सेनेटोरियम में कलेक्ट्रेट एवं कंपोजिट बिल्डिंग के निर्माण के लिए हरे भरे डेढ़ सौ साल पुराने वृक्षों की कटाई शुरू

सैनिटोरियम में पहले गुरुदेव की मूर्ति लगाई और अब मूर्ति के सामने पेड़ों की कटाई शुरू
हर्रा- बहेरा, इमली- महुआ – कसाई जैसे औषधि युक्त पेड़ काटे गए
पर्यावरण प्रेमियों में शोक की लहर, सोचा नहीं था विकास की ऐसी कीमत चुकानी पड़ेगी


अखिलेश नामदेव (गौरेला पेंड्रा मरवाही)
गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर की आत्मा आज जार जार रो रही है। जिस सेनेटोरियम परिसर में गुरुदेव अपनी पत्नी का इलाज कराने आए थे उस सेनेटोरियम परिसर के सौ से डेढ़ सौ साल पुराने हरे औषधीय वृक्षों को काटा जा रहा है क्योंकि यहां गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले का कंपोजिट बिल्डिंग बनाना है। सेनेटोरियम में पेड़ों की कटाई शुरू होने से पर्यावरण प्रेमियों में शोक की लहर है उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि विकास की ऐसी कीमत चुकानी पड़ेगी। कहां तो सरकार बात कर रही थी सेनेटोरियम में गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर की स्मृतियों को स्थाई बनाने की परंतु हो इसका उल्टा रहा है। इसी वर्ष सैनिटोरियम परिसर में गुरुदेव की मूर्ति की भी स्थापना हुई है जो इस विनाश लीला को अपनी आंखों से देख रहे हैं। पेड़ काटने वालों ने यह भी न सोचा कि गुरुदेव की आत्मा पर क्या गुजर रही होगी।



गौरेला से पेंड्रा जाने वाले मुख्य मार्ग पर स्थित विश्व प्रसिद्ध सैनिटोरियम अपने प्राकृतिक वातावरण एवं आबोहवा के लिए प्रसिद्ध है। यहां की औषधीय युक्त हवाओ एवं वातावरण को ध्यान में रखते हुए ब्रिटिश शासन में एशिया का प्रसिद्ध टीवी हॉस्पिटल बनाया गया था, जिसका प्रमुख कारण था, साल सरई के वृक्षों के बीच यह इलाका उत्तम जलवायु के लिए ऑक्सीजोन कहलाता है।यह वही इलाका है जहां राष्ट्रकवि रविंद्र नाथ टैगोर अपनी पत्नी का इलाज कराने सेनेटोरियम आए थे।
मुख्य मार्ग पर दोनों ओर साल सरई के घने जंगल किसी का भी मन मोह लेते हैं परंतु पर्यावरण प्रेमीयो के लिए दुखद बात यह है कि अब यह साल सरई के पेड़ काट दिए जाएंगे जिसका कारण जिला शासन ने गौरेला पेंड्रा मरवाही का जिला मुख्यालय के लिए कलेक्ट्रेट एवं संयुक्त भवन निर्माण के लिए इस स्थल का चयन किया है ।नतीजा कलेक्ट्रेट के ड्राइंग डिजाइन के लिए साल सरई के लगभग 100-150 साल पुराने दर्जनों पेड़ों को इस की बलि देनी होगी। प्रशासन में उन पेड़ों को चिन्हित कर काटने की तैयारी कर ली है प्रारंभिक तौर पर अभी हर्रा बहेरा पीपल इमली एवं महुआ के पेड़ों को काटा जा रहा है फिर धीरे-धीरे उन पेड़ों को काटा जाएगा जिनको तैयार होने में सालों साल लग जाते हैं …

जिले के पर्यावरण एवं वृक्षों के प्रेमियों ने इस बात पर कड़ी आपत्ति जताई है ,उन्होंने वृक्ष काटने का विरोध तो किया ही साथ ही शासन – प्रशासन का ध्यान इस ओर अवगत कराया की इस जमीन के आसपास भी ऐसी कई एकड़ जमीन रिक्त पड़ी है जहां बिना वृक्षों को काटे यह भवन बनाया जा सकता है, परंतु शासन-प्रशासन अपनी जिद पर अड़ा हुआ है वृक्ष की बलि देकर विकास और भवन निर्माण कितना जायज है आज पर्यावरण प्रेमियों ने कटे हुए वृक्षों के समीप जाकर वृक्षों से प्रार्थना की और उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए अफसोस जताया कि है वृक्ष देवता हम आपकी रक्षा न कर सके इसके लिए हमें क्षमा करना साथ ही वहां स्थित विशाल बरगद के पेड़ की रक्षा के लिए रक्षा सूत्र बांधकर उसकी रक्षा करने का संकल्प लिया है…

