वीरों की भूमि गोरखपुर का चौरी चौरा, पूर्ण हुआ शताब्दी वर्ष

देश की आजादी के अहम् घटनाक्रम में चौरी चौरा कांड को भुलाया नहीं जा सकता. जलियांवाला बाग नरसंहार के बाद गांधीजी ने सितम्बर 1920 से देशभर में असहयोग आंदोलन शुरू किया. इसने भारतीय आजादी की लड़ाई को नई जागृति दी. जब भी गांधीजी के इस आंदोलन की बात चलती है, तब चौरी-चौरा कांड की याद भी इसके साथ जुड़ जाती है. आज उसी चौरी चौरा के 100 साल पूरे हो गए हैं. इसे लेकर उत्तर प्रदेश सरकार सालभर कई प्रोग्राम करने वाली है. क्या था चौरी-चौरा कांड, जो भारतीय आजादी की लड़ाई में हमेशा हमेशा के लिए अमिट हो गया.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज चौरी चौरा कांड के शताब्दी वर्ष समारोह का ऑनलाइन उद्घाटन करेंगे. उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल कार्यक्रम से ऑनलाइन जुड़ेंगी. मुख्य समारोह स्थल चौरी चौरा पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद मौजूद रहेंगे.
शताब्दी वर्ष समारोह एक साल तक उत्तर प्रदेश में चलेगा
माध्यमिक शिक्षा विभाग यूपी बोर्ड के पाठयक्रम में भी चौरी चौरा की घटना को शामिल करने जा रहा है. चौरी चौरा समारोह में वंदे मातरम् गायन का विश्व रिकॉर्ड बनाने की भी तैयारी है. पूरे प्रदेश में तय समय पर करीब 30 हजार लोग एक साथ वंदे मातरम् गायन करेंगे. चौरी चौरा कांड का शताब्दी वर्ष समारोह एक साल तक उत्तर प्रदेश भर के शहीद स्मारकों पर मनाया जाएगा. छात्र-छात्राओं के बीच निबंध, चित्रकला व पोस्टर, क्विज, स्लोगन, कविता लेखन व भाषण प्रतियोगिताएं भी कराई जाएंगी.
चौरी चौरा कांड की पूरी कहानी
दरअसल, जब पूरे देश में असहयोग आंदोलन चरम छू रहा था, देशभर के लोगों के असहयोग के कारण अंग्रेज सरकार को पसीने छूटने लगे थे. तब एक ऐसी घटना हुई, जिससे महात्मा गांधी ने इस आंदोलन को वापस ले लिया.
आज ही के दिन आजादी के वीर जवानों ने अंग्रेजी हुकूमत से भिड़ंत के बाद पुलिस चौकी को आग के हवाले कर दिया. दरअसल, चौरी चौरा में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ प्रदर्शन चल रहा था. आंदोलकारियों के चौरी चौरा पहुंचने पर भीड़ बेकाबू हो गई. बेकाबू भीड़ ने बिट्रिश सरकार की एक पुलिस चौकी में आग लगा दी.
इस घटना में 11 सत्याग्रही शहीद हो गए, जबकि 22 पुलिस कर्मियों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा. घटना के बाद अंग्रजों ने करीब 19 क्रांतिकारियों को फांसी की सजा सुनाई. आजादी के इतिहास में क्रांतिकारियों के अमूल्य बलिदान को याद करते हुए आज उन्हें देशभर में श्रद्धांजलि दी जा रही है. इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कार्यक्रम का उद्घाटन करेंगे और शहीदों की याद में डाक टिकट जारी किया जाएगा. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पहल पर चौरी चौरा के शहीदों और परिजनों का सम्मान किया जाना है.
हालांकि बहुत से कांग्रेस नेता इस वजह से उनसे नाराज भी हुए. ये चौरी-चौरा कांड ही था, जिसमें 4 फरवरी 1922 के दिन कुछ लोगों की गुस्साई भीड़ ने गोरखपुर के चौरी-चौरा के पुलिस थाने में आग लगा दी थी. इसमें 23 पुलिस वालों की मौत हो गई थी.
नाराज भीड़ ने घेर लिया था थाना
इस घटना में तीन नागरिकों की भी मौत हो गई थी. ये कांड इस खबर के साथ शुरू हुआ कि चौरी-चौरा पुलिस स्टेशन के थानेदार ने मुंडेरा बाज़ार में कुछ कांग्रेस कार्यकर्ताओं को मारा है, इसके बाद लोगों की नाराजगी बढ़ने लगी. गुस्साई भीड़ ने पुलिस स्टेशन को घेरना शुरू किया. देखते ही देखते काफी भीड़ वहां इकट्ठी हो गई.
