रणथंबोर वाले त्रिनेत्रधारी गणेश दादा एवं उनके परिवार  का दर्शन अभी भी आंखों के सामने झूलता है,कष्ट को हरने वाले एवं मनवांछित फल देने वाले हैं रणथंबोर के गणेश दादा

विश्व पर्यटन दिवस पर विशेष

यात्रा संस्मरण:

वैसे तो गणेश भगवान हम सब के मन में बसे रहते हैं परंतु यह हमारे भारत की सांस्कृतिक विशेषता है कि गणेशोत्सव में भारत के गांव-गांव मोहल्ले मोहल्ले, घर-घर में गणेश जी की पूजा होती है। बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक गणेश भगवान सबके प्रिय हैं। शुभता एवं बुद्धि के दाता, विघ्न विनाशक भगवान गणेश है ही ऐसे। भोले भाले, सीधे-साधे सच्चे जैसे चाहो वैसे मना लो। बच्चों के बीच भगवान गणेश हमेशा से  प्रिय रहे हैं यही कारण है कि गणेशोत्सव में पंडाल सजाने में तथा आरती में बच्चे ही ज्यादा आगे रहते हैं। गणेशोत्सव के आते ही अपना बचपन याद आ जाता है।

गणेशोत्सव चल रहा हो और मुझे रणथंबोर वाले गणेश जी की याद ना आए!! क्या ऐसा कभी हो सकता है? रणथंबोर के त्रिनेत्र धारी गणेश जी हैं ही ऐसे कि जो एक बार उनका दर्शन कर ले तो उन्हीं का होकर रह जाता है। कहते हैं संकट काल में भगवान का स्मरण ज्यादा होता है। ऐसे ही किन्हीं दिनों की बात है। वर्ष 2008 में ट्रैक्टर से भयंकर एक्सीडेंट के बाद मैं जीवन की सामान्य परिस्थितियों में आने की कोशिश कर रहा था परंतु परिस्थितियों सामान्य होने का नाम ही नहीं ले रही थी। एक्सीडेंट ही कुछ ऐसा था। ऐसे में पूज्य पिताजी का स्मरण आया जो अक्सर खास मौको रणथंबोर वाले गणेश दादा जी से पत्राचार किया करते हैं। पिताजी की प्रेरणा से मैंने अपने दुख को रणथंभौर वाले गणेश जी को बताया। फिर क्या था मेरा संकट काल चुटकी बजाते निकल गया। रणथंबोर वाले गणेश भगवान से मेरा स्वाभाविक रूप से प्रेम बढ़ गया और वे मेरे दिल में बस गए हमेशा के लिए।

मध्य भारत में भले ही जुलाई महीने में बारिश शुरू हो जाती है परंतु राजस्थान जैसे राज्य में जुलाई महीने में भीषण गर्मी ही रहती है। पेंड्रा रोड रेलवे स्टेशन से दुर्ग जयपुर एक्सप्रेस से रात्रि में हम रवाना हुए तथा दूसरे दिन 15 जुलाई 2014 को लगभग 12:00 बजे हम सवाई -माधोपुर रेलवे स्टेशन में उतरे। सवाई- माधोपुर रणथंबोर का सबसे करीबी रेलवे स्टेशन है इसी रेलवे स्टेशन पर उतरकर आप रणथंबोर के किले में स्थित त्रिनेत्र धारी गणेश जी के दर्शन करने जा सकते हैं तथा यहीं रणथंबोर के टाइगर रिजर्व फॉरेस्ट का आनंद उठा सकते हैं।
सवाई- माधोपुर रेलवे स्टेशन पर उतरकर हमने एक होटल की शरण ली तथा जल्दी से तैयार होकर हम रणथंबोर के किले की ओर रवाना हुए।

होटल से रणथंबोर के किले की दूरी लगभग 15 किलोमीटर है तथा इसके लिए हमें वहां से टैक्सी उपलब्ध हो गई। पर्यटन क्षेत्र होने के कारण सवाई -माधोपुर में होटल ,टैक्सी एवं खानपान का व्यवसाय काफी समृद्ध है तथा हजारों लोग इस व्यवसाय से जुड़कर रोजी रोजगार कमा रहे हैं। यहां पांच सितारा होटल से लेकर हम जैसे आम आदमियों के ठहरने के लिए होटल ,धर्मशाला का अच्छा खासा प्रबंध है। होटल से रणथंबोर के किले जाने के रास्ते में ही रणथंभौर टाइगर रिजर्व फॉरेस्ट सटा हुआ है जहां हिरण, बारहसिंगा खरगोश जैसे वन्य प्राणी विचरण करते हुए दिखाई दे रहे थे। टाइगर रिजर्व फॉरेस्ट को ऊंची, जालीदार बाड़ से घेर कर रखा गया है ताकि वन्य प्राणियों को किसी से खतरा न हो। बरसात प्रारंभ होने के कारण टाइगर रिजर्व फॉरेस्ट में पर्यटकों का आना-जाना बंद हो जाता है इसलिए वहां जाने की उस समय अनुमति नहीं थी परंतु हमें तो रणथंभौर वाले गणेश दादा जी से मिलने जाना था।पौन घंटे के भीतर हम रणथंबोर के किले के सामने पहुंच गए थे। वहां टैक्सियों की कतार लगी हुई थी तथा किले के नीचे मेले जैसा वातावरण था। गणेश दादा की महिमा भारत के कोने-कोने में फैली हुई है इसलिए देश के कोने-कोने से श्रद्धालु गणेश भगवान का दर्शन करने रणथंबोर आए हुए थे।

