सत्य और अहिंसा के पुजारी बापू

सत्य और अहिंसा के पुजारी बापू

अहिंसा के सबसे बड़े पुजारी की जब भी बात होती है, लोगों के ज़हन में बस एक ख़्याल आता है. बात चाहे देश की हो या देश से परे दुनियाभर की, वो नाम महात्मा गांधी का है. कहते हैं, इंसान धरती पर एक बार पैदा होता है और दुनिया के रंगमंच पर नाटक करके एक दिन विदा हो लेता है. लेकिन मरता तो इंसान है, उसका समाज के लिये योगदान और देशप्रेम हमेशा हमेशा के लिये इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाता है.

आज बापू की पुण्यतिथि है. आज ही के दिन 30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी यानी बापू की नाथूराम गोडसे ने उनकी हत्या कर दी थी. आज पूरा देश गांधी जी के पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि दे रहा है.

                                           'महात्मा गांधी

हत्या का समीकरण

‘महात्मा गांधी के भाषणों के संकलन प्रवचन भाग दो’ के अनुसार उस दिन बापू एक प्रार्थना सभा को संबोधित कर रहे थे, लेकिन माइक्रो फोन ठीक ढंग से काम नहीं करने के कारण गांधी जी की आवाज ठीक तरह से सुनाई नहीं दे रही थी और उनकी बातों को सुशीला नय्यर ऊंची आवाज में दोहरा रही थीं. तभी विस्फोट की एक जोरदार आवाज सुनाई दी.

हत्या की साजिश रचने वालों ने उससे कुछ दिन पहले भी 20 जनवरी को एक प्रार्थना सभा में बापू को मारने का प्रयास किया था, हालांकि वे इसमें असफल रहे.
दिल्ली में 20 जनवरी 1948 को प्रार्थना सभा में बापू के भाषण के दौरान उनकी हत्या के प्रयास किए गए और इस दौरान विस्फोट भी किया गया. हमलावरों की मूल योजना भीड़ में हथगोला फेंकने की भी थी.

विस्फोट के बावजूद बापू अप्रभावित रहे और उन्होंने पास ही घबराई मनु गांधी को ढांढस देते हुए कहा ‘आप डरी हुई क्यों हैं? कुछ सुरक्षाकर्मियों को शायद गोली चलाने का प्रशिक्षण दिया जा रहा होगा, आप तब क्या करेंगे जब वास्तव में कोई आपको गोली मारने के लिए सामने आ जाएगा.’ बाद में पाया गया कि जहां महात्मा गांधी बैठे हुए थे, उससे महज 75 फुट की दूरी एक विशेष प्रकार का विस्फोटक ‘गन कौटन’ फटा था, जो एक साजिश का हिस्सा था.

साजिशकर्ताओं ने 20 जनवरी 1948 को अपनी योजना के तहत प्रार्थना सभा में उपस्थित लोगों का ध्यान बांटने के उद्देश्य से विस्फोट किया था. उनकी मूल योजना बापू के बैठने के स्थान के ठीक पीछे स्थित सर्वेंट रूम से ‘हथगोला’ फेंकने की थी लेकिन वे इसमें असफल रहे. योजना के तहत विस्फोट के बाद दिगंबर बाजे को मंच पर बैठे बापू पर हथगोला फेंकना था लेकिन उसका साहस अंतिम समय में जवाब दे गया और वह ऐसा नहीं कर पाया.

साजिशकर्ता

बापू को मारने की साजिश रचने वाले छह लोग नाथुराम गोडसे, नारायण आप्टे, विष्णु करकरे, गोपाल गोडसे, दिगंबर बाजे और शंकर किस्तायत बचकर टैक्सी में बैठकर कर फरार हो गए लेकिन उनके एक अन्य साथी मदनलान पहवा को पकड़ लिया गया.

20 जनवरी 1948 को इस प्रार्थना सभा में अपने संबोधन में बापू आजादी और विभाजन के बाद शरणार्थियों की स्थिति और प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और सरदार वल्लभ भाई पटेल के बीच मतभेदों के बारे में चर्चा कर रहे थे.

आज गांधी जी हमलोगों के बीच तो नहीं है, लेकिन किताबों से जो स्मृतियाँ सहेजे है, उसको याद करके खुद को गौरवान्वित महसूस करते हैं. उनके आदर्शों पर चलने की प्रेरणा लेकर कर्तव्यमार्ग पर निरंतर निष्काम कर्मयोगी की भांति चलते रहते हैं.

इस सभा में बापू ने कहा ‘अगर आप सरदार पटेल के बम्बई के बयान को सावधानी से देखें तो यह आपको यह पता चल जाएगा कि पंडित नेहरू और सरदार पटेल में कोई मतभेद नहीं था. वे अलग-अलग तरीके से बात करते हैं लेकिन उनका काम समान है’ बहरहाल, अगर 20 जनवरी के हादसे को गंभीरता से लिया गया होता तो शायद बापू हमसे इस तरह विदाई नहीं लेते.

Akhilesh Namdeo