शिक्षा पर अंधविश्वास भारी

अन्धविश्वास आज 21वीं सदी में भी अपनी हुकूमत जमाए हुए है, आज भी लोग अन्धविश्वासी है, कहा जाता है शिक्षा किसी भी मान्यता या आस्था को मानने से पहले बुद्धि और विवेक का इस्तेमाल करती है. खैर, आस्था और मान्यता अन्धविश्वास से बिलकुल अलग है. एक आस्थावान व्यक्ति अन्धविश्वासी हो, जरुरी नहीं और एक पढ़ा लिखा इंसान आस्थावान न हो, ये भी जरुरी नहीं है.
आस्था का तात्पर्य प्रकृति या आराध्य के प्रति एक अटूट विश्वास होता है, तो वहीं अंधविश्वास का तात्पर्य है, किसी भी सत्ता को बिना बुध्दि के, बिना विचारे स्वीकार कर सहमति दर्ज करना. एक जनश्रुति है, जहाँ शिक्षा का अभाव होता है, वहां अंधविश्वास हावी हो जाता है. कहीं न कहीं सही भी है. आज भी देश के दूर दराज इलाके में गांव देहात में अंधविश्वास से जुड़ी तमाम मान्यता समाज को आईना दिखाती रहती है.
उदाहरण के तौर पर, चेचक महामारी को ले लीजिए. पहले लोग झाड़ फूंक पर विश्वास रखते थे, दवा न होने से बहुत से रोगी की मौत भी हो जाती थी.
हाल ही में कोरोना महामारी से जुड़ी एक खबर फ़ैली थी, गांव देहात में औरतों ने कोरोना माई की पूजा शुरू कर दी थी.
लेकिन जो मामला है, उसका तार शिक्षा से जुड़ा है. शिक्षा के अभाव में अंधविश्वास तो समझ आता है, लेकिन शिक्षा में अंधविश्वास कुछ हजम नहीं होता है.
आंध्रप्रदेश के चित्तूर में एक पढ़ा लिखा परिवार अंधविश्वास में आकर अपनी दो बेटियों को मौत के घाट उतार देता है. मृत लड़की साईं दिव्या की सोशल मीडिया पोस्ट्स को अहम सबूत के रूप में देखा जा रहा है. साईं दिव्या ने अपनी मौत से तीन दिन पहले सोशल मीडिया पर लिखा- “शिव आ गये हैं, काम पूरा हुआ.”
इस पोस्ट ने सुरक्षा एजेंसियों के कान खड़े कर दिए हैं. शुरुआती जाँच में पता चला है कि पिछले एक हफ़्ते से पहले साईं दिव्या का व्यवहार काफ़ी अजीब था.
इसके साथ ही पुलिस को जानकारी मिली है कि हाल ही में कुछ बाहरी लोग इनके घर पर आए थे. इस मामले में सीसीटीवी फ़ुटेज हासिल की गई है और फ़ुटेज में नज़र आए सभी लोगों से पूछताछ करने की कोशिश की जा रही है.
मामला क्या है
चित्तूर ज़िले के ग्रामीण इलाक़े मदनपल्ली में रहने वाले पुरुषोत्तम नायडु पेशे से सरकारी महिला डिग्री कॉलेज में उप-प्रधानाचार्य हैं. वहीं, उनकी पत्नी पद्मजा भी प्रिंसिपल के रूप में काम करती हैं और एक निजी शिक्षण संस्थान की संवाददाता हैं. इनकी 27 और 22 साल की दो बेटियां थीं जिनके नाम अलेख्या और साईं दिव्या थे.
बड़ी बेटी अलेख्या ने भोपाल स्थित इंडियन मैनेजमेंट ऑफ़ इंडियन फ़ॉरेस्ट सर्विस से परास्नातक की पढ़ाई की थी. छोटी बेटी ने बीबीए की पढ़ाई की थी और एआर रहमान संगीत अकादमी में संगीत की पढ़ाई कर रही थी.
इस मामले में दर्ज एफ़आईआर के मुताबिक़, परिवार ने रविवार रात को भी कुछ अनुष्ठान किए थे, जिसके बाद अपनी छोटी बेटी साईं दिव्या को एक नुकीले त्रिशूल और बड़ी बेटी को एक डंबल से मौत के घाट उतार दिया. यह जानकारी पिता ने स्वयं अपने साथ काम करने वाले लोगों और पुलिस को दी.
जानकारी मिलने के बाद जब तक पुलिस घटनास्थल पर पहुँची, तब तक दोनों बेटियाँ मर चुकी थीं. इनमें से छोटी बेटी की लाश पूजाघर में और बड़ी बेटी की लाश पहली मंज़िल पर पाई गई.
पुलिस ने माँ-बाप दोनों को हिरासत में लेकर भारतीय दंड संहिता की धारा-302 के तहत मुक़दमा दर्ज करके जाँच शुरू कर दी है.
पुलिस जाँच में बरत रही सावधानी
पुलिस का कहना है कि इनका मानसिक व्यवहार काफ़ी अजीब और अलग है. इन्होंने पुलिस को चेतावनी दी है कि उनपर दबाव ना बनाया जाये. ऐसे में पुलिस काफ़ी सावधानी-पूर्वक जाँच करते हुए मनोवैज्ञानिकों की मदद लेने की योजना बना रही है. पुलिस ने जाँच के दौरान सिर्फ़ क़रीबी रिश्तेदारों को ही घर में आने की इजाज़त दी है, ताकि संदिग्धों को शांत रखा जा सके.
पुलिस का कहना है कि इस जोड़े के घर में कई अजीबो ग़रीब तस्वीरें थीं, जिनमें से कुछ भगवान की तस्वीरें थीं. दोनों लड़कियों का पोस्टमार्टम हो चुका है और जाँच टीम को अब तक इस मामले से जुड़े कई सुराग़ मिले हैं.
