क्या है फ़्यूचर ग्रुप विवाद, अमेज़न और रिलायंस है आमने-सामने
विश्व की सबसे बड़ी ई-कॉमर्स की कंपनी अमेज़न और भारत की सबसे बड़ी कंपनी रिलायंस आमने सामने हैं. वजह, एक भारतीय कंपनी को लेकर विवाद है कि दोनों ही कंपनियां काफी मुश्किल में है, क्योंकि दोनों ने एक ही भारतीय रीटेल कंपनी फ़्यूचर ग्रुप के साथ अलग-अलग सौदे किए हैं. विशेषज्ञों की मानें तो अमेज़न के साथ रिलायंस की इस कानूनी लड़ाई पर आने वाले सालों में भारत के लिए ई-कॉमर्स का भविष्य निर्धारण करेगा. जेफ बेज़ोस को अमेजन ने दुनिया का सबसे अमीर आदमी बनाया है. हां, यह बात अलग है कि फिलहाल सबसे अमीर आदमी नहीं है.
अमेज़न ने वैश्विक स्तर पर रीटेल के धंधे को पूरी तरीके से बदल कर रख दिया है, लेकिन रिलायंस के मालिक मुकेश अंबानी भारत के सबसे अमीर आदमी हैं, और उनका इतिहास भी इतनी आसानी से चुनौतियों से भागने वाला नहीं है. इंडस्ट्री के विश्लेषकों का मानना है कि रीटेल सेक्टर में उनकी योजनाएं अमेज़न और वॉलमार्ट के फ्लिपकार्ट के लिए आने वाले वक्त में चुनौती पेश करने वाला होगा. अमेज़न भारत में आक्रमक रूप से अपनी मौजूदगी बढ़ाने में लगा हुआ है. उसे उम्मीद है कि वह इस उभरते हुए मार्केट के अवसरों को भुना सकेगा. रिलायंस की भी ई-कॉमर्स और ग्रॉस के व्यवसाय में आने वाले वक्त में आने की चरणबद्ध योजना है.
फ़्यूचर ग्रुप और रिलायंस के बीच क्या है ताजा विवाद
फ़्यूचर ग्रुप ने साल की शुरुआत में रिलायंस से 3.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर कीमत की रिटर्न संपत्ति बेचने का सौदा किया है. आपको बता दें कि, वर्ष 2019 से अमेज़न की फ़्यूचर कॉम कंपनी में 49 फ़ीसदी हिस्सेदारी है. इसकी वजह से अमेज़न की फ़्यूचर रीटेल में और प्रत्यक्ष तौर पर मालिकाना हिस्सेदारी है. अमेज़न का कहना है कि इस करार के मुताबिक फ़्यूचर ग्रुप कुछ चुनिंदा भारतीय कंपनियों के साथ सौदा नहीं कर सकती है. इसमें रिलायंस भी शामिल है. कोरोना वायरस महामारी की वजह से फ़्यूचर रीटेल के धंधे पर बहुत बड़ा बुरा प्रभाव पड़ा है. कंपनी का कहना है कि कंपनी को बचाए रखने के लिए रिलायंस के साथ सौदा बेहद जरूरी है, अन्यथा कंपनी दिवालिया हो जाएगी.
कोर्ट ने जो हालिया फैसला सुनाया है, वह फैसला फ़्यूचर ग्रुप के पक्ष में गया है. बीते सोमवार को दिल्ली हाईकोर्ट में 1 हफ्ते पहले के फैसले को पलट दिया है, जिसके तहत अब इस सौदे पर रोक लगा दी गई थी. अब अमेज़न ने कोर्ट के हालिया फैसले के खिलाफ अपील की है.
