डॉ प्रणव कुमार बनर्जी जी की पांचवीं पुण्यतिथि पर विशेष

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गौरेला पेंड्रा मरवाही

डॉ प्रणव कुमार बनर्जी

राजनीति, पत्रकारिता, साहित्य या फिर खेल और पढ़ाई का क्षेत्र हो ,पेंड्रा अंचल में प्रतिभाओं की कमी कभी नहीं रही। इस क्षेत्र में अनेक ऐसे लाल दिए जिन्होंने न सिर्फ राज्य बल्कि राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में पेंड्रा का नाम रोशन किया।स्वर्गीय डॉ प्रणव कुमार बनर्जी पेंड्रा अंचल के ऐसे ही एक शख्सियत रहे जिन्होंने होम्योपैथी चिकित्सा एवं साहित्य लेखन के माध्यम से काफी लोकप्रियता अर्जित की।

हमारे विद्यानगर पेंड्रा क्षेत्र में रहे डॉक्टर प्रणव कुमार बनर्जी इस इलाके के गांव-गांव में किसी परिचय के मोहताज नहीं रहे। पेंड्रा क्षेत्र में शुरुआती दौर में जनसंघ का प्रचार प्रसार में डॉक्टर प्रणव कुमार बनर्जी का जो योगदान रहा उसे जनसंघ से जुड़े पुराने लोग अवश्य जानते हैं। डॉक्टर बनर्जी की रौबदार आवाज , उनकी भाषा शैली तथा उनके सिद्धांत ही उनकी पहचान थी। अपने सिद्धांत के विरुद्ध बातों में फटकार लगाने में भी जैसे माहिर थे। ठकुर सुहाती उन्हें बिल्कुल भी पसंद नहीं था।यही कारण रहा की उनके जीवन काल में कभी उनके इर्द-गिर्द चाटुकारों की फौज इकट्ठी होने नहीं पाई। हमारे विद्यानगर कॉलोनी के होने के कारण मैं और मेरा परिवार ना सिर्फ उन्हें अच्छी तरह से जानता, मानता और पहचानता था बल्कि समय-समय पर डॉक्टर प्रणव कुमार बनर्जी जी का हमारे घर आना जाना होता रहा। अक्सर वे हमारे घर में प्रेस विज्ञप्ति देने पहुंचते थे और इसी दौरान ही हमें उनका उद्बोधन सुनने को मिलता था। होम्योपैथी चिकित्सा के संदर्भ में देशबंधु की रविवारीय में उनका लेख लंबे समय तक छपता रहा। उनका स्नेह हम सब भाइयों को प्राप्त होता रहा। मॉर्निंग वॉक में लंबे समय तक पिताजी के साथ घूमने जाते थे जिसके कारण वे पिताजी के वे मित्रवत रहे।

मुझे डॉक्टर साहब का संदेश मेरे पिताजी के ही माध्यम से प्राप्त होता था। याद आता है बचपन के दिनों में हमारी टोली को होली का चंदा लेने के दौरान डॉक्टर साहब से फटकार जरूर मिलती थी हालांकि उसके बाद में चंदा भी जरूर दे देते थे। उनसे इलाज कराने वाले मरीज को अनुशासन का खूब पालन करना पड़ता था।
डॉक्टर साहब जनसंघ से जुड़े होने के कारण काफी समय तक राजनीति में भी सक्रिय रहे परंतु सैद्धांतिक होने के कारण उनकी राजनीति में ज्यादा लोगों से जमी नहीं तथा शायद इसी वजह से उन्होंने एक समय के बाद राजनीति को तिलांजलि दे दी एवं सिर्फ साहित्य एवं होम्योपैथी चिकित्सा पर ध्यान दिया जो उनकी लोकप्रियता का प्रमुख कारण बनी। मुझे अच्छी तरह से याद है कि अनेक जनहित मुद्दों पर मुद्दों पर वह अकेले माइक लेकर एसडीएम एवं तहसील कार्यालय के सामने धरने पर बैठ जाते थे। अपनी इसी शैली के दम पर उन्होंने अनेक लोगों को न्याय भी दिलाया।आज डॉक्टर प्रणव कुमार बनर्जी जी की पांचवीं पुण्यतिथि पर उनका स्मरण होने पर विचार आया कि उनके बारे में कुछ लिखूं परंतु क्या लिखूं,,,,,

उन्होंने तो अपने बारे में खुद ही सब कुछ लिख दिया है अपनी लघु कथा उम्र ठहरती नहीं में। उनकी 60 पेज वाली लघु कथा के 46 पृष्ठों में उन्होंने अपने बारे में सब कुछ आईने की तरह साफ लिख दिया है। मैं उनकी लघु कथा तीन बार पढ़ चुका हूं। उम्र ठहरती नहीं लघु कथा डॉक्टर बनर्जी साहब ने मुझे अपने जीते जी अपने ही हाथों से भेंट की थी ‌। अपने जान पहचान के व्यक्ति जिन्हें हम बचपन से जानते हैं रहे उन के बारे में पढ़ना काफी अच्छा लगता है।लघु कथा पढ़ते-पढ़ते उनके हाव-भाव उनका बोलचाल व्यक्तित्व सब कुछ इस किताब में दिख जाता है। इस लघु कथा में उन्होंने अपने जीवन संघर्ष को काफी अच्छे ढंग से रेखांकित किया है। उनकी पांचवीं पुण्यतिथि पर इस लघु कथा के शुरुआती कुछ पन्ने तथा अंतिम का एक पन्ना उन्हें श्रद्धांजलि स्वरुप पोस्ट कर रहा हूं ।
उनके बड़े बेटे प्रतिभू बनर्जी यूनियन बैंक से सेवानिवृत होकर साहित्य के क्षेत्र में अपना योगदान दे रहे हैं वही उनके दूसरे बेटे प्रशांत बनर्जी ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई है तथा पेंड्रा का नाम रोशन कर रहे हैं।

6 दिसंबर वर्ष 2018 को डॉक्टर साहब ने 83 वर्ष की उम्र में अंतिम सांस ली थी। वह आज इस संसार में नहीं है परंतु उनका साहित्य उनकी स्मृतियां को स्थाई बनाए हुए हैं।डॉक्टर साहब को सादर शत-शत नमन💐💐💐💐💐💐💐💐💐🙏

अक्षय नामदेव पेंड्रा छत्तीसगढ़ मोबाइल 9406213643

Akhilesh Namdeo

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