbt community india 2

विवाह एक पवित्रता है और देश के प्रमुख हिस्सों में विवाह को एक “संस्कार” के रूप में माना जाता है. सरकार ने अपना तर्क देते हुए कहा कि भारत में, जैविक पुरुष और जैविक महिला के बीच विवाह के संबंध की वैधानिक मान्यता मिलने के बाद भी भारतीय विवाहों में रीति-रिवाज़ों, धार्मिक प्रथाओं, सामाजिक मूल्यों और सांस्कृतिक लोकाचार को अपनाने का महत्त्व होता है.

विधिक रूप से और सामाजिक मान्यताओं के साथ एक ही लिंग के 2 लोगों का विवाह समलैंगिक विवाह कहलाता है. समलैंगिक विवाह को सबसे पहले वैधता प्रदान करने वाला देश नीदरलैंड था, जहाँ इसे 2001 में इसे कानूनी मान्यता प्राप्त हुई.

समलैंगिक विवाह के समर्थित लोगों के द्वारा यह तर्क दिया जाता है कि लैंगिक अभिन्यास को नज़र अंदाज करते हुए सभी को वैवाहिक लाभ का मिलना एक मानवाधिकार है. जबकि इसके विरोधी परम्पराओं, धर्म, माता-पिता की चिंताओं और इससे होने वाली अन्य क्षतियों के आधार पर इसका विरोध करते है। 16 देशों में समलैंगिक जोड़ों के संयोजन को मान्यता प्राप्त है.

 

Akhilesh Namdeo