क्या लगा है दांव पर
अगर रिलायंस इस सौदे में मंजूरी मिल पा लेता है, तो रीटेल व्यापार में रिलायंस की पहुंच भारत के करीब 420 शहरों में अट्ठारह सौ से ज्यादा स्टोर तक हो जाएगी. इसके साथ ही फ़्यूचर ग्रुप के थोक व्यापार और लॉजिस्टिक तक उसकी पहुंच हो जाएगी. सबसे अमीर 2 व्यापारियों के बीच की यह लड़ाई बताती है कि अंबानी और बेज़ोस के लिए ई-कॉमर्स के क्षेत्र में कितना कुछ दांव पर लगा हुआ है.
यह इस बात का भी संकेत है कि विदेशी व्यापारियों के लिए भारत में व्यापार कितना मुश्किल है. भारत ने हाल ही में दो महत्वपूर्ण कंपनियों कैरन एनर्जी पीएलसी और वोडाफोन के ख़िलाफ़ टैक्स विवाद में हार का सामना किया है. वैसे, वोडाफोन मामले में आदेश को चुनौती दी गई है. एशिया पेसिफिक फ़ाउंडेशन ऑफ कनाडा के अनुसार इसमें कोई शक नहीं है कि विदेशी निवेशक इन हालातों को देखेंगे और इसे निराशाजनक परिस्थितियों के तौर पर लिया जाएगा. इससे निवेशक और व्यापार करने के लिए भारत की जो छवि है, वह भरोसेमंद की जगह नकारात्मक होगी.
सही मायने में देखा जाये, तो अमेज़न को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत के आह्वान का खामियाजा भी भुगतना पड़ रहा है. अब इसमें डेटा के इस्तेमाल को लेकर भी सख्त मानदंडों का पालन किया जाएगा. इसका ख़ामियाजा अमेज़न जैसी कंपनियों के भुगतना पड़ेगा.
अमेज़न और रिलायंस की टिकी हैं भारतीय बाज़ार पर नज़रें
रिलायंस और अमेज़न दोनों ही कम्पनियां बहुत दूर तक का सफ़र देख रही हैं और भारतीय बाज़ार पर उनकी नज़रें असीमित संभावनाओं की वजह से टिकी हुई हैं. जानकार बताते हैं कि, “चीन और अमेरिका के बाद भारत सबसे बड़ा बाज़ार है, जिसमें इस तरह की सम्भावना मौजूद है”. जानकारों के मुताबिक भारत का रीटेल सेक्टर 850 बिलियन डॉलर का है, लेकिन इसका एक बहुत छोटा सा हिस्सा ही अभी ई-कॉमर्स में है. फॉरेस्टर की मानें तो भारतीय ई-कॉमर्स का धंधा सालाना 25.8 फ़ीसद के हिसाब से बढ़ने वाला है और साल 2023 तक 85 बिलियन डॉलर तक हो जाएगा.
ऐसे में स्वाभाविक सी बात है, भारत में ई-कॉमर्स के क्षेत्र में भीड़ और प्रतिस्पर्धा बढ़ने वाली है. अमेज़न के अलावा घरेलू कंपनी वॉलमार्ट ने भी फ्लिपकार्ट के साथ साझेदारी की है. गौर करने वाली बात है कि फेसबुक भी इस प्रतिस्पर्धा में कूद पड़ा है और उसने रिलायंस इंडस्ट्रीज के जियो प्लेटफॉर्म्स में 9.9% की हिस्सेदारी 5.7 बिलियन डॉलर में खरीदी है.
आगे की राह
प्रधान सेवक के आत्मनिर्भर भारत संदेश का ख़ामियाजा विदेशी कम्पनियों को भुगतना पड़ रहा है. मोदी की अपील के अनुसार, देश के कामगारों को प्रोत्साहन मिलेगा तो देश की छवि कुछ और होगी. सतही अवलोकन देखें तो पाएंगे कि मौजूदा देश की नस्लों के भीतर स्वदेशी अपनत्व की लहर रगों में बड़ी तेजी से दौड़ रही है. ऐसे में विदेशी कम्पनियों के लिये भारत को अपना बाजार बनाना महत्वपूर्ण चुनौती के रूप में सामने मौजूद मिलेगा.