23 पुलिसकर्मी जलाकर मारे गए
इस भीड़ ने पुलिसवालों से थाने से निकलने को कहा. वहीं पुलिस कर्मी लगातार बढ़ती भीड़ को देखकर अंदर थाने में छिप गए. उसे बाहर से बंद कर लिया. नतीजतन थाने को आग लगा दी गई. इसमें पुलिस थाने में मौजूद 23 पुलिसकर्मी जल गए.
ये ऐसी घटना थी, जो बहुत तेजी से साथ देशभर में फैली. ब्रिटिश सरकार के हुक्मरानों के हाथ-पांव फूल गए. यहां तक की गोरखपुर में मौजूद प्रशासन के लोग डर गए कि अब उनका क्या हाल होगा.
गांधीजी ने आंदोलन वापस ले लिया
लेकिन, जैसे ही इस हिंसा की खबर महात्मा गांधी के पास पहुंची, उन्होंने 12 फरवरी 1922 को असहयोग आंदोलन वापल ले लिया था. गांधीजी के इस फैसले को लेकर क्रांतिकारियों का एक दल और कांग्रेस के कई शीर्ष नेता उनसे खासे नाराज हुए.
16 फरवरी 1922 को गांधीजी ने अपने लेख ‘चौरी चौरा का अपराध’ में लिखा कि अगर ये आंदोलन वापस नहीं लिया जाता, तो दूसरी जगहों पर भी ऐसी घटनाएं होतीं.
हालांकि गांधीजी ने पुलिसवालों को ही बताया था कसूरवार
हालांकि गांधीजी ने इस घटना के लिए पुलिस वालों को ही कसूरवार बताया, उन्होंने ऐसी उकसाने वाली कार्रवाई की, जिससे लोगों में नाराजगी फैली और ऐसा माहौल तैयार हुआ. हालांकि उन्होंने इस मामले में जिम्मेदार लोगों से अपील भी की कि वो खुद को पुलिस के हवाले कर दें, क्योंकि उन्होंने अपराध किया है.
ब्रिटिश सरकार ने राहत की सांस ली
हालांकि आंदोलन वापस लेने के चलते अंग्रेज सरकार ने जहां राहत की सांस ली. वहीं आजादी की लड़ाई को बडा़ झटका लगा. अंग्रेजों ने गांधीजी पर ही राजद्रोह का मुकदमा चलाया. मार्च 1922 में उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया. असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में 4 सितंबर 1920 को पारित हुआ था. गांधीजी का मानना था कि अगर असहयोग के सिद्धांतों का सही से पालन किया गया, तो एक साल के अंदर अंग्रेज़ भारत छोड़कर चले जाएंगे.
बहुत कामयाब हुआ था असहयोग आंदोलन
असहयोग आंदोलन में सभी वस्तुओं, संस्थाओं और व्यवस्थाओं का बहिष्कार करने का फैसला किया था, जिसके तहत अंग्रेज़ भारतीयों पर शासन कर रहे थे. उन्होंने विदेशी वस्तुओं, अंग्रेज़ी क़ानून, शिक्षा और प्रतिनिधि सभाओं के बहिष्कार की बात कही. खिलाफत आंदोलन के साथ मिलकर असहयोग आंदोलन बहुत हद तक कामयाब भी रहा था. लोगों ने स्कूल, कॉलेज जाना छोड़ दिया. नौकरियां त्याग दी थीं. बड़े पैमाने पर हर जगह विदेशी सामानों की होली जलाई जाने लगी थी.
चौरी-चौरा की याद में मीनार बनाई गई
चौरी-चौरा कांड की याद में 1973 में गोरखपुर में इस जगह पर 12.2 मीटर ऊंची एक मीनार बनाई गई. इसके दोनों तरफ एक शहीद को फांसी से लटकते हुए दिखाया गया था. बाद में भारतीय रेलवे ने दो ट्रेनें भी चौरी-चौरा के शहीदों के नाम से चलवाई. इन ट्रेनों के नाम हैं शहीद एक्सप्रेस और चौरी-चौरा एक्सप्रेस. जनवरी 1885 में यहाँ एक रेलवे स्टेशन की स्थापना की गई.
धर्म और अध्यात्म की धरती, वीरों की जन्मभूमि उ.प्र. जनक्रांति का केंद्र रहा है।
आज PM श्री @narendramodi जी ने मा. राज्यपाल श्रीमती @anandibenpatel जी और #UPCM श्री @myogiadityanath जी की उपस्थिति में चौरी-चौरा जनक्रांति के शताब्दी समारोह का उद्घाटन किया।#चौरी_चौरा_के_100_साल pic.twitter.com/DzuqZt8FZE
— Government of UP (@UPGovt) February 4, 2021
