उत्तर प्रदेश में अपराधियों पर आयी नयी मुसीबत 

उत्तर प्रदेश में अपराधियों पर आयी नयी मुसीबत 

 

केंद्र में मोदी और उत्तर प्रदेश में योगी सरकार बड़े से बड़ा फैसला लेने में तनिक भी देर न करती है ,न तो पीछे हटती है ।

उत्तर प्रदेश की सरकार ने जेल में बंद कैदियों को लेकर बड़ा फैसला लिया है. सजा पा रहे कैदियों को अब उत्तर प्रदेश में पैरोल नहीं दी जाएगी. उत्तर प्रदेश के गृह विभाग ने ये आदेश जारी किया है.।

अब आखिर पैरोल होता क्या है? आइये इसको समझते है ।

भारत में, पैरोल का अनुदान मुख्य रूप से जेल अधिनियम, 1894 और कैदी अधिनियम, 1900 के तहत बनाए गए नियमों द्वारा शासित होता है, प्रत्येक राज्य के अपने पैरोल नियम होते हैं, जिनमें एक-दूसरे के साथ मामूली बदलाव होते हैं,  पैरोल के प्रकार दो है – हिरासत और नियमित

हिरासत पैरोल परिवार में मौत, गंभीर बीमारी या परिवार में शादी जैसी आपातकालीन परिस्थितियों में दिया जाता है, यह छह घंटे के समय तक सीमित है जिसके दौरान कैदी को यात्रा के स्थान पर ले जाया जाता है और वहां से वापस आ जाता है, पैरोल का अनुदान संबंधित पुलिस स्टेशन से परिस्थितियों के सत्यापन के अधीन है और जेल के अधीक्षक द्वारा दिया जाता है.

गैंगस्टर विकास दुबे के एनकाउंटर मामले की जांच कर रही एसआईटी ने प्रदेश सरकार से ऐसा करने की सिफारिश की थी. जिसके बाद अब राज्य सरकार ने प्रदेश के सभी जिलों को ये आदेश जारी कर दिया है।

एसआईटी ने अपनी सिफारिश में कहा था कि गंभीर अपराधों में सजा पाए हुए कैदी सामाजिक जीवन में रहने लायक नहीं हैं, ऐसे में उन्हें पैरोल देने से पहले विचार किया जाना चाहिए. सिफारिश में रेप, हत्या और अन्य गंभीर मामलों में सजा काट रहे कैदियों को पैरोल नहीं देने की बात कही थी.।

विशेष परिस्थितियों को छोड़कर, कम से कम एक वर्ष जेल में सेवा करने वाले अभियुक्तों को छोड़कर, एक महीने की अधिकतम अवधि के लिए नियमित पैरोल की अनुमति है, यह कुछ आधारों पर दिया जाता है जैसे कि:

परिवार के सदस्य की गंभीर बीमारी

परिवार के सदस्य की दुर्घटना या मौत

परिवार के एक सदस्य का विवाह

दोषी की पत्नी द्वारा बच्चे की डिलीवरी

परिवार या सामाजिक संबंध बनाए रखें

अभियुक्तों की कुछ श्रेणियां राज्य के खिलाफ अपराधों में शामिल कैदियों, या राष्ट्रीय सुरक्षा के खतरे, भारत के गैर-नागरिक आदि जैसे पैरोल पर रिहा होने के लिए योग्य नहीं हैं, लोगों को हत्या या बच्चों या कई हत्याओं के बलात्कार के आरोप में भी छूट दी गई है, अनुदान प्राधिकरण के विवेकाधिकार को छोड़कर 

प्रक्रिया के अनुसार, एक कैदी के बाद पैरोल की तलाश होती है, जेल प्राधिकरण (अधीक्षक) गिरफ्तार करने वाले पुलिस स्टेशन से एक रिपोर्ट मांगता है रिपोर्ट, मेडिकल रिपोर्ट जैसे सभी अन्य कागजात (बीमारी के कारण बीमारी के मामले में) के साथ रिपोर्ट, अधीक्षक की सिफारिश तब उप सचिव, गृह (सामान्य), राज्य सरकार को भेजी जाती है जो आवेदन  पर निर्णय लेती है।

आपको बता दें कि पिछले साल कानपुर के बिकरू गांव में विकास दुबे और उसके साथियों ने आठ पुलिसवालों की हत्या कर दी थी. जिसके बाद वो एक हफ्ते तक फरार रहा, हालांकि बाद में पुलिस के साथ एनकाउंटर में मारा गया था. विकास दुबे पर करीब 60 से अधिक मामले थे, लेकिन फिर भी वो पैरोल पर बाहर था.।

बिकरू गांव में हुये घटना क बाद सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार से सवाल किया था ,जिसके ऊपर ६० से अधिक मामले दर्ज हो उसको पैरोल पर रिहाई कैसे मिल सकती है ।

Akhilesh Namdeo