त्रिनेत्र भारी श्री गणेश मंदिर प्रांगण के बाहर भगवान श्री गणेश को चढ़ाने वाले मोदक, लड्डुओं की बड़ी-बड़ी दुकानें सजी हुई है जहां से आप भगवान श्री गणेश के लिए भोग प्रसाद खरीद सकते हैं। हमने भी भगवान श्री गणेश के लिए भोग प्रसाद लिया और मंदिर में प्रवेश किया।

टैक्सी वाले ने हमें बताया कि यहां से किले को पार करते हुए आपको ऊपर गणेश भगवान के दर्शन होंगे। बेटी मैंकला अभी छोटी ही थी और मैं शारीरिक रूप से चलने में कुछ असमर्थ सा था। भगवान गणेश का नाम लेकर हम किले में प्रवेश कर गए। मेरे हाथ में सहारे के लिए एक छड़ी साथ थी तथा दूसरे हाथ में पानी की एक बोतल। मैंकला बेटी के कुछ कपड़ों का बैग निरुपमा के पास था। भगवान श्री गणेश का स्मरण कर हम धीरे-धीरे रणथंबोर के किले की चढ़ाई चढ़ने लगे। एक के बाद एक किले के बड़े-बड़े दरवाजे, ऊंची दीवारें एवं बुर्ज प्राचीन रहस्य की दास्तान कहते दिखाई देते थे ‌। राजस्थान की भीषण गर्मी जुलाई महीने में चरम पर थी। पसीना से तरबतर होने के बावजूद मैं धीरे-धीरे भगवान गणेश का स्मरण करते हुए आगे बढ़ रहा था। छोटी सी बेटी मैंकला और उसकी मां भी मेरे साथ साथ चल रहे थे। चढ़ाई ज्यादा थी और मैंकला बेटी गोद में आने की जिद करने लगी तब मैंने पानी का बोतल निरुपमा को देते हुए मैंकला बेटी को अपने कंधे पर बिठा लिया और छड़ी के सहारे किले की चढ़ाई चढ़ने लगा। यात्रा में हम अकेले नहीं थे हमारे जैसे सैकड़ो श्रद्धालु भगवान श्री गणेश के जयकारे के साथ किला चढ़ और उतर रहे थे। बीच में कुछ रुकते हुए लगभग 1 घंटे में हम रणथंबोर के किले के ऊपर स्थित त्रिनेत्र धारी भगवान श्री गणेश के दरबार मैं पहुंच गए थे। वहां पहुंचकर हमारी थकान जाती रही।

अरावली पर्वत एवं विंध्याचल पर्वत पर स्थित रणथंभौर के किले में विराजमान भगवान श्री त्रिनेत्रधारी गणेश जी का यहां अद्भुत दरबार सजा हुआ है जहां गणेश भगवान के उनकी पत्नी रिद्धि और सिद्धि तथा उनके पुत्र शुभ और लाभ विराजमान है। बताते हैं कि पूरे विश्व में यही एक मंदिर है जहां भगवान श्री गणेश जी पूरे परिवार सहित विराजमान है। रणथंबोर के किले में स्थित इस गणेश मंदिर की बड़ी पौराणिक मान्यता है यही कारण है कि देश दुनिया में यह मंदिर काफी प्रसिद्ध है। यहां स्थित त्रिनेत्र धारी गणेश जी की प्रतिमा स्वयंभू है परंतु मंदिर का निर्माण रणथंबोर के महाराजा हम्मीर देव चौहान ने करवाया था जिनकी भगवान गणेश के प्रति बड़ी आस्था थी।वर्ष 1299 से 1300 के बीच अलाउद्दीन खिलजी से महाराज हम्मीर देव चौहान के बीच हुए युद्ध में भगवान श्री गणेश ने किले की बड़ी रक्षा की। श्री गणेश मंदिर  में खरगोश के बराबर बराबर सफेद चूहे सैकड़ो की संख्या में विचरण कर रहे हैं जो भगवान श्री गणेश में चढ़े हुए भोग प्रसाद का आनंद उठा रहे हैं। भगवान गणेश के पास चूहों को देखकर आश्चर्य कैसा ?? आखिर उन पर सवारी जो करते हैं भगवान गणेश। हमने जी भर के भगवान श्री गणेश जी का दर्शन किया तथा दोपहर 2:00 बजे वाली आरती में शामिल हुए। यहां त्रिनेत्रधारी गणेश मंदिर में दिन में पांच बार राजसी आरती होती है तथा दर्जनों पुजारी घंटा घड़ियाल के साथ आरती संपन्न करते हैं आरती के समय मंदिर परिसर का विहंगम नजारा होता है। मंदिर परिसर में हम काफी देर तक बैठ उनका मनन चिंतन करते रहे।

