पर्यटन को बढ़ावा देने ठाड़पथरा में राष्ट्रीय कार्यशाला एवं मून लाइट कैंपिंग का आयोजन,सात राज्यों से आए प्रतिभागियों ने साझा किए अनुभव, जैवविविधता और जनजातीय पहचान पर हुई चर्चा
चांदनी रात में बोटिंग, रिवर-साइड ट्रेकिंग और झरनों का लुत्फ – प्रतिभागियों ने लिया अनोखा अनुभव

गौरेला-पेंड्रा-मरवाही
जिले को पर्यटन मानचित्र पर राष्ट्रीय पहचान दिलाने और पर्यटन विकास को बढ़ावा देने के उद्देश्य से गौरेला विकासखण्ड के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल ठाड़पथरा में 6 और 7 सितम्बर को राष्ट्रीय स्तर का दो दिवसीय कार्यशाला एवं मून लाइट कैंपिंग का आयोजन किया गया। कलेक्टर श्रीमती लीना कमलेश मंडावी के मार्गदर्शन में आयोजित इस कार्यशाला में छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश, बिहार, कर्नाटक और दिल्ली सहित सात राज्यों से 30 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया।

कार्यशाला के दौरान प्रतिभागियों ने न केवल ठाड़पथरा के आकर्षक कम्युनिटी मड हाउस और झील किनारे बसे प्राकृतिक परिवेश का आनंद लिया, बल्कि स्थानीय खानपान और ग्रामीण जीवनशैली से भी जुड़ाव महसूस किया। कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य था – जैवविविधता संरक्षण, सांस्कृतिक अस्मिता और जनजातीय पहचान को बदलते परिवेश में ढालना तथा परंपरागत ज्ञान को अगली पीढ़ी तक हस्तांतरित करना।

कार्यशाला के प्रथम सत्र में पटना (बिहार) से आए फिल्ममेकर आर्यन चंद्र प्रकाश ने ग्रामीण जीवन के संघर्ष और उनकी जिजीविषा को फिल्म और डॉक्यूमेंट्री के माध्यम से दर्ज करने की जरूरत पर प्रकाश डाला।
दूसरे सत्र में लखनऊ (उत्तर प्रदेश) की शिक्षाविद पल्लवी ने ग्रामीण बच्चों के करियर व व्यावहारिक शिक्षा की अहमियत बताई।
अंतिम सत्र में पर्यावरणविद संजय पयासी ने जंगल भ्रमण के दौरान स्टोरी-टेलिंग के माध्यम से जलवायु परिवर्तन और प्रकृति संरक्षण के विषयों को सरलता से समझाया। उन्होंने कहा कि “शहरी जीवन की भागदौड़ और अवसाद से मुक्ति पाने का सबसे अच्छा उपाय है प्रकृति के करीब जाना।”


रोमांच और अनुभवों से भरे दो दिन
6 सितम्बर की शाम को प्रतिभागियों ने रिवर-साइड ट्रेकिंग करते हुए “माई के मंडप” का भ्रमण किया। यहां जुगनुओं की घाटी में झरनों के किनारे चांदनी रात का दृश्य और चंद्रदर्शन ने सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। ठाड़पथरा झील किनारे आयोजित मून लाइट बोटिंग और ध्यान सत्र प्रतिभागियों के लिए अद्भुत अनुभव रहा।

7 सितम्बर को प्रतिभागियों ने दुर्गाधारा झरने में स्नान किया और आमानाला स्थित प्राचीन आश्रम तक रोमांचक ट्रेकिंग का आनंद लिया। इस दौरान उन्होंने अमरावती नदी के किनारे रंग-बिरंगी तितलियों को पहचाना और रास्ते में दहिमन, शल्यकरणी, बीजा जैसे दुर्लभ पेड़ों की जानकारी भी प्राप्त की।

कार्यशाला के समापन पर प्रतिभागियों ने साझा किया कि नदी, पहाड़ और जंगल न केवल उनके व्यक्तित्व को समृद्ध करते हैं बल्कि जीवन में नई ऊर्जा भी भरते हैं। ठाड़पथरा का यह अनुभव उनके लिए अविस्मरणीय रहेगा।