धूप कम होने का इंतजार करते हुए हम किले से नीचे आने का मन बनाने लगे।लगभग 4:00 बजे हम किले पर स्थित त्रिनेत्र धारी गणेश मंदिर से नीचे के लिए रवाना होने लगे परंतु किले की उमस और ऊपर सूरज की तेज रोशनी गर्मी कम होने का नाम नहीं लेने दे रही थी फिर भी हम हिम्मत करके भगवान श्री गणेश का नाम स्मरण करते हुए उतरने लगे। अभी कुछ मी ही हम नीचे उतरे होंगे कि अचानक आकाश में काले बादल छाने लगे और बारिश की फुहारे शुरू हो गई और हमें भिगोने लगी। यह किसी चमत्कार से कम नहीं था। हमारे सहित चढ़ने उतरने वाले श्रद्धालु भीषण गर्मी के बाद बारिश से भीगकर आनंदित होने लगे।

किले पर पर चढ़ने की अपेक्षा किले से उतरना आसान हुआ। मैंकला बेटी भी आगे आगे दौड़ दौड़ रही थी। लगभग पौन घंटे में हम किले से नीचे उतर चुके थे। वहां टैक्सी वाला हमारा इंतजार कर रहा था। हम बारिश में पूरी तरह भीग चुके थे तथा वापस जल्दी होटल पहुंचाना चाहते थे।
रास्ते में टैक्सी वाले ने अच्छी जगह हमें चाय पिलाई और हमें होटल पहुंचा दिया। होटल पहुंचकर हमने कपड़े बदले और कुछ देर आराम करने के तक रात्रि के लगभग 8 बज चुके थे। होटल के बाहर निकल कर हमने एक राजस्थानी भोजनालय में दाल ,बांटी ,चूरमा का आनंद उठाया। हमें रात्रि लगभग 12:00 बजे वापस पेंड्रारोड आने के लिए पुनः जयपुर दुर्ग एक्सप्रेस पकडनी थी जिसमें हमारा आरक्षण था। रात्रि 11:30 बजे लगभग हम होटल छोड़ सवाई -माधोपुर रेलवे स्टेशन पहुंच चुके थे । ट्रेन निर्धारित समय पर आई । भगवान श्री गणेश का स्मरण कर हम वापस आने के लिए ट्रेन पर बैठ गए।
9 साल पहले रणथंबोर के श्री त्रिनेत्र धारी गणेश जी का स्मरण आते हुए मन भाव विह्वल हो जाता है।

रणथंबोर वाले गणेश जी की कृपा से एक्सीडेंट के बाद के संकट काल के गुजरने के बाद से मन में था कि राजस्थान के रणथंबोर वाले गणेश जी का दर्शन करने शीघ्र पहुंचूं परंतु शारीरिक समस्या बाधा बन रही थी। दरअसल रणथंबोर वाले गणेश जी लगभग दो हजार फीट ऊंची पहाड़ी पर किले के भीतर विराजित है जहां पैदल जाना होता है इसलिए मैं अपने और स्वस्थ होने का इंतजार कर रहा था परंतु भावनाएं बार-बार रणथंबोर वाले गणेश जी की ओर लेकर जाती थी और अंततः जुलाई 2014 में वह समय आया जब मेरा अपनी 6 वर्षीय बेटी मैंकला एवं पत्नी निरुपमा के साथ रणथंबोर जाने का कार्यक्रम निश्चित हो गया। उन दिनों मैं और निरुपमा एक ही स्कूल में पदस्थ थे।तयशुदा कार्यक्रम के अनुसार हमने अपनी छुट्टी स्वीकृत कराई तथा ट्रेन में आरक्षण कराकर 14 जुलाई 2014 को दुर्ग जयपुर एक्सप्रेस से रणथंबोर राजस्थान के लिए रवाना हुए।

सवाई -माधोपुर जाकर श्री रणथंबोर के किले में स्थित श्री त्रिनेत्र धारी गणेश जी के दर्शन के लिए की गई यात्रा आंखों के सामने से ऐसे गुजरता है जैसे अभी कल ही की बात हो।
मन में भाव है कि फिर एक बार गणेश जी के दर्शन करने रणथंबोर जाऊं 
श्री गणेशाय नमः।
श्री गणेश उत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाई।

*अक्षय नामदेव पेंड्रा छत्तीसगढ़ मोबाइल 9406213643*

Akhilesh Namdeo

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